12 अगस्त / जन्म दिवस – महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई

sarabhai1जिस समय देश अंग्रेजों के चंगुल से स्वतन्त्र हुआ, तब भारत में विज्ञान सम्बन्धी शोध प्रायः नहीं होते थे. गुलामी के कारण लोगों के मानस में यह धारणा बनी हुई थी कि भारतीय लोग प्रतिभाशाली नहीं है. शोध करना या नयी खोज करना इंग्लैण्ड, अमरीका, रूस, जर्मनी, फ्रान्स आदि देशों का काम है. इसलिए मेधावी होने पर भी भारतीय वैज्ञानिक कुछ विशेष नहीं कर पा रहे थे. पर, स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश का वातावरण बदला. ऐसे में जिन वैज्ञानिकों ने अपने परिश्रम और खोज के बल पर विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया, उनमें डॉ. विक्रम साराभाई का नाम बड़े आदर से लिया जाता है. उन्होंने न केवल स्वयं गम्भीर शोध किये, बल्कि इस क्षेत्र में आने के लिए युवकों में उत्साह जगाया और नये लोगों को प्रोत्साहन दिया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ऐसे ही लोगों में से एक हैं.

डॉ. साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को कर्णावती (अहमदाबाद, गुजरात) में हुआ था. पिता अम्बालाल जी और माता सरला बाई जी ने विक्रम को अच्छे संस्कार दिये. उनकी शिक्षा माण्टसेरी पद्धति के विद्यालय से प्रारम्भ हुई. साराभाई जी की गणित और विज्ञान में विशेष रुचि थी. वे नयी बात सीखने को सदा उत्सुक रहते थे. अम्बालाल जी का सम्बन्ध देश के अनेक प्रमुख लोगों से था. रवीन्द्र नाथ टैगोर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरामन और सरोजिनी नायडू जैसे लोग इनके घर पर ठहरते थे. इस कारण विक्रम की सोच बचपन से ही बहुत व्यापक हो गयी.

डॉ. साराभाई ने अपने माता-पिता की प्रेरणा से बालपन में ही यह निश्चय कर लिया कि उन्हें अपना जीवन विज्ञान के माध्यम से देश और मानवता की सेवा में लगाना है. स्नातक की शिक्षा के लिए वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये और वर्ष 1939 में ‘नेशनल साइन्स ऑफ ट्रिपोस’ की उपाधि ली. द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने पर वे भारत लौट आये और बंगलौर में प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरामन के निर्देशन में प्रकाश सम्बन्धी शोध किया. इसकी चर्चा सब ओर होने पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें डीएससी की उपाधि से सम्मानित किया. अब उनके शोध पत्र विश्वविख्यात शोध पत्रिकाओं में छपने लगे.

अब उन्होंने कर्णावती (अमदाबाद) के डाइकेनाल और त्रिवेन्द्रम स्थित अनुसन्धान केन्द्रों में काम किया. उनका विवाह प्रख्यात नृत्यांगना मृणालिनी देवी से हुआ. उनकी विशेष रुचि अन्तरिक्ष कार्यक्रमों में थी. वे चाहते थे कि भारत भी अपने उपग्रह अन्तरिक्ष में भेज सके. इसके लिए उन्होंने त्रिवेन्द्रम के पास थुम्बा और श्री हरिकोटा में राकेट प्रक्षेपण केन्द्र स्थापित किये. डॉ. साराभाई भारत के ग्राम्य जीवन को विकसित देखना चाहते थे. ‘नेहरू विकास संस्थान’ के माध्यम से उन्होंने गुजरात की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध सम्बन्धी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे. अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने के बाद भी वे गुजरात विश्वविद्यालय में भौतिकी के शोध छात्रों को सदा सहयोग करते रहे.

डॉ. साराभाई 20 दिसम्बर, 1971 को अपने साथियों के साथ थुम्बा गये थे. वहां से एक राकेट का प्रक्षेपण होना था. दिन भर वहां की तैयारियां देखकर वे अपने होटल में लौट आये, पर उसी रात में अचानक उनका देहान्त हो गया.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × two =