आर्थिक स्वतंत्रता तथा समाज के स्वावलंबन के लिये लघु उद्योग स्थापित करने की आवश्यकता – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देश की आर्थिक स्वतंत्रता तथा समाज के स्वावलंबन की प्राप्ति के लिये बड़ी संख्या में लघु उद्योग स्थापित करने की आवश्यकता है. सरसंघचालक जी लघु उद्योग भारती की स्थापना के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि “1994 में लघु उद्योग भारती की स्थापना हुई थी. इसमें मोरोपंत पिंगले जी का बड़ा योगदान रहा. अपने यहां देश की स्वतंत्रता को सुरक्षति रखने के लिए संविधान है. राजनैतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए संविधान में प्रावधान है. सामाजिक स्वतंत्रता के लिए कुछ निर्देश दिये हैं, वो काम समाज यानि हमारा काम है. ईस्ट इण्डिया कम्पनी जैसी बड़ी कंपनियां दो सौ वर्ष पहले नहीं थीं, पर व्यापार तो होता था. उद्यमिता तो थी. मनुष्य की आर्थिक स्वतंत्रता का विषय महत्वपूर्ण है. इसका ध्यान पहले से रखा गया है. आपस में परस्पर निर्भरता का ध्यान पहले से रखा गया है.

आज दो शब्द महत्वपूर्ण हैं, एक समग्र और दूसरा उद्योग परिवार. उद्योगों से सम्बंधित परिवार में यदि परिवार भावना से जो निर्भरता होती है वो स्वतंत्रता को बाधित नहीं करती और व्यापार भावना से जो निर्भरता होती है वो हो सकता है स्वतंत्रता को बाधित करे, यह चलाने वाले की नियत पर निर्भर करता है. संबंधों के आधार पर विचार करना, समग्र विचार करना और विकेन्द्रित विचार करना आवश्यक है.

किसी भी क्षेत्र की सत्ता का महत्व है, आज अर्थ एक सत्ता है, राज्य एक सत्ता है, सामरिक शक्ति यह सत्ता है, इनका स्वरुप एक दूसरे से संपर्क में रहे और मानवहित के लिए सदा एक दिशा में चलती रहे. इस मर्यादा तक विकेन्द्रित होने से स्वतंत्रता का लाभ सबको मिलता है. और ऐसी स्वतंत्रता आर्थिक क्षेत्र में लाना है तो हमें लघु उद्योग, सूक्ष्म उद्योग, मध्यम उद्योग और कारीगिरी पर जोर देना पड़ेगा. यह विचार आज मानसिक, वैचारिक वातावरण में नदारद है. पाश्चात्य विचार संघर्ष का है, जिसके पास बल है वह टिकेगा. मनुष्य के जीवन में उद्योग, व्यापार, और  कृषि तीनों का अपना अपना महत्व है, आवश्यकता है. सम्पति यानि केवल मुद्रा नहीं. प्राकृतिक संसाधन और मनुष्य का पुरुषार्थ का एकत्रित प्रयास यानि सम्पति है, लेकिन वह पर्यावरण का शोषण करके नहीं होना चाहिये. तो वह सम्पति है, समृद्धि है, वह लक्ष्मी कहलाएगी. तीनों को समान रूप से देखना होगा. संतुलित रूप से एक योजना बने.

उन्होंने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से, मनुष्य के आर्थिक स्वातंत्र्य के दृष्टि से, समाज की समृद्धि की दृष्टि से समग्र विचार करना और विकेन्द्रित दृष्टि से विचार करना आवश्यक है. इस दृष्टि पथ से काम करके सम्पूर्ण देश को इस विचार पथ पर लाना है. नहीं तो समस्याओं के उत्तर नहीं मिलेंगे. लघु उद्योग, मध्यम उद्योग, क्षेत्र को संगठित करके एक वातावरण बनाना होगा. समग्र नीति बने उसके लिए शक्ति खड़ी करनी पड़ेगी. यह अपना काम है. लक्ष्य पक्का है. लघु उद्योग, मध्यम उद्योग, सूक्ष्म उद्योग और कारीगिरी पर विचार आगे बढ़ाना होगा. समग्रता, परिवार, संबंधों की बात करनी पड़ेगी. देश का वैचारिक मानसिक वातावरण बदले उसके लिए अपनी स्वयं की मानसिकता बदलनी होगी.

नागपुर के सुरेश भट्ट सभागृह में आयोजित रजत जयंती कार्यक्रम में देशभर से प्रतिभागी भाग ले रहे हैं. कार्यक्रम में मंच पर लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेन्द्र गुप्ता तथा विदर्भ प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र वैद्य उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन गोविन्द लेले जी ने किया.

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