देश एवं विदेश में बसे भारतीयों की सेवा को समर्पित श्रीनिवास शास्त्री

श्रीनिवास शास्त्री

श्रीनिवास शास्त्री

देशभक्त  श्रीनिवास शास्त्री  (22 सितम्बर/जन्म-दिवस)

अपने विचारों की स्पष्टता के साथ ही दूसरे के दृष्टिकोण को भी ठीक से सुनने, समझने एवं स्वीकार करने की क्षमता होने के कारण श्री वी.एस श्रीनिवास शास्त्री एक समय गांधी जी और लार्ड इरविन में समझौता कराने में सफल हुए। इसके लिए 4 मार्च, 1931 को वायसराय ने पत्र द्वारा उन्हें धन्यवाद दिया – गांधी जी से समझौता कराने में आपने जो भूमिका निभाई है, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। आपकी भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी।

वालंगइमान शंकरनारायण श्रीनिवास शास्त्री का जन्म ग्राम वालंगइमान (जिला तंजौर, कर्नाटक) में 22 सितम्बर, 1869 को हुआ था। यह ग्राम प्रसिद्ध तीर्थस्थल कुम्भकोणम के पास है, जहाँ हर 12 वर्ष बाद विशाल रथयात्रा निकाली जाती है। इनके पिता एक मन्दिर में पुजारी थे। माता जी भी अति धर्मनिष्ठ थीं। अतः इनका बचपन धार्मिक कथाएं एवं भजन सुनते हुए बीता। इसका इनके मन पर गहरा प्रभाव हुआ और इन संस्कारों का उनके भावी जीवन में बहुत उपयोग हुआ।

शिक्षा के प्रति अत्यधिक अनुराग होने के कारण वे कुम्भकोणम् के ‘नेटिव हाईस्कूल’ में पढ़ने के लिए पैदल ही जाते थे। 1884 में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने मद्रास प्रेसिडेन्सी से एफ.ए किया और फिर मायावरम् नगर पालिका विद्यालय में पढ़ाने लगे। इस दौरान छात्रों में लोकप्रियता और अनूठी शिक्षण शैली के कारण इनकी उन्नति होती गयी और ये सलेम म्यूनिसिपल कॉलेज में उपप्राचार्य हो गये। इसके बाद वे मद्रास के पचइप्पा कॉलेज में भी रहे।

इनकी पत्नी का नाम श्रीमती पार्वती था। 1927 में श्रीनिवास शास्त्री भारत के राजनीतिक प्रतिनिधि बन कर दक्षिण अफ्रीका गये। वहाँ उनके सामाजिक और राजनीतिक कार्यों से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमन्त्री जे.बी.एच.हरजॉग ने कहा – यदि किसी ने यहां आकर हमारे दिलों को जीता है, तो वह हैं शास्त्री जी। वहाँ के प्रशासन को उन पर बहुत विश्वास था।

दक्षिण अफ्रीका के समाचार पत्रों ने उन्हें विश्व के प्रमुख राजनेताओं में एक बताया। उनके प्रभाव को देखकर लन्दन में आयोजित ‘गोलमेज कान्फ्रेन्स’ में उन्हें कई बार आमन्त्रित किया गया। जेनेवा में ‘लीग ऑफ़ नेशन्स’ के प्रतिनिधियों ने इनकी भाषण कला और विचारों की गहनता की खूब प्रशंसा की।

राजनीतिक क्षेत्र में शास्त्री जी ने गोपालकृष्ण गोखले को अपना गुरू माना था। उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा को उन्होंने अनेक लेखों तथा ‘माई मास्टर गोखले’ नामक पुस्तक में व्यक्त किया है। गोखले जी के देहान्त के बाद वे ‘सर्वेंट्स ऑफ़ इण्डिया सोसायटी’ के अध्यक्ष बने। जब लार्ड पेण्टलैण्ड को 1913 में मद्रास का गवर्नर बनाकर भेजा गया, तो उन्होंने शास्त्री को विधान मण्डल का सदस्य नामित कर दिया। मद्रास विधान मण्डल के सदस्यों ने इन्हें 1916 में दिल्ली विधान मण्डल में भेजा।

1920 में वे ‘काउन्सिल ऑफ़ स्टेट’ के लिए निर्वाचित हुए। 1921 में उन्हें ‘प्रिवी काउन्सिल’ का सदस्य बनाया गया तथा इसी वर्ष वायसराय ने इन्हें ‘इम्पीरियल कान्फ्रेन्स’ का सदस्य मनोनीत किया; पर धीरे-धीरे राजनीति से उनका मोहभंग हो गया और वे फिर शिक्षा जगत में लौट आये। 1935 में उन्हें अन्नामलै विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। इसके बाद भी विदेश में बसे भारतीयों की समस्याओं पर विचार के लिए कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड के प्रधानमन्त्रियों ने उन्हें आमन्त्रित किया।

देश एवं विदेश में बसे भारतीयों की सेवा को समर्पित श्रीनिवास शास्त्री का 76 वर्ष की आयु में 17 अपै्रल, 1946 को मद्रास में देहांत हुआ।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

15 − one =