रमजान में लड़की उठा ले जाने, बलात्कार और कत्ल पर खामोशी, टोपी उछालने की झूठी घटना पर शोर

अब गुरुग्राम में एक रोजेदार की झूठी कहानी से बात निकली है, तो फिर दूर तलक जानी चाहिए. क्या रमजान में टोपी उछालने की झूठी कहानी गढ़ना जायज है, कत्ल जायज है, बलात्कार जायज है, किसी की बेटी को उठा ले जाना जायज है…
हथियारों के बल पर मेरठ के ब्रहमपुरी से एक लड़की को मुसलमान युवक अगवा करके ले गए. जबरन धर्म परिवर्तन कराया. निकाह कर लिया. पिछले दिनों दिल्ली में बेटी से छेड़खानी का विरोध करने पर एक मुस्लिम परिवार ने कारोबारी को चाकुओं से गोदकर मार डाला. बीच बचाव करने आए बेटे को भी चाकू मारे. मथुरा में इफ्तारी के बाद लस्सी पीने आए मुस्लिम युवकों से दुकानदार भाइयों ने जब पैसे मांगे, तो इन रोजेदारों ने मिलकर इतना पीटा कि एक की मौत हो गई.
इस रमजान के ये तीन संगीन वारदातें आपके सामने हैं. सेक्युलर, लिबरल, एजेंडा वाले पत्रकार, बुद्धिजीवी बेशर्मी से चुप्पी साधे रहते हैं. उन्हें नजर आती है गुरुग्राम की एक घटना. खबर आती है कि गुरुग्राम में एक रोजेदार की पिटाई की गई. टोपी उतारकर फेंक दी गई. बस फिर क्या था. देश में डर का माहौल बताने वाले सक्रिय हो जाते हैं. ये वही लोग हैं, जो ऊपर उल्लेखित तीन घटनाओं पर बेशर्म चुप्पी साधे रहते हैं. लेकिन गुरुग्राम वाली घटना जो पूरी तरह झूठी निकली उसको बढ़ा—चढ़ाकर प्रस्तुत करने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. सीसीटीवी फुटेज से साफ हो गया कि ये दो युवकों के बीच हाथापाई की घटना थी. किसी ने टोपी नहीं फेंकी. न ही किसी ने जबरदस्ती जय श्रीराम का नारा लगवाने की कोशिश की. लेकिन इस झूठ को परोसने वाले मोहम्मद बरकत अली को पता था कि इस देश में शोर कैसे पैदा किया जाता है.
पहले बात बरकत अली की
शनिवार को गुरुग्राम में जामा मस्जिद के पास एक घटना हुई. शिकायतकर्ता मोहम्मद बरकत आलम ने शिकायत में कहा था, “आरोपियों ने मुझे धमकी दी और कहा कि इलाके में टोपी पहनने की अनुमति नहीं है. उन्होंने टोपी उतार ली और मुझे थप्पड़ मारा. उन्होंने भारत माता की जय का नारा लगाने के लिए कहा. उनके कहने पर मैंने नारा लगाया. उसके बाद उन्होंने मुझे जय श्रीराम बोलने के लिए भी मजबूर किया, जिसे मैंने इंकार कर दिया. उसके बाद आरोपियों ने एक लाठी लेकर निर्दयता के साथ मेरे पैर और पीठ पर पीटा.” देश में, और खासकर दिल्ली में एक तबका इस तरह की घटनाओं को लपकने के लिए तैयार बैठा रहता है. एक बार फिर केंद्र में भाजपा की सरकार प्रचंड बहुमत से बनने के बाद ये चोट खाए नाग जैसी हालत में हैं. मुद्दा बन गया, उछल गया. इसके साथ ही ट्विट के ढेर लग गए. कुछ खास चैनलों पर ये घटना प्राइम टाइम बन गई.
लेकिन पुलिस जांच में कुछ और ही कहानी निकलकर आई. घटना की जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों का कहना है कि मुस्लिम युवक मोहम्मद बरकत अली के साथ मारपीट जरूर की गई है, लेकिन न तो उसकी टोपी फेंकी गई और न ही किसी ने उसकी शर्ट फाड़ी गई थी.
पुलिस ने पूरे इलाके के सीसीटीवी खंगाल डाले. कई में ये घटना कैद हुई. इसके साथ ही बरकत अली का शातिर झूठ खुल गया. पुलिस का कहना है कि इनके बीच पहले कहासुनी हुई थी. इसके बाद दोनों में हाथापाई हुई, जिससे मुस्लिम युवक की टोपी गिर गई. उसने खुद ही टोपी को उठाकर अपनी जेब में रख लिया था. किसी और ने उसे हाथ भी नहीं लगाया है. हालांकि, सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा है कि आरोपी बरकत अली की बाजू पर डंडा मारता दिखाई दे रहा है. मामला इतना साधरण है कि एक स्थानीय व्यक्ति ने ही झगड़ा कर रहे दोनों पक्षों को अलग करा दिया और मामला शांत हो गया. लेकिन बरकत अली जैसे शातिर जानते हैं कि कैसे घटनाओं को सांप्रदायिक रंग दिया जाता है. ऐसे लोग ये भी जानते हैं कि अल्पसंख्यक बनकर कैसे घटनाओं को कैश किया जाता है. हाल ही में दिल्ली से भाजपा सांसद बने पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर तक झांसे में आ गए. उन्होंने भी ट्वीट कर डाला कि घटना बेहद निंदनीय है. कड़ी कार्रवाई हो. अब सच सामने आने के बाद गौतम गंभीर को अहसास हो गया होगा कि राजनीति की रिवर्स स्विंग क्रिकेट से ज्यादा घातक होती है. दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने गंभीर का बचाव किया. कहा कि वह मासूमियत में ऐसा कह गए. उन्हें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी. इस तरह के प्रोपेगेंडा में फंसने से बचना चाहिए.
रोजेदारों की पिटाई से मथुरा में मौत
शनिवार को ही मथुरा के भरत यादव की मौत हो गई. भरत अपने भाई के साथ घियामंडी में लस्सी की दुकान चलाते थे. बात 18 मई की है. शाम के समय इफ्तारी के लिए कुछ मुस्लिम युवक उनकी दुकान पर आए. लस्सी से रोजा खोला और फिर जब पैसों की बात आई, तो दोनों भाइयों की पिटाई कर दी. दोनों भाइयों को इतना मारा कि गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया. भरत यादव की हालत ज्यादा गंभीर थी. उन्हें आगरा रैफर कर दिया गया. शनिवार को उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई. लोगों में आक्रोश फैल गया. जाम लगाया गया. पुलिस फईम को गिरफ्तार कर लिया है. हनीफ, साजिद, अरशद, सुहैल और शाहरुख फरार हैं. आपको नाम पढ़कर ही अंदाजा हो गया होगा कि इस घटना पर न तो स्क्रीन काली हुई होगी, न कोई चिल्लाया होगा कि डर का माहौल है. यहां तक कि अखबारों ने घटना में हत्यारों का जिक्र मुसलमान के रूप में न करके एक संप्रदाय विशेष के रूप में किया है.
मेरठ में हिंदू लड़की को जबरन अगवा कर किया निकाह
एक और घटना आपको बता दें. क्योंकि इस पर न तो प्राइम टाइम बनेगा, न डर का माहौल का नैरेटिव चलेगा. घटना मेरठ के ब्रह्मपुरी थानाक्षेत्र की है. यहां एक व्यापारी की बेटी का अपहरण हो गया. सोमवार को इस लड़की के बयान दर्ज हुए. लड़की ने बताया कि उसे हथियारों के बल पर अगवा किया गया. अपहरण करके मुस्लिम युवक उसे देवबंद ले गए. वहां उसे जबरन मुसलमान बनाकर निकाह कराया गया. पुलिस ने तीन आरोपियों आमिर, साबेज और सुहेब को गिरफ्तार किया है. किशोरी ने बताया कि दूसरे समुदाय के सात-आठ युवकों ने उनकी कनपटी पर पिस्टल तान दी थी. जिसके बाद निकाह कराया गया. बाद में किशोरी को चंडीगढ़ ले जाकर एक मकान में रखा गया. लड़की ने बताया कि उसके साथ दुष्कर्म भी किया गया. क्या आपको इस घटना पर कोई शोर सुनाई दिया. नहीं होगा क्योंकि ये खास एजेंडा के नैरेटिव को भाता नहीं है.
दिल्ली के मोतीनगर में कारोबारी ध्रुवराज त्यागी की हत्या को भी अभी एक महीना नहीं हुआ है. बसईदारापुर के निवासी ध्रुवराज अपनी बेटी को अस्पताल से दिखाकर रात दो बजे के आस-पास लौटे थे. गली में रहने वाले मुस्लिम परिवार के लड़कों ने उनकी बेटी को छेड़ा. ध्रुवराज इन लड़कों की शिकायत करने उनके घर गए, तो पूरे परिवार ने मिलकर उन्हें चाकुओं से गोद डाला. बेटा बचाने आया, तो उसे भी चाकू मार दिए. यह घटना भी आपको नहीं बताएगी कि देश में डर का माहौल है. अब गुरुग्राम में एक रोजेदार की झूठी कहानी से बात निकली है, तो फिर दूर तलक जानी चाहिए. क्या रमजान में टोपी उछालने की झूठी कहानी गढ़ना जायज है, कत्ल जायज है, बलात्कार जायज है, किसी की बेटी को उठा ले जाना जायज है…
मृदुल त्यागी
साभार
पात्र्चजन्य

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