अब डीयू में भी पैर पसारने लगा वामपंथ, अंग्रेजी पत्रकारिता के नए पाठयक्रम में संघ की छवि धूमिल करने का प्रयास पुरजोर विरोध के बाद अब हटेंगा विवादित अध्याय

जयपुर विसंकें, 29 जुलाई। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में अंग्रेजी पत्रकारिता के नए पाठ्यक्रम में मुजफ्फरनगर दंगों और भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या किए जाने की घटनाओं पर पाठ शामिल करने का पुरजोर विरोध होने के बाद अब विवादित अध्याय हटाने की कवायद तेज हो गई है। अकादमिक परिसद के सदस्य डाॅ. रसालसिंह ने आरोप लगाया कि बदले गए पाठयक्रम में आरएसएस एवं उससे संबद्ध संगठनों को निशाना बनाने और गलत छवि पेश करने का प्रयास किया गया हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे पाठों की स्रोत सामग्री ‘पक्षपाती’ समाचार पोर्टलों से ली गई है, जो अक्सर संघ व सरकार की आलोचना करते हैं। उन्होंने कहा, ‘वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे संबद्ध संगठनों यहां तक कि हमारे प्रधानमंत्री को भी निशाना बना रहे हैं। मैं अकादमिक परिषद की बैठक में यह मुद्दा उठाउंगा और सुनिश्चित करूंगा कि इसे अनुमति न मिले। रसाल सिंह ने दावा किया पाठ्यक्रम में शामिल 2002 में हुए गुजरात दंगों पर आधारित शिल्पा पारलकर की ‘मणिबेन उर्फ बीबीजान’ कहानी, ‘लिटरेचर इन कास्ट’ और ‘इंटेरोगेटिंग क्वीरनेस’ नाम के पेपर में दक्षिणपंथी संगठन और भारतीय संस्कृति की गलत तस्वीर पेश की गई है।

साथ ही, भारतीय संस्कृति, इतिहास, जीवनमूल्यों एवं चिंतन की पूर्ण उपेक्षा और अवहेलना की गयी थी। इन पाठ्यक्रमों से हिंदी में लिखी गयी पुस्तकें और भारतीय विद्वान लगभग गायब कर दिये गये थे। इन पाठ्यक्रमों में मौजूद पूर्वग्रह ,पक्षधरता, मनमानेपन और गड़बड़ियों के असंख्य उदाहरण हैं।

यह पाठ्य-सामग्री विचारधारा विशेष के चुनिंदा लोगों ने राष्ट्रवादी विचार और भारतीय संस्कृति को बदनाम करने के लिए पाठ्यक्रम में शामिल की है। यह छात्र-छात्राओं के कोमल मस्तिष्क में राष्ट्रवादी विचारधारा और उससे सम्बद्ध संगठनों के प्रति नफरत और विद्वेष पैदा करने की साजिश है। वामपंथी विचारधारा के मुट्ठीभर लोग एक व्यक्ति, एक विचारधारा और एक संगठन के विरुद्ध निरंतर षड्यंत्र रचते रहते हैं। राष्ट्र की नींव को कमजोर करने की उनकी यह कोशिश निंदनीय है।
पाठ्क्रमों के माध्यम से व्यक्ति विशेष, संगठन विशेष और विचारधारा विशेष के प्रति घृणा और विद्वेष फैलाने की साजिश का विरोध करने वाले राष्ट्रवादी शिक्षकों को गुंडे कहा जाना शर्मनाक है।

इसलिए हमने (राष्ट्रवादी शिक्षकों, प्रिंसिपलों और प्रोफेसरों ने) अकैडमिक कॉन्सिल की बैठक में अंग्रेजी, इतिहास, समाज-शास्त्र, राजनीति-शास्त्र आदि विषयों के पाठ्यक्रम में मौजूद आपत्तिजनक और विषाक्त पाठ्यसामग्री के ऊपर कड़ा विरोध जताया और उसे तत्काल हटाने की मांग की। विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद ने हमारी तार्किक और तथ्यात्मक आपत्तियों का गंभीर संज्ञान लेकर उपरोक्त विषयों के सभी पाठ्यक्रमों को पुनर्विचार और संशोधन के लिए वापस कर दिया है।

पाठ्यक्रम को लेकर एबीवीपी का प्रदर्शन

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अंग्रेजी पत्रकारिता के नए पाठ्यक्रमों में कथित आपत्तिजनक सामग्री शामिल करने को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति के खिलाफ प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र इकाई एबीवीपी ने कहा कि वह छात्रों पर वामपंथी विचारधारा का एजेंडा थोपने के विश्वविद्यालय के कुछ विभागों के प्रयासों की निंदा करता है। परिषद ने मांग की कि राष्ट्रवादी संगठनों और हिंदू धर्म को लेकर आपत्तिजनक सामग्री पर कथित पक्षपाती लेख हटाए जाएं। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष शक्ति सिंह ने कहा, ‘हम वाम को दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोपेगेंडा थोपने की अनुमति नहीं देंगे। नए पाठ्यक्रम से झूठे और पक्षपात पर आधारित लेखों को हटाना ही होगा। इसके बाद डीयू में अब कार्यकारी समिति ने पाठ्यक्रम में परिवर्तन के लिए 10 दिन का समय दिया है।

इन बिंदुओं पर है विवाद

डीयू में विद्वत परिषद के सदस्य डॉ. रसाल सिंह का कहना है कि चारों विभागों के पाठ्यक्रम का मैने विद्वत परिषद में विरोध किया था। क्योंकि, यह हमें अस्वीकार्य है। इसमें देश, भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन का अपमान किया गया है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी विभाग के पाठ्यक्रम में गुजरात दंगों की पृष्ठभूमि की कहानी, संघ से संबद्ध बजरंग दल, शिशुगृह और शाखा से जुड़े हुए पात्र को बहुत गलत ढंग से दर्शाया गया है और गुजरात दंगों में उसकी हत्यारे की भूमिका दिखाई गई है। मुजफ्फरनगर दंगे और लिंचिंग भी पाठ्यक्रम में शामिल किए गए हैं। इंडियन राइटिंग इंग्लिश की जगह लिटरेचर एंड कास्ट तथा इंटेरोगेटिंग क्वीयरनेस का प्रश्नपत्र रखा गया है।

इसी तरह, इतिहास के पाठ्यक्रम से राजपूत इतिहास, अमीर खुसरो और आंबेडकर गायब हैं। जबकि, नस्लवाद और माओवाद पढ़ाया जाएगा जो हमें स्वीकार नहीं है। समाज शास्त्र विषय से वैदिक समाज, संयुक्त परिवार, ग्राम स्वराज गायब है। राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम में सामाजिक आंदोलन के कोर्स में माओवाद पढ़ाया जाएगा। इसमें भारतीय सामाजिक आंदोलन गायब है। हिंदी में लिखी पुस्तकें व विद्वान गायब हैं। इससे स्पष्ट है कि पाठ्यक्रमों में वामपंथी विचारधारा का जबर्दस्त वर्चस्व और राष्ट्रवादी विचारधारा, भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खिलाफत की गई है। डॉ. सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति, इतिहास, जीवन मूल्यों एवं चिंतन की उपेक्षा और अवहेलना हमें स्वीकार्य नहीं है।

अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. राज कुमार का कहना है कि हम किसी की भावना को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए गुजरात दंगा, मुजफ्फरनगर दंगा, एलजीबीटी में भागवत पुराण के संदर्भ को कोर्स से हटा दिया गया है। अब इसे कमेटी ऑफ कोर्सेस को भेजा जाएगा इसके बाद आर्ट फैकल्टी को भेजा जाएगा। फिर स्टैंडिंग कमेटी के बाद कोर्स पास होगा।

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