नई दिल्ली।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि आज संविधान की प्रस्तावना को सही से समझने की सबसे ज्यादा जरुरत है जिसके अनुसार भारत एक देश है, जिसमें विभिन्न पंथ, मत, भाषा, जाति के लोग रहते हैं. जिसका मतलब है कि भारतीय संस्कृति इन सब विविधताओं के साथ भी एक है। वे राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद् व राष्ट्रीय उर्दु भाषा विकास परिषद् की ओर से 26 नवम्बर को दिल्ली के इंडिया इंटरनेश्नल सेंटर में ‘सविंधान की प्रस्तावना’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने संविधान के बारे में मूलत: तीन बातों का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर ने कभी भी धारा 370 का समर्थन नहीं किया व इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री के कहने पर अस्थाई रुप से जोड़ा गया, उस समय तो संविधान बनाने वाली सभा के 10 में से 6 सदस्य इसके खिलाफ थे। उन्होंने सेक्लूयर शब्द को लेकर कहा कि यह शब्द मूल प्रस्तावना में नहीं था, इसे बाद में जोड़ा गया. अन्य धर्मों के लोगों से प्रश्न करते हुए कहा कि वे यह तो चाहते हैं कि हिंदू चर्च, मस्जिद आदि में जाये, पर क्या यह वे अपने ऊपर भी लागू करते हैं. अब समय आ गया है, जब एकतरफा सेक्यूलरिज्म़ नहीं चलेगा।
नेशनल बुक्स ट्रस्ट के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि प्रत्येक नागरिक के लिये संविधान जानना बेहद जरुरी है, तभी वह उसमें निहित आचरण को निभा पायेगा. हम भारतवासी है व भारत हमारा है, यही भाव संविधान का मूल मंत्र है.प्रो. मुरलीधर जेटली ने सिंधी भाषा कैसे संविधान में जोड़ी गई, उसका विस्तार से इतिहास बताया। बाबा साहेब आंबेडकर के जीवन का उल्लेख करते हुए सुषमा यादव ने कहा कि अगर उनकी चलती तो आज भारत आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र के ज्यादा नजदीक होता। अरुणा जेठवानी व प्रो. ख्वाजा मुइंतिन ने भी संगोष्ठी को महत्वपूर्ण बताया।