लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वजनों, स्वजातियों और सगे – सम्बन्धियों की उपेक्षा करके सत्य की रक्षा की

लाल बहादुर शास्त्री जी

लाल बहादुर शास्त्री जी

लाल बहादुर शास्त्री जी (2अक्टूबर/जन्मदिवस)

लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। वो एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपने शासनकाल में स्वजनों की, स्वजातियों और सगे – सम्बन्धियों की उपेक्षा करके सत्य की रक्षा की। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी वृद्धा माता एवँ अपनी पत्नी की भी सिफारिश पर कभी जरा भी ध्यान नहीं दिया। सत्रह–अठारह वर्षों तक उच्च पदों पर रहते हुए भी शास्त्री जी के पास कुछ नहीं था। उन्होंने सदैव सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के पथ का अनुसरण किया।

उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग:-

एक बार की बात है, शास्त्री जी स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जेल में थे। घर पर उनकी पुत्री बीमार थी और उसकी हालत काफी गंभीर थी। उनके साथियों ने उन्हेँ जेल से बाहर आकर पुत्री को देखने का आग्रह किया। पैरोल भी स्वीकृत हो गई, परन्तु शास्त्री जी ने पैरोल पर छूटकर जेल से बाहर आना अपने आत्मसम्मान के विरुद्ध समझा ! क्योंकि वे यह लिखकर देने को तैयार न थे कि बाहर निकलकर वे आन्दोलन में कोई काम नहीं करेंगे। अंत में मजिस्ट्रेट को पन्द्रह दिनों के लिए उन्हें बिना शर्त छोड़ना पड़ा। वे घर पहुँचे, लेकिन उसी दिन बालिका के प्राण-पखेरू उड़ गए। शास्त्री जी ने कहा, “जिस काम के लिए मैं आया था, वह पूरा हो गया है। अब मुझे जेल वापस जाना चाहिये।” और उसी दिन वो जेल वापस चले गये।

शास्त्री जी ईमानदारी की साक्षात् मूर्ती थे। नियमों के पालन में उन्होंने कभी अपने रिश्तेदारों का भी पक्ष नहीं लिया। कई बार उनके आधीन अधिकारी, उनके रिश्तेदार की नियम विरुद्ध भी सहायता करने को तैयार हुए, किन्तु शास्त्री जी ने उनकी भी बात मानने में असमर्थता प्रकट कर दी।

जब शास्त्रीजी उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे, तब एक दिन शास्त्री जी की मौसी के लड़के को एक प्रतियोगिता परीक्षा में बैठना पड़ा। उसे कानपुर से लखनऊ जाना था। गाड़ी छूटने वाली थी, इसलिए वह टिकट (Ticket) न ले सका। लखनऊ में वह बिना टिकट पकड़ा गया। उसने शास्त्री जी का नाम बताया। शास्त्री जी के पास फ़ोन आया। शास्त्री जी का यही उत्तर था, “हाँ है तो मेरा रिश्तेदार ! किन्तु आप नियम का पालन करें।” यह सब जानने के बाद मौसी नाराज़ हो गई।

एक बार उनका सगा भांजा आई. ए. एस. की परीक्षा में सफल हो गया, परन्तु उसका नाम सूची में इतना नीचे था कि चालू वर्ष में नियुक्ति का नंबर नहीं आ सकता था, किन्तु अगर शास्त्री जी जरा सा इशारा कर देते तो उसे इसी वर्ष नियुक्ति मिल सकती थी। बहन ने आग्रह किया, परन्तु उनका सीधा उत्तर था, “सरकार को जब आवश्यकता होगी, नियुक्ति स्वतः ही हो जाएगी।”

जब वे रेल मंत्री (Railway Minister) थे तब एक रेल दुर्घटना हो गई। शास्त्री जी ने तुरंत मंत्री पद से स्तीफा (Resign) दे दिया।

क्या गजब की सत्यनिष्ठा और ईमानदारी थी उनमें। इन्हीं सब गुणों के कारण उन्हें नेहरू जी का उत्तराधिकारी बनाया गया। यद्यपि कोई सोचता भी न था कि वे प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनाये जायेंगे। आज के राजनेताओं को उनके आदर्शों का पालन करना चाहिए, जिससे अपना देश एक साफ़-सुथरी छवि वाला एवं भ्रष्टाचार मुक्त देश बन सके।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twenty − seven =