राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष : अयोध्या आंदोलन – 8

तथाकथित मानवतावादी अकबर की कुटिल कूटनीति

इस्लाम की मूल भावना और शरीयत के सभी उसूलों को ताक पर रखकर बाबर ने मंदिर तोड़कर जो मस्जिद का ढांचा खड़ा कर दिया. यह हिन्दू समाज पर एक कलंक का टीका था. बाबर की विजय विदेश की विजय थी. आक्रमणकारी बाबर द्वारा किसी भी प्रकार का स्मृति चिन्ह समस्त भारत का अपमान था. राष्ट्र के हृदय-स्थल पर एक विदेशी आक्रांता द्वारा हिन्दुओं के ही श्रद्धा केन्द्र को ध्वस्त करके बनाए गए इस ढांचे को हिन्दुओं ने कभी स्वीकार नहीं किया. बाबर के बाद हुमांयु के काल में भी हिन्दुओं ने मंदिर की मुक्ति के लिए संघर्ष जारी रखा.

महारानी जयराज कुमारी ने कुलगुरू स्वामी महेश्वरानंद के मार्गदर्शन में राममंदिर का जीर्णोंद्धार करने की विस्तृत योजना बनाई. दिल्ली के तख्त पर हुमांयु का कब्जा हो जाना राममंदिर के जीर्णोद्धार के पवित्र कार्य में बाधक बन गया. हुमांयु द्वारा भेजी गई सैनिक सहायता के बल पर मुगल सेना ने फिर से जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया. महारानी ने मंदिर को बचाने के लिए पूरी ताकत के साथ प्रतिकार किया. स्वामी महेश्वरानंद ने भी अपनी विशाल चिमटाधारी साधू मंडली के साथ मुगल सेना का जमकर विनाश किया. परन्तु मुगल सेना का राक्षसी बाहुल्य और दिल्ली सम्राट का तोपखाना महारानी की सैनिक टुकड़ी पर भारी पड़ गया. स्वामी महेश्वरानंद और महारानी जयराज कुमारी दोनों लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. इस प्रकार रामजन्मभूमि पर कभी हिन्दुओं का तो कभी मुगल सेना का कब्जा होता रहा, परन्तु एक क्षण भी ऐसा नहीं आया जब हिन्दू अपने आराध्य देव श्रीराम के जन्मस्थान की ओर आंखें मूंदकर शांत हो गए हों. एक पीढ़ी संघर्ष की बागडोर दूसरी पीढ़ी के हाथ में देती रही. इस तरह जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन निरंतर चलता रहा.

हुमांयु के बाद अकबर ने कूटनीति का सहारा लिया, उसने दो राजाओं टोडरमल और बीरबल को इस समस्या के समाधान हेतु मध्यस्तता करने के आदेश दिए. इन दोनों हिन्दू नेताओं ने इस नकली मस्जिद में एक चबूतरा बनवा दिया. हिन्दू समाज ने यहीं पर पूजा अर्चना शुरु कर दी.

अकबर द्वारा इस बाबरी ढांचे में चबूतरा बनवाकर हिन्दुओं को पूजा करने की इजाजत देने से नकली मस्जिद का रहा सहा स्वरूप भी समाप्त हो गया. बाबर ने मंदिर में गुम्बद लगवाकर, परिक्रमा सुरक्षित रखकर, भगवान शंकर की मूर्तियों वाले कसौटी के पत्थरों का आधार स्वीकार करके, अंदर की दीवारों पर कमल के आकारों को मान्यता देकर, द्वारों में चंदन की लकड़ी लगाकर, मुख्य द्वार पर गोल चक्र रखवाकर और घंटी की आवाज के साथ मूर्ति पूजा करते हुए पूजा अर्चना की इजाजत देकर इस भवन को मंदिर स्वीकार कर लिया था.

परिणामस्वरूप मुसलमानों का तो इस नकली मस्जिद में आना ही बंद हो गया. वे तो पहले ही यहां आना पसंद नहीं करते थे. आम मुसलमान इसे मंदिर ही मानता था. साधारण मुस्लिम समाज की इस मंदिर के प्रति पूर्ण श्रद्धा थी. वे तो अब भी श्रीराम को अपने आराध्य पूर्वज के रूप में मानते थे. केवल विदेशी मुगल बादशाहों ने ही इस भवन को मस्जिद कहा था.

अकबर के काल में ही हिन्दू समाज ने स्वामी बलरामाचार्य के नेतृत्व में 20 बार मुगलिया फौज के साथ युद्ध किया. प्रत्येक बार अकबर ने शाही फौज भेजकर हिन्दुओं को दबाने का पूरा प्रयास किया. जब हिन्दू थके नहीं, हारे नहीं और उन्होंने मंदिर की मुक्ति हेतू और भी प्रचंड वेग से मुगलों से लोहा लेते रहने का निश्चय किया तो अकबर ने मजबूर होकर राम चबूतरे को पुनः मान्यता दे दी. ध्यान दें कि बाबर द्वारा बनाए गए राम चबूतरे को हुमांयु ने तुड़वा दिया था.

राम चबूतरे का निर्माण हिन्दू समाज की विजय थी. यह विजय वीरों की तरह युद्ध में प्राप्त की थी, यह अकबर द्वारा दिया गया पुरस्कार नहीं था. हिन्दुओं ने अपने पौरुष और भुजबल से मुगल बादशाहों को मंदिर के अस्तित्व को स्वीकार करने को बाध्य किया था. मंदिर चाहे कैसा भी हो, संगमरमर का अथवा कपड़े का या फिर वर्तमान मंदिर की तरह टीन का वह तो मंदिर ही कहा जाएगा.

जन्मभूमि मंदिर के खंडित स्वरूप में ही एक स्थान पर राम चबूतरा बनवाकर हिन्दू समाज चुप नहीं बैठा. मंदिर की पूर्ण मुक्ति और एक भव्य मंदिर का निर्माण इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हिन्दू समाज ने सदियों पर्यन्त बलिदान दिए. अकबर के साथ हुआ समझौता तो हिन्दुओं की उदार और समन्वयात्मक वृति का परिचायक था. यही समझौता जहांगीर और शाहजहां के साथ भी चलता रहा. परन्तु इस कालखंड में भी हिन्दुओं ने जन्मभूमि मुक्ति अभियान को विराम नहीं दिया.

शाहजहां के बाद जब उसका धर्मान्ध बेटा औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो मजहबी उन्माद में पागल हुए इस बादशाह ने हिन्दू समाज और इसके धार्मिक स्थलों को समाप्त करने के ‘खुदाई हुक्म’ को चलाने हेतु अत्याचारों की सारी हदें पार कर दीं. कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों के हाथों कठपुतली बनकर औरंगजेब ने सबसे पहला शाही फैसला अयोध्या के राममंदिर के खण्डहरों और राम चबूतरे को पूर्णतः समाप्त करने का किया.

नरेंद्र सहगल

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