जाति की दीवार तोड़ राष्ट्र निर्माण के पक्ष में खड़े मतदाता

2_03_51_00_Youth-voters_1_H@@IGHT_365_W@@IDTH_675आम चुनाव, 2019 के लिए मतदान के दो चरणों के दौरान एक नया ट्रेंड उभरता दिखा है। यह ट्रेंड मतदाताओं का एक वर्ग है, जो अपने मतदान का आधार उन बातों को नहीं बनाता जो परंपरागत हैं। यह वर्ग किसी पार्टी का कार्यकर्ता नहीं है, उसकी दिलचस्पी राजनीति में नहीं है बल्कि वह राजनीति को देश निर्माण का एक औजार भर मानता है। वह देश को उन्नत होते, आगे बढ़ता देखना चाहता है। यहां उसका विजन भारत तक सीमित नहीं है बल्कि उसमें भारतीय और भारतीयता को विश्व पटल पर छाते देखने का जुनून है। और ऐसे वर्ग में सभी जातियों-वर्गों के युवा शामिल हैं। इन मतदाताओं की एक ही जाति-एक ही धर्म है – नेशन फर्स्ट।
देश में इन चुनावों में 8 करोड़ 40 लाख युवा मतदाता पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे हैं। यानी कुल मतदाताओं का लगभग 9 प्रतिशत। वर्ष 2014 के चुनाव में नये मतदाताओं के लगभग दो तिहाई हिस्से ने भाजपा का समर्थन किया था। इस बार के नये मतदाता आमतौर पर वे युवा हैं जिनका जन्म इक्कीसवीं सदी में यानी वर्ष 2000 या इसके बाद हुआ है। यह पीढ़ी टेक्नोलॉजी और ‘नेशन प्राइड’ से भरी पीढ़ी है। इनमें भरपूर आत्मविश्वास है, ये अपनी जरूरतों और सपनों को पूरा करने के लिए किसी के आसरे नहीं हैं। यह पीढ़ी फोकस्ड है और तर्क और वास्तविकता की धरातल पर रहती है। शायद इसीलिए भाजपा ने अभियान चलाया – ‘मिलेनियम वोट कैम्पेन’ इस अभियान ने युवाओं से भाजपा और मोदी को सीधे जोड़ा है।
उड़ीसा की फर्स्टटाइम वोटर पुष्पिता कहती हैं, ‘नेता वह जो देशहित में दृढ़ फैसले ले’। जाति के सवाल पर कहती हैं, कोई व्यक्ति ब्राह्मण हो या अनुसूचित जाति का, हमारे काम तो वही आयेगा जो मेधावी और दूरदर्शी होगा। बिहार के किशनगंज के युवा मतदाता रितिक चौधरी ने कहा – ‘नेशन फ‌र्स्ट’ मतदाता रोहन यादव का कहना था कि पांच वर्षों में देश का विकास अच्छा हुआ और इससे ज्यादा हो। देश का नाम दुनिया भर में रोशन होता रहे। युवा मतदाता चंदन झा ने कहा देश सुरक्षित है तभी वे सुरक्षित हैं।
पश्चिम बंगाल में हुगली निवासी अंशु कहते हैं ‘यह लोकसभा का चुनाव है, स्थानीय निकायों का नहीं। देश निर्माण और मजबूत नेतृत्व ही समय की मांग है।‘ पश्चिम बंगाल पहले से जातिमुक्त माना जाता रहा है। पश्चिम बंगाल में मतदान के पहले दो चरणों के दौरान जिस तरह हिंसा और मतदाताओं को मतदान करने से रोकने की खबरें आयीं, वह बदली फिजां की कहानी कहती हैं। किसी खास जाति की बजाय पूरे के पूरे गांव के मतदाताओं को वोट देने से रोकने का तृणमूल कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा। मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग स्थानीय पुलिस की बजाय केंद्रीय बलों की सुरक्षा में मतदान कराने की मांग कर रहा है। भाजपा के कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। उनके साथ हिंसा बढ़ रही है। ये खबरें इशारा कर रही हैं कि आम मतदाता स्थानीय स्तर पर सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के हाथ से निकल चुका है।
नोएडा मे रहने वाले कुशीनगर, उत्तर प्रदेश निवासी अमित शुक्ला एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर इशारा करते हैं, ‘आप इस चुनाव में एक नयी बात पायेंगे, हर पार्टी के कार्यकर्ता चुनाव प्रचार कर रहे हैं लेकिन भाजपा के पक्ष में उसके कार्यकर्ताओं के मुकाबले आम लोग ज्यादा प्रचार कर रहे हैं।’ इन आम लोगों को भाजपा ने नियुक्त नहीं किया है, इन आम लोगों को भाजपा के पदाधिकारी या कार्यकर्ता नहीं जानते और न ही ये आम लोग भाजपा के लोगों से संबंध बनाने की कोई कोशिश करते नजर आते हैं लेकिन राष्ट्र के नवनिर्माण के लिए ये अपने स्तर पर भाजपा का प्रचार कर रहे हैं। इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि भाजपा किसे टिकट दे रही है, किस जाति के व्यक्ति को टिकट दे रही है। अमित कहते हैं – ‘ये एक अंडर करेंट है।’
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में चुनावी कवरेज के लिए मोटरसाइकिल से घूमते हुए कस्बाई और ग्रामीण चट्टी-चौराहों की दुकानों पर चाय-पान के लिए रुकना पड़ता है। कुशीनगर में गढ़रामपुर के रास्ते में एक ग्रामीण गुमटी पर पानी की बोतल लेते हुए ताज-तरीन युवा होते दुकानदार से पूछता हूं, कहाँ वोट जायेगा? युवा सीधा जवाब देता है – मोदी को। क्यों? क्योंकि वह मजबूत हैं, देश को आगे बढ़ा रहे हैं। तुम्हारा क्या नाम है? – दिनेश प्रजापति। देवरिया जिले में एक जगह कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। एक स्मार्ट सा लड़का बेलदारी कर रहा है। पूछता हूं – क्या नाम है ? दीपक कन्नौजिया। पढ़ाई क्यों नहीं करते? मजदूरी क्यों कर रहे हो? दीपक बताता है कि कोचिंग की फीस के लिए गर्मी की छुट्टियों में मजदूरी करके पैसे जमा कर रहा है। कौन नेता पसंद है? – मोदी। क्यों? देश को आगे ले जा रहे हैं।
दिल्ली के युवा पारितोष शर्मा स्टार्टअप चलाते हैं –’सवा 100करोड़’ इसके जरिये वे देशभर के छोटे उद्यमियों को आगे बढ़ने में मदद करते हैं। पारितोष स्वरोजगार को बढ़ावा देने में लगे हैं। वे कहते हैं, ‘एक युवा होने के नाते हमारी जिम्मेदारी देश के लिए कुछ करने की है, मांगने की नहीं। देश की सवा 100 करोड़ आबादी हमारी ताकत है, ये बढ़ेंगे तो सब बढ़ेंगे।’ यहां जाति और क्षेत्र महत्वपूर्ण नहीं है। देश का एक भी व्यक्ति आगे बढ़ता है, मजबूत होता है तो देश मजबूत होता है, हम सब मजबूत होते हैं। कई युवाओं ने कहा, रोजगार में सरकारी नौकरियों की हिस्सेदारी है ही कितनी? रोजगार तो हमें खुद पैदा करने होंगे अपनी क्षमता, अपनी मेहनत से – खुद के लिए, औरों के लिए। ये युवा नरेंद्र मोदी की स्टार्टअप पॉलिसी और मुद्रा योजना से प्रभावित हैं और देश के निर्माण में अपनी स्वयं अपनी भूमिका बना रहे हैं।
जाति-धर्म से ऊपर उठ कर राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित देशभर में बिखरे इन मतदाताओं का यह वर्ग छोटे-छोटे गुटों में राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया पर ये युवा विरोधी दलों द्वारा कोई भी तर्क रखे जाने पर तत्काल सत्य की तलाश में जुट जा रहे हैं और मिनटों में सबूत समेत काउंटर कर रहे हैं। देशभर के युवाओं में उभरता राष्ट्र निर्माण और नेशन फर्स्ट का यह ट्रेंड 2019 के आम चुनावों में अपना असर दिखा रहा है।

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