भारत की अखण्डता में मीडिया की भूमिका

जयपुर, 14 सितम्बर 2015। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंद कुमार सोमवार को आई आई एस युनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग के छात्राओं के साथ ‘भारत की अखण्डता में मीडिया की भूमिका’ विषय पर संवाद किया।

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उन्होंने कहा कि नेशन का अर्थ राष्ट्र नहीं है, जैसे धर्म का अंग्रेजी भाषा में कोई पर्यायवाची नहीं है। उसी प्रकार राष्ट्र को समझने के लिए कोई अंग्रेजी शब्द ठीक नहीं हो सकता। राष्ट्र का चिंतन वहां के रहने वाले व्यक्तियों के चिंतन से स्पष्ट होता है। राष्ट्र को राजनैतिक ईकाई में परिभाषित करने से उसका ठीक अर्थ नहीं निकाला जा सकता। भारतीय चिंतन के अनुसार हमने भारत को मां माना है और हजारों वर्ष पहले वेदों में भी यहां के निवासियों को भारत मां का पु​त्र कहा गया है। रा​ष्ट्रीय विषय को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने विदेश ​दौरे से वापस आने पर भारत मां की मिट्टी को अपने माथे पर लगाया व उसको दण्डवत प्रणाम किया और बताया कि मेरे विदेश प्रवास के दौरान जो ​भी विकार मेरे अंदर या बाहर आए हो उनका परिमार्जन माता के स्पर्श मात्र से ही दूर हो सकता है।

जे. नंद कुमार ने बताया कि हमारा यहां के पुर्वजों के प्रति सम्मान व उनके द्वारा स्थापित मानबिंदुओं के प्रति श्रद्धा का भाव राष्ट्र भाव का पोषक है। हमारे देश के ​कुछ विचारकों ने कहा कि अंग्रेजों ने रेल लाईन व पोस्ट आॅफिस द्वारा भारत को एक राष्ट्र बनाया। इसके जवाब में महात्मा गांधी ने कहा के हम हजारों वर्षों से एक थे, इस कारण ही अंग्रेजों ने पूरे भारत में एक सरकार बनाई। जगद्गुरू शंकराचार्य के द्वारा स्थापित चार कोनों पर चार मठ एक राष्ट्र की भावना को स्पष्ट करता है।

उन्होंने कहा कि यह मातृभूमि का विचार ही भारत की एकात्मता का विचार हो सकता है। त्याग और सेवा भारत का मूल विचार है। इनके प्रति कटिबद्धता राष्ट्रीय एकता का एक आधार है। भारत की ज्ञान परंपरा जिसमें सत्य एक है और इसकी ​तरफ जाने के मार्ग कई हो सकते हैं। ये भाव केवल भारत का ही विचार है।

भारतवर्ष में मीडिया राष्ट्र के प्रति एकरूपता व श्रद्धा भाव से काम करता था। पढे लिखे वर्ग के लिए स्मृतियां द्वारा व जो पढे लिखे नहीं थे उनको रामलीलाओं और कहानियों के माध्यम से सूचनाएं देने का कार्य मीडिया द्वारा किया जाता था। परंतु, आज मीडिया में राष्ट्र भाव की अस्पष्टता के कारण याकूब मैमन जैसे विषय पर भी देश की उच्चतम न्यायालय व राष्ट्रपति के प्रति भी समाज में असम्मान का भाव दिखाया जाना कितना गैर जिम्मेदाराना लगता है। देश के शत्रुओं के प्रति सभी का एक भाव होना भी राष्ट्र की अखण्डता का एक मजबूत स्तम्भ है।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व सभी क्रान्तिकारियों ने पत्रकारिता की विधा का बखुबी इस्तेमाल किया। इसी समय पत्रकारिता के कई प्रकारों का उपयोग स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान किया गया। लोकमान्य तिलक जैसे क्रान्तिका​री ने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव, हिंदू साम्राज्योत्सव जैसे त्यौहार मनाना शुरू किया ये भी तो प​त्रकारिता के ही टूल्स थे।

इससे पहले, आई आई एस युनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग की प्रमुख ​श्रीमती गरिमा श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंद कुमार व जयपुर प्रांत के प्रचार प्रमुख महेंद्र सिंघल का पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मान ​किया।

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