संघ ने दी वैचारिक चुनौती, भाग खड़े हुए संघ विरोधी

हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय संवाद-सम्मेलन में  आमंत्रित किए जाने के बावजूद भी संघ विरोधियों ने दूरी बनाए रखी। इतना ही नहीं, इन लोगों ने राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रनीति को सुनने और सहमत होने से भी इन्कार कर दिया। प्रायः सभी टी.वी. चैनलों पर भाजपा विराधी दलों के प्रवक्ताओं ने जिस तरह से संघ के राष्ट्रनीति से सम्बन्धित और व्यवहार की खिल्ली उड़ाई उससे संघ का तो कुछ नहीं बिगड़ा उल्टा सत्ता के भूखे इन राजनीतिक दलों की अपनी ही औकात का पर्दाफाश हो गया। यह भी साफ हो गया कि संघ और हिन्दुत्व के विरोधी राष्ट्रहित में भी अपने राजनीतिक स्वार्थों को छोड़ नहीं सकते। इनका लक्ष्य राष्ट्र-निर्माण नहीं सत्ता-निर्माण है।

जब सूर्य उदय होता है तो सभी प्राणी अपने-अपने संस्कारों के अनुसार व्यवहार करने लगते हैं। स्वास्थ्य प्रेमी कुछ लोग सूर्य नमस्कार करके अपने भीतर शक्ति के संचार की कामना करते हैं। कुछ लोग आरती उतार कर अपने भविष्य के लिए मंगल कामना करते हैं। अनेक लोग सूर्य को अर्घ देकर अपनी आध्यत्मिक क्षमता को बढ़ाते हैं। परन्तु ऐसे भी प्राणी भगवान ने बनाए हैं जो चढ़ते सूर्य को देखकर भौंकने लग जाते हैं। संघ के इस कार्यक्रम के दौरान कुछ इसी तरह का ही दृश्य दिखाई दिया। अधिकांश लोगों ने संघ की सर्वस्पर्शी, सार्वभौमिक एवं सार्वग्राहीय विचारधारा एवं वक्त के अनुसार कार्य पद्धति को बदलने के सामर्थ्य की प्रसंशा की। परन्तु पेशे से राजनीतिक व्यापारियों ने अपने दल के संस्कारों में ही रहते हुए अपना संघ विरोधी कारोबार जारी रखा। यह संघ का नहीं उनका अपना ही दुर्भाग्य है। इनके भाग्य में राष्ट्रनीति एवं राष्ट्रहित की रेखाएं ही नहीं हैं।

संघ द्वारा सम्पन्न इस कार्यक्रम में सरसंघचालक महोदय ने 135 प्रश्नों के उत्तर दिए। पिछले 93 वर्षों से संघ पर लग रहे सभी आरोपों के बहुत स्पष्ट और तथ्यपरक उत्तर दिए गए। हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, आरक्षण, गोरक्षा, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर, समाज सेवा, राष्ट्ररक्षा, धर्म परिवर्तन, धारा-370, अंर्तजातीय विवाह और अल्पसंख्यक जैसे विषयों पर सरसंघचालक जी ने दृढ़ता और स्पष्टवादिता के साथ अपने विचार रखे। समाज के अनेक वर्गों के प्रतिनिधियों ने संघ की इस राष्ट्रनीति का स्वागत किया परन्तु जिनके दिमागों में निम्न राजनीति और सत्ता के लोभ का कचरा भरा हुआ है उन्हें कुछ भी समझ नहीं आया। कानों में उंगलियां डालकर राजनीति कर रहे इन दलों की आंखों में भी मोतियाबिंद हो गया लगता है जो सामने दीवार पर लिखा हुआ पढ़ भी नहीं सकते।

उल्लेखनीय है कि संघ के आद्यसरसंघचालक डॉक्टर हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत तक इस तरह के संवाद और परस्पर मिलन की पद्धति निरंतर जारी है। ऐसे अनेक महापुरुषों की जानकारी सब को है, परन्तु मैं तीन ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तित्वों की जानकारी देता हूं जिसे पढ़कर संघ विरोधियों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

भारत में साम्यवादी दल की स्थापना करने वाले दो प्रमुख नेता थे मान्वेन्द्रनाथ रॉय और श्रीपाद अमृत डांगे। जनसंघ के तत्कालीन महामंत्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कॉमरेड मान्वेन्द्र नाथ राय से सम्पर्क साधा, उन्हें पढ़ने के लिए हिन्दुत्व आधारित साहित्य दिया और कई कार्यक्रमों में उनको साथ लेकर आए। राय साहब ने इस विचारधारा से प्रभावित होकर ‘सांइंटिफिक ह्यूमिनिज्म’ नामक पुस्तक लिखी और कालांतर में दीन दयाल जी द्वारा रचित ‘एकात्म मानववाद’ के साथ पूर्ण सहमति जताई।

इसी तरह कॉमरेड अमृत डांगे के साथ भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ढेंगड़ी ने सम्पर्क बनाया, संवाद किया, अपने कार्यक्रम दिखाए और साहित्य पढ़ने को दिया। सभी जानते हैं कि श्रीपाद अमृत डांगे हिन्दुत्व की विचारधारा से सहमत हुए।

1975 में देश में थोपी गई इमरजेंसी समाप्त होने के बाद मेरी (इस लेख के लेखक) की नियुक्ति पंजाब के फिरोजपुर विभाग में विभाग संघ प्रचारक के रूप में हुई। 1978 में पंजाब के एक शहर फाजिल्का में संघ की शाखा में दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी को आने का निमंत्रण दिया गया। वे उन दिनों में फाजिल्का में अपने किसी धार्मिक कार्यक्रम के निमित्त आए हुए थे। इमाम साहब ने इस निमंत्रण को स्वीकार किया। वे फाजिल्का शाखा के नगर एकत्रीकरण में आए। उन्होंने स्वयंसेवकों के साथ बाकायदा भगवा ध्वज को प्रणाम किया और संघ अधिकारी के भाषण को ध्यानपूर्वक सुना। अंत में वे स्वयंसेवकों के साथ ही प्रणाम की स्थिति में खड़े होकर संघ प्रार्थना में भी शामिल हुए। कार्यक्रम के बाद सामूहिक जलपान को देखकर उन्होंने संघ के कार्यकर्ताओं में व्याप्त सामाजिक समरसता और सेवाभावी चरित्र की जमकर प्रसंशा की।

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि संघ की कार्यपद्धति में संवाद एवं परिचर्चा का विशेष महत्व है। दिल्ली में आयोजित संवाद सम्मेलन में संघ विराधी नहीं आए, इसके कई कारण हैं। आज विपक्ष में कोई भी नेता नहीं है जो संघ की शक्ति को देखने, सुनने और समझने का सामर्थ्य रखता हो। एक भी ऐसा नेता नहीं है जो महात्मा गांधी, महात्मा मदनमोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. अम्बेडक्र, वीर सावरकर, जनरल करियप्पा और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की श्रेणी में आ सकने के काबिल हो।

इस कार्यक्रम का विषय था भारत का भविष्य। आज एक भी ऐसा विपक्षी नेता नजर नहीं आता जिसे भारत के भविष्य की चिंता हो। जिन लोगों को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सता रही हो उन्हें भविष्य के भारत से क्या लेना देना। संघ भारत की विविधता में एकता को खोजता है, जबकि संघ विरोधी इस विविधता में विघटन की तलाश करते हैं। संघ की कार्य शैली लोकतांत्रिक है जबकि संघ विरोधियों में परिवार, जाति, मजहब, क्षेत्र का ही बोलबाला रहता है।

यह जानते हुए भी कि देश में संघ विरोधियों का जमघट है इस कार्यक्रम के मंच से संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बड़े सहज भाव से कहा कि संघ का कोई विरोधी नहीं है और न ही हम किसी को अपना विरोधी मानते हैं। सभी अपने हैं। समन्वय के इसी धरातल पर राष्ट्र के भविष्य को उज्जवल और परम वैभवशाली बनाया जा सकता है।

नरेन्द्र सहगल : पूर्व संघ प्रचारक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्रवादी लेखक

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 + two =