भारतीय अर्थव्यवस्था का विचार भारतीय दृष्टीकोण से ही होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जी

mumbai-bse..जयपुर (विसंकें) . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारतीय दृष्टिकोण, मूल्य और अपनी राष्ट्रीय आवश्यकता ध्यान में रखकर उसी आधार पर अपनी आर्थिक नीति बनाने की आवश्यकता है. दुनियाभर में अलग-अलग अर्थ विचारों की निर्मिति हुई है. उनमें से जो कुछ अच्छा और हितकारक है, वो हमें लेना चाहिए. पर, हमें अपने देश की अर्थनीति स्व-आधार पर ही निर्धारित करनी चाहिए. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, इन चार पुरुषार्थ के आधार पर नीति होनी चाहिए. सरसंघचालक जी सोमवार (16 अप्रैल) को विवेक समूह, गोखले इंस्टीच्यूट ऑफ इकॉनॉमिक्स तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर उन्होंने एक पुस्तक का भी विमोचन किया.

सरसंघचालक जी ने कहा कि भारतीय विचारधारा में केवल परलौकिक का ही चिंतन दिखाई देता है, तथा ऐहिक सुख समृद्धि और कल्याण को दुर्लक्षित किया गया है. ऐसा केवल सर्वसामान्य के मन में ही नहीं तो अभ्यासक तथा विचारवंतों के मन में भी बस गया है. चतुर्विध पुरुषार्थ समझाने वाले हिन्दू धर्म ने अपने अनुयायियों को मोक्षमार्गी बनाकर ऐहिक जीवन की सुख समृद्धि लाने वाले ‘अर्थ’ इस पुरुषार्थ को महत्त्व नहीं दिया था. ‘अर्थ’ नामक पुरुषार्थ की उपासना से ही प्राचीन भारत सुख समृद्धि के वैभव शिखर पर विराजमान था, इसके तथ्य हमारे इतिहास में मिलते हैं.

सरसंघचालक जी ने ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्राचीन भारत के आर्थिक चिंतन के पहलुओं पर रोशनी डालने वाली अंग्रेजी पुस्तक ‘सोशियो-इकोनॉमिक डायनेमिक ऑफ इंडियन सोसायटी – हिस्टॉरिकल ओवरव्यू’ का विमोचन किया. डॉ. मोहन भागवत जी के करकमलों से ‘उद्योग विवेक’ वेबसाईट का लोकार्पण हुआ. उन्होंने ‘भारतीय अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीति – दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर अपना चिंतन बैंकिंग, फंड मैनेजमेंट, फॉरेन पोर्टफोलिओ मैनेजमेंट, म्युच्युअल फंड, ब्रोकर, उद्योजक ऐसे आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत मान्यवरों के सामने रखा.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कोई भी व्यवस्था हो या नीति, वह शाश्वत नहीं रहती. देश – काल – परिस्थिति अनुरूप वह बदल जाती है. देशभर में पिछले कुछ दशकों में इज्म के बारे में बड़े पैमाने पर बोला जा रहा है. लेकिन इज्म का सीमित दायरा है. मानवीय विचार कभी रुकते नहीं, हमारा जीवन भी सीमित नहीं हो सकता. इसलिए इज्म की बात बंद करनी चाहिये. इज्म में हमें कुछ सवालों के ही उत्तर मिलेंगे, कुछ सवालों के उत्तर नहीं मिलेंगे. इसलिये हम जब भी कभी नीति बनाएं, वो किसी भी इज्म के दायरे में सीमित नहीं होनी चाहिये. जिस नीति से समाज के अंतिम व्यक्ति को लाभ हो, अंत्योदय का विचार हो, वही नीति हमारे लिये उचित रहेगी. उन्होंने कहा कि हमें किसी भी एक इज्म या थ्योरी में सीमित नहीं रहना चाहिये, उसका गुलाम नहीं बनना चाहिये. क्योंकि वह थ्योरी जिस समय बनाई गई, उसके बाद से दुनिया में कई सारे बदलाव आए हैं. प्राचीन काल से हमारे देश में ऋषि-मुनियों व अन्य सभी ने सबने प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर विचार करने के लिये प्रवृत्त किया है. देश की अर्थनीति बनाते समय भी ऐसा ही होना चाहिये. प्राचीन भारत में व्यापक रूप में ज्ञान था. अभी हमें भविष्यकाल में आगे बढ़ना है. इस कारण भूतकाल के अनुभवों से कुछ उत्तम, उत्कृष्ट लेना होगा, उसके बिना हम आगे नहीं जा सकेंगे. ऐसा जब होगा, तभी हम भारत के रूप में अपनी पहचान बना सकेंगे.

सरसंघचालक जी ने पूछा कि सुख का मतलब क्या है. इस पर उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य विचार पर अपना मत बताया. उन्होंने कहा कि ‘पाश्चात्य मत से सुख मतलब सिर्फ सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति है. भारतीय विचार में सुरक्षा, समृद्धि, प्रगति के साथ ही शांति, संतोष, संयम, कौशल, त्याग, दान इन बातों का भी ध्यान रखना पड़ेगा. उन्होंने सरकार से अपेक्षा की कि एअर इंडिया कंपनी का निजीकरण करते समय उसकी संपत्ति और व्यावसायिक परिधि का भी विचार करना चाहिये. साथ ही हमारा आकाश विदेशी हाथों में न देते हुए भारतीय नियंत्रण में रहना चाहिये.

नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार जी ने भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ने के लिये तैयार है. फिलहाल अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.3 प्रतिशत है, आगामी साल वह 7.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है और 2018-22 के काल में यह दर 8.5-9 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है. कार्यक्रम में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार प्रमुख अतिथि तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के अध्यक्ष एस. रवि, और सदर ग्रंथ प्रकल्प के समन्वयक डॉ. संजय पानसे, विवेक समूह के प्रबंध संपादक दिलीप करंबलेकर उपस्थित थे.

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