‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ की राह पर अफ्रीका की पैमिला

‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ यह  पंक्ति गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस से ली गई है। इसमें भगवान श्रीराम भरत की विनती पर साधु और असाधु का भेद बताने के बाद कहते हैं कि ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई और पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।’ अर्थात दूसरों की भलाई के समान अन्य कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के जैसा अन्य कोई निम्न पाप नहीं है। इस राह पर दक्षिण अफ्रीका की पैमिला तोश (42) चल रही हैं। पैमिला तोश पांच साल पहले दक्षिण अफ्रीका से आम पर्यटक के रूप में भारत आईं इस विदेशी महिला ने उत्तराखंड में लाचार एवं असहाय लोगों की पीड़ा महसूस की तो अपना जीवन इन्हीं की सेवा को समर्पित कर दिया। पैमिला वर्ष 2013 में भारत भ्रमण पर आई थीं। वह ऋषिकेश में सड़कों, गंगा घाटों और प्लेटफार्मों पर बीमार एवं असाध्य रोगों के साथ जीवन यापन करने वाले लोगों की पीड़ा ने पैमिला को द्रवित कर दिया। पैमिला यहां रहती हैं और सड़क पर जहां भी किसी बीमार एवं असहाय व्यक्ति को देखती हैं, पूरे मनोयोग से उसकी सेवा में जुट जाती हैं। दीन-दुखियों के बाल व नाखून काटने से लेकर उनके घावों की मरहम-पट्टी भी खुद करती हैं। उनसे प्रेरणा लेकर अन्य विदेशी साथी भी सेवा कार्य में उनका सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा पैमिला को जीव-जंतुओं से भी अत्याधिक प्रेम है। वह जहां भी घायल एवं लाचार पशुओं को देखती है, उनकी सेवा में जुट जाती हैं।

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