अज्ञात स्वतंत्रता सेनानी : डॉक्टर हेडगेवार – 2

नरेंद्र सहगल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जन्मजात स्वतंत्रता सेनानी थे. ‘हिन्दवी स्वराज’ के संस्थापक छत्रपति शिवाजी, खालसा पंथ का सृजन करने वाले दशमेशपिता श्रीगुरु गोविंदसिंह और आर्य समाज के संगठक स्वामी दयानन्द की भांति डॉ. हेडगेवार ने बालपन में ही संघ जैसे किसी शक्तिशाली संगठन की कल्पना कर ली थी. भारत की सनातन राष्ट्रीय पहचान हिन्दुत्व, भगवा ध्वज, अखंड भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता और स्वतंत्रता संग्राम इत्यादि सब विषय एवं विचार और योजनाएं उनके मस्तिष्क में बाल्यकाल से ही आकार लेने लगी थीं. वंदेमातरम् बाल केशव के जीवन का दीक्षामंत्र बन गया था. बाल केशव प्रारम्भ से ही कुशल संगठक, लोकसंग्रही, निडर एवं साहसी थे. बाल सखाओं के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में बीता था डॉ. हेडगेवार का बचपन और यही थी उस महान स्वतंत्रता सेनानी की मजबूत नींव.

बाल स्वतंत्रता सेनानी

डॉ. हेडगेवार ने विद्यार्थी काल में ही भारत के पतन और परतंत्रता के कारणों की समीक्षा करके देश की स्वाधीनता और राष्ट्र की सर्वांग स्वतंत्रता का अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया था. 22 जून 1897 को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया का 60वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया, विद्यालयों में बच्चों को मिठाइयां बांटी गईं. बाल केशव ने यह कहकर मिठाई का डोना कूड़ेदान में फेंक दिया और अपने मन में विदेशी राजा के प्रति सुलग रही नफरत की आग को यह कहकर बाहर निकाला ‘अपने राज्य को जीतने वाले राजा (विक्टोरिया) के जन्मदिन पर सम्पन्न समारोह का जश्न हम क्यों मनाएं? मैंने मिठाई के डोने के साथ अंग्रेजी राज्य को भी कूड़े में फेंक दिया है’.

1909 में इंग्लैंड के सम्राट एडवर्ड सप्तम का राज्यारोहण उत्सव था. अंग्रेज और उनके भक्त लोग इस दिन अपने घरों, दुकानों तथा कारोबारी भवनों पर रौशनी करके आतिशबाजी करते थे. नागपुर की एक प्रसिद्ध एम्प्रस मिल के मालिकों ने भी अपने उद्योग भवन के चारों ओर रंगबिरंगी रौशनियां कीं. शहर के अधिकांश लोग अपने बच्चों के साथ इस नजारे को देखने के लिए गए. बाल केशव ने अपने मित्रों से कहा ‘विदेशी राजा के राज्यारोहण का उत्सव मनाना हमारे लिए शर्म की बात है. जिस विदेशी राज्य को उखाड़ फेंकना चाहिए, उसका उत्सव मनाने वालों पर धिक्कार है. मैं नहीं जाउंगा और न ही आपको वहां जाने दूंगा’.

उखाड़  फैंको अंग्रेजों का झण्डा

जैसे-जैसे समय बीतता गया, बाल केशव के मन में जागृत हो रही स्वाधीनता की उत्कट भावनाएं भी प्रचंड गति पकड़ने लगीं. नागपुर से थोड़ी दूर किला सीताबर्ड़ी है, बाल केशव ने अपनी माता से सुना था कि यह किला कभी हिन्दू राजाओं के अधिकार में था. इस किले पर अंग्रेजों का झंडा (यूनियन जैक) क्यों है? वहां तो हमारा भगवा ध्वज ही होना चाहिए.

बाल सखाओं की मंडली ने किले को फतह करके यूनियन जैक को उखाड़ फेंकने की योजना बना डाली. किले तक सुरंग खोदकर वहां पहुंचना और किले के पहरेदारों के साथ युद्ध करके भगवा ध्वज फहराना. केशव और उसके साथी अपने अध्यापक वजेह गुरु के घर में रहकर अध्ययन कार्य करते थे. 7-8 बालकों के नेता केशव ने वजेह गुरुजी के घर के एक कमरे से सुरंग खोदना शुरु कर दिया. एक रात फावड़े, कुदाली, बेलचा इत्यादि से खुदाई करने की आवाज गुरुजी ने सुन ली. अंदर से बंद दरवाजे को धक्का देकर गुरुजी अंदर आए तो आश्चर्यचकित हो गए. बाल सेना किले पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रही थी. गुरुजी ने समझाकर सबको शांत कर दिया.

बाल केशव ने अपने मित्रों के साथ निकटवर्ती जंगल में जाकर ‘किला फतह करो’ और ‘ध्वज जीतकर लाएं’ जैसे मार्शल खेल खेलने प्रारम्भ कर दिए. ऐसे ही युद्धों के खेल छत्रपति शिवाजी अपने बाल सखाओं के साथ खेला करते थे. इसी समय केशव के नेतृत्व में विद्यार्थियों के एक चर्चा-मंडल का गठन हुआ. इस मंडल में हिन्दू महापुरुषों, योद्धाओं और देशभक्त क्रांतिकारी नेताओं के जीवन प्रसंगों पर चर्चा होती थी. इसी समय जब मध्यप्रदेश के एक संगठन स्वदेश-बांधव की ओर से स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार की गतिविधियां प्रारम्भ हुईं तो केशव की मित्र मंडली ने भी जमकर भाग लिया. 1905-06 के आसपास लोकमान्य तिलक की योजनानुसार ‘गुप्त बैठकों’ की शुरुआत हुई, जिनमें क्रांतिकारियों को तैयार किया जाता था. बाल केशव ने भी इन गतिविधियों में अपना सक्रिय सहयोग दिया.

बाल केशव की पहली गिरफ़्तारी

विद्यालय में ग्रीष्मकालीन अवकाश के समय केशवराव अपने मामा के घर नागपुर के निकट रामपाइली में चले जाते थे. वहां पर भी युवाओं के एकत्रीकरण शुरु हो गए. सभी युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की प्रेरणा दी जाने लगी. प्रतिवर्ष दशहरे के दिन रामपाइली नगर में रावण के पुतले जलाए जाते थे. इस बार केशव राव ने युवकों के साथ वंदे मातरम् गीत गाया और एक ओजस्वी भाषण दिया. ‘आज सबसे बड़ी पीड़ादायक और शर्मनाक बात है हमारा परतंत्र होना, परतंत्र बने रहना सबसे बड़ा अधर्म है, पापियों और परायों का अन्याय सहन करना भी महापाप है, अतः आज विदेशी दासता के खिलाफ खड़े होना और अंग्रेजों को सात समंदर पार भेज देना ही वास्तव में सीमा उल्लंघन है. रावण वध का आज तात्पर्य अंग्रेजी राज का अंत करना है’.

सरकारी गुप्तचरों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर केशवराव को गिरफ्तार कर लिया गया, यह उनके जीवन की पहली गिरफ्तारी थी. छोटी आयु देखकर जिला कलेक्टर ने केशव से क्षमा मांगने को कहा. इस पर इस युवा का सीना तन गया – ‘मैं आपके आदेश का उल्लंघन करता हूं, वंदेमातरम् गाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे जीवन की अंतिम श्वास तक गाता रहूंगा’. थोड़ी देर केशव को हवालात में रखने के बाद छोड़ दिया गया.

वंदेमातरम से गूंज उठा विद्यालय

इस घटना के पश्चात केशवराव की प्रत्येक गतिविधि पर सरकारी गुप्तचरों की नजर रहने लगी. जिलाधिकारी ने सार्वजनिक स्थानों पर केशव के भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया. युवाओं में फैलते जा रहे अंग्रेज विरोध को दबाने के लिए सरकार ने रिसले-सर्कुलर नाम का एक सूचना पत्रक जारी करके वंदेमातरम् बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया. इस समय 16 वर्षीय केशव राव नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में दसवीं कक्षा का विद्यार्थी था. इस स्कूल में भी वंदेमातरम् पर प्रतिबंध लग गया था. केशवराव ने अपनी युवा छात्र वाहिनी के साथ इस प्रतिबंध की धज्जियां उड़ाने का फैसला किया.

सारी योजना को गुप्त रखा गया. जैसे ही शिक्षा विभाग के निरीक्षक और स्कूल के मुख्य अध्यापक निरीक्षण करने दसवीं कक्षा में गए, सभी छात्रों ने ऊंची आवाज में आत्मविश्वास के साथ वंदेमातरम् का उद्घोष किया. यही उद्घोष प्रत्येक कक्षा में लगे. सारा विद्यालय वंदेमातरम् से गूंज उठा. कौन नेता है? कहां योजना बनी? यह सब कैसे हो गया? निरीक्षक महोदय, मुख्य अध्यापक तथा सरकारी गुप्तचर सर पटकते रह गए. किसी को कुछ पता नहीं चला. जब सरकारी अधिकारी सभी छात्रों को सख्त सजा देने की बात सोचने लगे तो केशवराव ने सबको बचाने के लिए अपना नाम प्रकट कर दिया – ‘यह मैंने करवाया है, वंदेमातरम् गाना हमारा अधिकार है, क्षमा नहीं मांगूंगा’ यह कहने पर केशवराव को विद्यालय से निकाल दिया गया.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा स्तंभकार हैं.)

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 + 2 =