भारत रत्न प्राप्त स्वयंसेवक: गोपीनाथ बारदोलोई

6 जून/ जन्म-दिवस असम के रक्षक : गोपीनाथ बारदोलोई

gopinath-bordoloiभारत रत्न से विभूषित गोपीनाथ बारदोलोई का जन्म छह जून, 1890 को असम के नागांव जिले के राहा गांव में हुआ था। इनके पिता बुद्धेश्वर तथा माता प्राणेश्वरी थीं।गोपीनाथ बारदोलोई जब केवल 12 वर्ष के थे तब उन्होंने अपनी मां को खो दिया। उन्होंने 1914 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए पास किया। इसके बाद तीन साल तक कानून का अध्ययन किया लेकिन अंतिम परीक्षा में बैठे बिना गुवाहाटी वापस आ गए तथा सोनाराम हाई स्कूल के हेडमास्टर के रूप में अस्थायी नौकरी संभाली। उस अवधि के दौरान, वह कानून परीक्षा में बैठे और पास हो गए और 1917 में गुवाहाटी में अभ्यास करना शुरू कर दिया।

1922 में एक स्वयंसेवक के नाते वे कांग्रेस में शामिल हुए। सविनय अवज्ञा तथा असहयोग आंदोलन में वे कई बार जेल गये। पूर्वोत्तर भारत प्रायः शेष भारत से कटा रहता है; पर बारदोलोई ने वहां के स्वाधीनता संग्राम को देश की मुख्य धारा से जोड़कर रखा। 1946 में बनी अंतरिम सरकार में वे असम के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद अंग्रेजों ने स्वाधीनता और विभाजन की योजना के लिए ‘कैबिनेट
कमीशन’ बनाया। जिन्ना असम को भी पाकिस्तान में मिलाना चाहता था। 1905 में बंग-भंग के समय अंग्रेज इस षड्यन्त्र का बीज बो ही चुके थे। नेहरूजी इस सबसे बेखबर सत्ता प्राप्ति की सुखद कल्पनाओं में गोते लगा रहे थे। ऐसे विकट समय में  गोपीनाथ बारदोलोई ने सैकड़ों रैलियों का आयोजन किया। समाज के प्रबुद्ध लोगों के प्रतिनिधि मंडल शासन तथा कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं के पास भेजे। इससे जिन्ना का षड्यन्त्र विफल हो गया। सरदार पटेल ने इस पर उन्हें ‘शेेर-ए-असम’ की उपाधि दी। स्वतंत्रता के बाद असम के मुख्यमंत्री बनते ही उन्हें शरणार्थी समस्या का सामना करना पड़ा।

पूर्वी पाकिस्तान के बनते ही वहां के हिन्दुओं पर कट्टरपंथी टूट पड़े। लाखों लोग जान बचाकर बंगाल और असम में आ गये। बारदोलोई ने सम्पूर्ण प्रशासनिक तंत्र को काम में लगाकर हिन्दुओं के पुनर्वास की सुचारू व्यवस्था की। इस समय असम के मुसलमान नेताओं ने अपने समर्थकों को भड़काया कि लाखों बाहरी हिन्दुओं के आने से यहां के स्थानीय मुसलमान अल्पसंख्यक हो जाएंगे। इससे मुसलमानों ने दंगे प्रारम्भ कर दिये। इस समस्या को भी बारदोलोई ने बड़े धैर्य से संभालकर वातावरण शांत किया।

उस समय पूरा पूर्वोत्तर भारत असम ही कहलाता था। उसकी सीमाएं चीन और पाकिस्तान से मिलती थीं। राज्य में छोटे-छोटे अनेक जनजातीय समूह थे। यहां ईसाई मिशनरियों ने भी अपना जाल बिछा रखा था। वे इन्हें भारत से अलग होने के लिए प्रेरित करने के साथ ही आर्थिक तथा सामरिक सहयोग भी देते थे। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यातायात की भी समस्या थी। ऐसे वातावरण में  बारदोलोईजी ने बड़ी कुशलता से शासन का संचालन किया। उनका मत था कि असम की दुर्दशा का मुख्य कारण अशिक्षा है। अतः उन्होंने कई विश्वविद्यालय तथा तकनीकी, चिकित्सा, पशु विद्यालय आदि प्रारम्भ कराये। उन्होंने गुवाहाटी में उच्च न्यायालय की भी स्थापना की। संवैधानिक उपसमिति के अध्यक्ष के नाते उन्होंने जनजातियों के अधिकारों की रक्षा की। इस प्रकार जहां एक ओर उन्होेंने असम को भारत में बनाये रखा, वहीं लोगों के हितों की भी उपेक्षा नहीं होने दी।

बारदोलोईजी एक अच्छे लेखक भी थे। जेल में रहकर उन्होंने अनासक्ति योग, श्री रामचंद्र, हजरत मोहम्मद, बुद्धदेव आदि पुस्तकें लिखीं। वे सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे। सदा खादी के वस्त्र पहनने वाले, गोपीनाथ का पांच अगस्त, 1950 को निधन हो गया। भारत सरकार ने मरणोपरांत 1999 में प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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