02 मार्च / जन्मदिवस – निर्धनों के वास्तुकार लॉरी बेकर

दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जिनमें प्रतिभा के साथ-साथ सेवा और समर्पण का भाव भी उतना ही प्रबल हो. इंग्लैंड के बरमिंघम में दो मार्च, 1917 को जन्मे भवन निर्माता एवं वास्तुकार लारेन्स विल्फ्रेड (लॉरी) बेकर ऐसे ही व्यक्ति थे, जिन्होंने कम खर्च में पर्यावरण के अनुकूल भवन बनाए.

सन् 1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय जिस पानी के जहाज पर वे तैनात थे, उसे किसी कारण से कुछ दिन के लिए मुम्बई में रुकना पड़ा. तब खाली समय में मुम्बई और उसके आसपास घूमकर उन्होंने भारतीय वास्तुविज्ञान को समझने का प्रयास किया. उन्हीं दिनों उन की भेंट गांधी जी से हुई. इससे उनके जीवन में परिवर्तन हुआ. दूसरी बार वे कुष्ठ निवारण प्रकल्प के अन्तर्गत भारत आए. तब उन्हें भारत के लोग और वातावरण इतना अच्छा लगा कि वे सदा के लिए यहीं के होकर रह गए.

बेकर ने कुष्ठ रोगियों के बीच काम करते समय भारत में निर्धन लोगों के लिए मकानों के बारे में व्यापक चिन्तन किया. उनकी दृढ़ धारणा थी कि यहाँ अत्यधिक शहरीकरण उचित नहीं है तथा भवन में सीमेंट, लोहा आदि सामग्री 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. भवन को जीवन्त इकाई मानकर इसके निर्माण को वे प्रकृति के साथ तादात्मय निर्माण की कला कहते थे.

बेकर ने भारत में हजारों आवासीय भवन, विद्यालय, चिकित्सालय, पूजा स्थलों आदि के नक्शे बनाए. उनके बनाए भवन खुले और हर मौसम के अनुकूल हैं. उन्होंने भवनों में बिना चौखट के दरवाजे, खिड़की और रोशनदान लगाए. इससे उनमें प्राकृतिक रूप से हवा और रोशनी खूब आती है.

वे लोहे, सीमेंट या कंक्रीट के बदले स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मिट्टी, गारा, ईंट, पत्थर, खपरैल, नारियल, जूट आदि का प्रयोग करते थे. अंग्रेजी पढ़े आधुनिक वास्तुकारों ने उनका खूब मजाक बनाया; पर समय की कसौटी पर बेकर की धारणा ही सत्य सिद्ध हुई. अब सबको ध्यान आ रहा है कि कृत्रिम चीजों के प्रयोग से भवन-निर्माण का खर्च लगातार बढ़ रहा है और पर्यावरण गम्भीर संकट में है. भूकम्प, बाढ़ या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा के समय इन भवनों में रहने वालों को ही अधिक हानि होती है.

निर्धनों के वास्तुकार कहलाने वाले लॉरी बेकर ने झुग्गी बस्तियों के विकास, कचरा निपटान, जल संग्रह, भूकम्परोधी भवनों के शिल्प पर अनेक पुस्तकें भी लिखीं.

वास्तुशिल्प में योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों तथा सम्मानों से अलंकृत किया गया. अपनी पत्नी डॉ. ऐलिजाबेथ जेकब के साथ उन्होंने 1970 में केरल के त्रिवेन्द्रम में बसने का निर्णय लिया. उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए भी आवेदन किया, जो उन्हें बड़ी कठिनाई से 1989 में मिली. ईसाई होते हुए भी वे हिन्दू संस्कृति से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने अपने बेटे का नाम तिलक और बेटियों के नाम विद्या और हृदि रखे.

भारत सरकार ने उनकी सेवाओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए 1990 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया. विदेश में जन्म लेकर भी भारत को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले लॉरी बेकर ने 90 वर्ष की सुदीर्घ आयु में एक अप्रैल, 2007 को अन्तिम साँस ली.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

thirteen − 2 =