जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम ।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न ब्यापै काम ।।
मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊँ सहज सरूप।
गीता में भगवान कृष्ण के उपदेश ……..
स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः।
के साक्षात मूर्ति,… मीरा बाई के गुरु,… कविकुलभूषण , … मधुर एवं सहज , …..संत शिरोमणि , …..भक्ति की दो शाखाएँ ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी के मध्य सेतु , पूज्य रविदास महराज के प्राकट्योत्सव पर शत शत नमन ….
विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायियों में मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने वाले सन्तों में शिरोमणि रविदास का नाम अग्रणी है ।
आज भी सन्त रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रविदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। पुनश्च उनके श्री चरणों में कोटिशः प्रणाम……