29 जून / पुण्यतिथि – देहदानी : शिवराम जोगलेकर जी

वर्ष 1943 की बात है. द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी ने युवा प्रचारक शिवराम जोगलेकर से पूछा – क्यों शिवराम, तुम्हें रोटी अच्छी लगती है या चावल ? उत्तर में शिवराम जी ने कुछ संकोच से कहा – गुरुजी, मैं संघ का प्रचारक हूं. रोटी या चावल, जो मिल जाए, वह खा लेता हूं. तब, श्री गुरुजी ने कहा – अच्छा, तो तुम चेन्नई चले जाओ, अब तुम्हें वहां संघ का काम करना है. इस प्रकार शिवराम जी संघ कार्य के लिए तमिलनाडु में आये, तो फिर अंतिम सांस भी उन्होंने वहीं ली.

शिवराम जी का जन्म 1917 में बागलकोट (कर्नाटक) में हुआ था. उनके पिता यशवंत जोगलेकर जी डाक विभाग में काम करते थे, पर जब शिवराम जी केवल एक वर्ष के थे, तब ही पिता का देहांत हो गया. ऐसे में उनका पालन मां सरस्वती जी जोगलेकर ने अपनी ससुराल सांगली में बड़े कष्टपूर्वक किया.

छात्र जीवन में वे अपने अध्यापक चिकोडीकर जी के राष्ट्रीय विचारों से बहुत प्रभावित हुए. उनके आग्रह पर शिवराम जी ने ‘वीर सावरकर’ के जीवन पर एक ओजस्वी भाषण भी दिया. युवावस्था में पूज्य मसूरकर महाराज की प्रेरणा से शिवराम जी ने जीवन भर देश की ही सेवा करने का व्रत ले लिया. सांगली में पढ़ते समय वर्ष 1932 में डॉ. हेडगेवार जी के दर्शन के साथ ही उनके जीवन में संघ यात्रा प्रारम्भ हुई. वर्ष 1936 में इंटर उत्तीर्ण कर पुणे आ गये. यहां उन्हें नगर कार्यवाह की जिम्मेदारी दी गयी. 1938 में बीएससी पूर्ण कर उन्होंने ‘वायु में धूलकणों की गति’ पर एक लघु शोध प्रबंध भी लिखा.

21 जून, 1940 को जब उन्हें डॉ. हेडगेवार जी के देहांत का समाचार मिला, उस दौरान पुणे में मौसम विभाग की प्रयोगशाला में काम कर रहे थे. उन्होंने तत्काल प्रचारक बनने का निश्चय कर लिया, पर पुणे के संघचालक विनायकराव जी आप्टे ने पहले उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने का आग्रह किया. अतः शिवराम जी वर्ष 1942 में स्वर्ण पदक के साथ एमएससी की डिग्री हासिल कर प्रचारक बने.

सर्वप्रथम उन्हें मुंबई भेजा गया और फिर वर्ष 1943 में चेन्नई. तमिलनाडु संघ कार्य के लिए प्रारम्भ में बहुत कठिन क्षेत्र था. वहां के राजनेताओं ने जनता में यह भ्रम निर्माण किया था कि उत्तर भारत वालों ने सदा से हमें दबाकर रखा है. वहां हिन्दी के साथ ही हिन्दू का भी व्यापक विरोध होता था. ऐसे वातावरण में शिवराम जी ने सर्वप्रथम मजदूर वर्ग के बीच शाखाएं प्रारम्भ कीं. इसके लिए उन्होंने व्यक्तिगत संबंध बनाने पर अधिक जोर दिया. उन दिनों संघ के पास पैसा तो था नहीं, अतः शिवराम जी पैदल घूमते हुए नगर की निर्धन बस्तियों तथा निकटवर्ती गांवों में सम्पर्क करते थे. वहां की पेयजल, शिक्षा, चिकित्सा जैसी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्होंने अनेक सेवा केन्द्र प्रारम्भ किये. इससे उनके उठने-बैठने और भोजन-विश्राम के स्थान  क्रमशः बढ़ने लगे. इसमें से ही फिर कुछ शाखाएं भी प्रारम्भ हुईं. सेवा से हिन्दुत्व जागरण एवं शाखा प्रसार का यह प्रयोग अभिनव था.

शिवराम जी अपने साथ समाचार पत्र रखते थे तथा गांवों में लोगों को उसे पढ़कर सुनाते. वे शिक्षित लोगों को सम्पादक के नाम पत्र लिखने को प्रेरित करते थे. इसमें से ही आगे चलकर ‘विजिल’ नामक संस्था की स्थापना हुई. इस प्रकल्प से हजारों शिक्षित लोग संघ से जुड़े. आज तमिलनाडु में संघ कार्य का जो सुदृढ़ आधार है, उसके पीछे शिवराम जी की ही साधना है. 60 वर्ष तक तमिलनाडु में संघ के विविध दायित्व निभाते हुए 29 जून, 1999 को शिवराम जी का देहांत हुआ. उनकी इच्छानुसार मृत्योपरांत उनकी देह चिकित्सा कार्य के लिए दान कर दी गयी.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nine − 7 =