अ.भा.प्र.स. प्रस्ताव – 1, भारतीय परिवार व्यवस्था – मानवता के लिए अनुपम देन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा. ग्वालियर

फाल्गुन शुक्ला 2 – 4,  युगाब्द. 5120  दिनांक 8 -10  मार्च 2019

प्रस्ताव -1

भारतीय परिवार व्यवस्था – मानवता के लिए अनुपम देन

परिवार व्यवस्था हमारे समाज का मानवता को दिया हुआ अनमोल योगदान है. अपनी विशेषताओं के कारण हिन्दू परिवार व्यक्ति को राष्ट्र से जोड़ते हुए वसुधैव-कुटुम्बकम् तक ले जाने वाली यात्रा की आधारभूत इकाई है. परिवार व्यक्ति की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ नई पीढ़ी के संस्कार निर्मिति एवं गुण विकास का महत्त्वपूर्ण माध्यम है. हिन्दू समाज के अमरत्व का मुख्य कारण इसका बहुकेन्द्रित होना है एवं परिवार व्यवस्था इनमें से एक सशक्त तथा महत्त्वपूर्ण केन्द्र है.

आज हमारी परिवार रूपी यह मंगलमयी सांस्कृतिक धरोहर बिखरती हुई दिखाई दे रही है. भोगवादी मनोवृत्ति एवं आत्मकेन्द्रितता का बढ़ता प्रभाव इस पारिवारिक विखंडन के प्रमुख कारण हैं. आज हमारे संयुक्त परिवार एकल परिवारों में परिवर्तित होने लगे हैं. भौतिकतावादी चिन्तन के कारण समाज में आत्मकेन्द्रित व कटुतापूर्ण व्यवहार, असीमित भोग-वृत्ति व लालच, मानसिक तनाव, सम्बंध विच्छेद आदि बुराइयाँ बढ़ती जा रही हैं. छोटी आयु में बच्चों को छात्रावास में रखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. परिवार के भावनात्मक संरक्षण के अभाव में नई पीढ़ी में एकाकीपन भी बढ़ रहा है. परिणामस्वरूप नशाखोरी, हिंसा, जघन्य अपराध तथा आत्महत्याएँ चिन्ताजनक स्तर पर पहॅुंच रही हैं. परिवार की सामाजिक सुरक्षा के अभाव में वृद्धाश्रमों की सतत वृद्धि चिंताजनक है.

अ.भा. प्रतिनिधि सभा का यह स्पष्ट मत है कि अपनी परिवार व्यवस्था को जीवंत तथा संस्कारक्षम बनाए रखने हेतु आज व्यापक एवं महती प्रयासों की आवश्यकता है. हम अपने दैनन्दिन व्यवहार व आचरण से यह सुनिश्चित करें कि हमारा परिवार जीवनमूल्यों को पुष्ट करने वाला, संस्कारित व परस्पर संबंधों को सुदृढ़ करने वाला हो. सपरिवार सामूहिक भोजन, भजन, उत्सवों का आयोजन व तीर्थाटन; मातृभाषा का उपयोग, स्वदेशी का आग्रह, पारिवारिक व सामाजिक परम्पराओं के संवर्धन व संरक्षण से परिवार सुखी व आनंदित होंगे. परिवार व समाज परस्पर पूरक हैं. समाज के प्रति दायित्वबोध निर्माण करने के लिए सामाजिक, धार्मिक व शैक्षणिक कार्यों हेतु दान देने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों के यथासंम्भव सहयोग के लिए तत्पर रहना हमारे परिवार का स्वभाव बने.

हमारी परिवार व्यवस्था की धुरी माँ होती है. मातृशक्ति का सम्मान करने का स्वभाव परिवार के प्रत्येक सदस्य में आना चाहिए. सामूहिक निर्णय हमारे परिवार की परंपरा बननी चाहिए. परिवार के सदस्यों में अधिकारों की जगह कर्तव्यों पर चर्चा होनी चाहिए. प्रत्येक के कर्तव्य-पालन में ही दूसरे के अधिकार निहित हैं.

कालक्रम से अपने समाज में कुछ विकृतियाँ व जड़ताएँ समाविष्ट हो गई हैं. दहेज, छुआछूत व ऊँच-नीच, बढ़ते दिखावे एवं अनावश्यक व्यय, अंधविश्वास आदि दोष हमारे समाज के सर्वांगीण विकास की गति में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं. प्रतिनिधि सभा सम्पूर्ण समाज से यह अनुरोध करती है कि अपने परिवार से प्रांरभ कर, इन कुरीतियों व दोषों को जड़मूल से समाप्त कर एक संस्कारित एवं समरस समाज के निर्माण की दिशा में कार्य करें.

समाज निर्माण की दिशा में पूज्य साधु-सन्तों एवं धार्मिक-सामाजिक-शैक्षणिक-वैचारिक संस्थाओं की सदैव महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. प्रतिनिधि सभा इन सबसे भी अनुरोध करती है कि वे परिस्थिति की गंभीरता को समझकर परिवार संस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए हर सम्भव प्रयास करें. प्रसार के विभिन्न माध्यम समाज को संस्कारित करने का एक प्रभावी साधन हो सकते हंै. इन क्षेत्रों से सम्बंधित विभिन्न विधाओं के महानुभावों से यह सभा निवेदन करती है कि वे सकारात्मक संदेश देने वाली फिल्मों व विविध कार्यक्रमों का निर्माण कर परिवार व्यवस्था की जड़ों को मजबूत करते हुए नई पीढ़ी को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाने में योगदान करें. प्रतिनिधि सभा सभी सरकारों से भी अनुरोध करती है कि वे शिक्षा-नीति बनाने से लेकर परिवार सम्बंधी कानूनों का निर्माण करते समय परिवार व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में अपना रचनात्मक योगदान दें.

परिस्थितिजन्य विवशताओं के कारण एकल परिवारों में रहने के लिये बाध्य हो रहे व्यक्ति भी अपने मूल परिवार के साथ सजीव संपर्क रखते हुए निश्चित अंतराल पर कुछ समय सामूहिक रूप से अवश्य बिताएँ. अपने पूर्वजों के स्थान से जुड़ाव रखना अपनी जड़ों के साथ जुड़ने के समान है. इसलिये वहाँ विभिन्न गतिविधियाँ जैसे परिवार सहित एकत्रित होना, सेवा कार्य करना आदि आयोजित करने चाहिए. बालकों में पारिवारिक एवं सामाजिक जुड़ाव निर्माण करने के लिए उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय परिवेश में रहकर ही कराई जानी चाहिए. अपने निवासक्षेत्र में सामूहिक उत्सवों एवं कार्यक्रमों के द्वारा वृहद परिवार का भाव निर्मित किया जा सकता है. बाल-किशोरों के संतुलित विकास हेतु बालगोकुलम्, संस्कार वर्ग आदि कार्यक्रम करना भी उपयोगी रहेगा.

त्याग, संयम, प्रेम, आत्मीयता, सहयोग व परस्पर पूरकता से युक्त जीवन ही सुखी परिवार की आधारशिला है. इन विशेषताओं से युक्त परिवार ही सभी घटकों के सुखी जीवन को सुनिश्चित करेगा. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सभी स्वयंसेवकों सहित समस्त समाज विशेषकर युवा पीढ़ी का आवाहन करती है कि अपनी इस अनमोल परिवार व्यवस्था को अधिक से अधिक सजीव, प्राणवान, संस्कारक्षम बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएँ.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × 2 =