अंतरिक्ष से दुश्मन की हर गतिविधि पर नजर रखेगा भारत

एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को लांच करने से मना कर दिया था। आज अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत से अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करवा रहें हैं
अंतरिक्ष में मिशन शक्ति की हालिया सफलता के तुरंत बाद भारत नें एक और बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस उपग्रह एमिसैट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर दिया ।
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी45 के जरिये इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस उपग्रह एमिसैट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। इसका प्रक्षेपण रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के लिए किया गया है, जिससे उसे रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में मदद मिलेगी।। एमिसैट के साथ 28 विदेशी नैनो उपग्रह भी प्रक्षेपित किए गए हैं जिनमें से अमेरिका के 24, लिथुआनिया के दो और स्पेन व स्विट्जरलैंड के एक-एक उपग्रह शामिल हैं। इन्हें पृथ्वी की तीन अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित कर इसरो ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा प्रयोग किया है। कुछ साल पहले एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को लांच करने से मना कर दिया था। आज स्थिति ये है कि अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत से अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करवा रहें हैं।
एमिसैट सुरक्षा के नजरिए से भी भारत के लिए काफी मायनें रखता है, क्योंकि भारत इसकी सहायता से दुश्मन देशों की मानवीय और संचार दोनों से जुड़ी किसी भी तरह की गतिविधि पर नज़र रखने में सक्षम हो सकेगा। इसका खास मकसद पाकिस्तान की सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक या किसी तरह की मानवीय गतिविधि पर नज़र रखना है। यानी बॉर्डर पर ये उपग्रह रडार और सेंसर पर निगाह रखेगा। एमिसैट को इसरो और डीआरडीओ ने मिलकर बनाया है। यह उपग्रह देश की सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम है। इसका खास मकसद सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक या किसी तरह की मानवीय गतिविधि पर नजर रखना है।
एक साथ लांच का इसरो ने रचा था इतिहास
15 फरवरी 2017 को इसरो ने एक साथ सबसे ज्यादा सैटेलाइट्स लॉन्च करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। 30 मिनट में एक रॉकेट के जरिए 7 देशों के 104 सैटेलाइट्स एक साथ लॉन्च किए थे। इससे पहले यह रिकॉर्ड रूस के नाम था। उसने 2014 में एक बार में 37 सैटेलाइट्स लॉन्च किए थे। कम लागत और बेहतरीन टेक्नोलॉजी की वजह से आज दुनियाँ के कई देश इसरो के साथ व्यावसायिक समझौता करना चाहते हैं। अब पूरी दुनिया में सेटेलाइट के माध्यम से सैन्य निगरानी , टेलीविजन प्रसारण , मौसम की भविष्यवाणी और दूरसंचार का क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं इसलिए उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में तेज बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यवसायिक तौर पर यहां भारत के लिए बहुत संभावनाएं है । कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत है जिसकी वजह से स्पेस इंडस्ट्री में आने वाला समय भारत के एकाधिकार का होगा।]
ग्लोबल सेटेलाइट मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है। अभी यह इंडस्ट्री 200 अरब ड़ॉलर से ज्यादा की है। फ़िलहाल इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है जबकि भारत की हिस्सेदारी अब लगातार साल दर साल बढ़ रही है । सेटेलाइट ट्रांसपोंडर को लीज पर देने, भारतीय और विदेशी क्लाइंटस को रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट की सेवाओं को देने के बदले में हुई कमाई से इसरो का राजस्व लगातार बढ़ रहा है । एक साथ कई उपग्रहों के प्रक्षेपण के सफल होने से दुनिया भर में छोटी सेटेलाइट लॉन्च कराने के मामले में इसरो पहली पसंद बन जाएगा, जिससे देश को आर्थिक तौर पर फायदा होगा।
असल में इतने सारे उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में छोड़ना आसान काम नहीं है। इन्हें कुछ वैसे ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाता है जैसे स्कूल बस बच्चों को क्रम से अलग-अलग ठिकानों पर छोड़ती जाती हैं। बेहद तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष रॉकेट के साथ एक-एक सेटेलाइट के प्रक्षेपण का तालमेल बिठाने के लिए बेहद काबिल तकनीशियनों और इंजीनियरों की जरुरत पड़ती है। अंतरिक्ष प्रक्षेपण के बेहद फायदेमंद बिजनेस में इसरो को नया खिलाड़ी माना जाता है। इस कीर्तिमान के साथ सस्ती और भरोसेमंद लॉन्चिंग में इसरो की ब्रांड वेल्यू में इजाफा होगा। इससे लॉन्चिंग के कई और कॉन्ट्रेक्ट एजेंसी की झोली में गिरने की उम्मीद है।
कम लागत और लगातार सफल लांचिंग की वजह से दुनियाँ का हमारी स्पेस टेक्नॉलाजी पर भरोसा बढ़ा है तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने सेटेलाइट की लांचिंग भारत से करा रहे है । फ़िलहाल हम अंतरिक्ष विज्ञान ,संचार तकनीक ,परमाणु उर्जा और चिकित्सा के मामलों में न सिर्फ विकसित देशों को टक्कर दे रहें है बल्कि कई मामलों में उनसे भी आगे निकल गए हैं। अंतरिक्ष बाजार में भारत के लिए संभावनाएं बढ़ रही है ,इसने अमेरिका सहित कई बड़े देशों का एकाधिकार तोड़ा है। असल में, इन देशों को हमेशा यह लगता रहा है कि भारत यदि अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसी तरह से सफ़लता हासिल करता रहा तो उनका न सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण के क़ारोबार से एकाधिकार छिन जाएगा बल्कि मिसाइलों की दुनिया में भी भारत इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच सकता है कि बड़ी ताकतों को चुनौती देने लगे। पिछले दिनों देश के सामरिक और अंतरिक्ष क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने “मिशन शक्ति” के अंतर्गत सेटेलाइट को मार गिराने वाली एंटी-सेटेलाइट मिसाइल की सफल लॉन्चिंग की थी। साथ ही दुश्मन मिसाइल को हवा में ही नष्ट करने की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल प्रक्षेपण भी भारत कर चुका है जो इस बात का सबूत है कि भारत बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र के विकास में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है। दुश्मन के बैलिस्टिक मिसाइल को हवा में ही ध्वस्त करने के लिए भारत ने सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल बना कर दुनियां के विकसित देशों की नींद भी उड़ा चुका है।
अरबों डालर का मार्केट होनें की वजह से भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी । इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग भी संभव है । ऐसे में भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है।
इसरो के इस साल 32 मिशन कतार में हैं। यह एक साल में सर्वाधिक है। चंद्रयान-2 और आदित्य एल-1 (सोलर मिशन) अहम हैं। देश का सबसे वजनी और ताकतवर सेटेलाइट जीसैट-11 सेवाएं देने लगेगा। यह कम्युनिकेशन सेटेलाइट है, जो इंटरनेट स्पीड बढ़ाने में मदद करेगा। इसकी मदद से गांवों में डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ेगी। कुलमिलाकर भारत के एमिसेट के अलावा एक साथ कई उपग्रहों के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण से इसरों को बहुत व्यावसायिक फायदा होगा जो भविष्य में इसरों के लिए संभावनाओं के नयें दरवाजें खोल देगी जिससे भारत को निश्चित रूप से बहुत फ़ायदा पहुंचेगा।
लेखक
शशांक द्विवेदी
साभार
पात्र्चजन्य

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