सिपाही के रूप में जनरल नियाजी की सुरक्षा में तैनात थे कर्नल करतार
धर्मशाला. ‘बेटा, जितना ख्याल मेरा यहां तुम लोगों ने रखा है, उतनी इज्जत तो मुझे पाकिस्तान में भी नहीं मिलेगी।’ यह कहना था 1971 की जंग के बाद बंदी बनाए गए पाकिस्तानी जनरल अमीर अब्दुल्ला नियाजी का। यह शब्द उन्होंने कर्नल करतार से कहे थे जो उस समय जबलपुर ऑफिसर मेस में नियाजी की सुरक्षा में तैनात थे और उस समय केवल सिपाही थे।
दोनों देशों के बीच 1971 में हुए युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान के 92 हजार सैनिकों को लौटाया था। उन सैनिकों को एक साल तक जबलपुर में रखने के बाद पाक भेजा था। इस घटना की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं है, इसके गवाह हैं पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी की सुरक्षा में तैनात रहे कर्नल करतार सिंह। पाकिस्तान भले ही शांति का मसीहा बनने का पैंतरा चल रहा हो, लेकिन कर्नल करतार इसे सामान्य मामला बता रहे हैं। हमने कुछ माह पहले पंजाब में गलती से आए कुछ पाकिस्तानी सैनिक सकुशल वापस भेजे थे।
‘यह वह देश है जो पूर्व पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी को दिसंबर, 1971 में करीब 92 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण को विवश कर सकता है, पर बतौर युद्धबंदी उनकी सुख-सुविधा का पूरा ख्याल रख सकता है…..लेकिन पानी सिर से ऊपर जाने लगे तो पाक में घुसकर भी आतंकियों को ढेर कर सकता है। बतौर सैनिक मैं बहुत खुश हूं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वह कर दिखाया है जो देश चाहता था। इससे बेहतर कदम और कोई नहीं हो सकता था।’
कर्नल करतार के मुताबिक, विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को छोड़ने से पहले पाकिस्तान ने उनके साथ ‘अच्छे व्यवहार’ का आधार बनाकर अपनी छवि सुधारने की कोशिश की। इसके पीछे मकसद यह है कि विश्व में आतंकियों को पनाह देने वाली उसकी छवि में सुधार हो, पर भारत कई मौकों पर पाक सैनिकों को बिना कोई पैंतरेबाजी किए छोड़ चुका है।
हमारे सम्मान के बदले यातनाएं
कांगड़ा के कोहाला गांव में रहने वाले करतार सिंह कहते हैं कि पाकिस्तान ने हमेशा भारत की शराफत और जिम्मेदारी की भावना को हल्के में लिया है। बकौल कर्नल करतार, ‘खुद पाकिस्तानी युद्धबंदी कह कर गए थे कि जितना सम्मान उन्हें भारत में बंदी होते हुए मिला, उतना तो पाकिस्तानी सैनिक होते हुए पाकिस्तान में भी नहीं मिलता। लेकिन हमें बदले में शहीद कैप्टन सौरभ कालिया जैसी यातनाएं मिलीं।’