भौतिकता के उत्थान में जीवन उत्थान का स्मरण भी रखना चाहिए – सुरेश भय्याजी जोशी

दीनदयाल शोध संस्थान के भवन के नवसृजित मुखारविंद का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी के करकमलों द्वारा हुआ. इस अवसर पर उनके साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा तथा दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी उपस्थित थे. कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय ध्वज के ध्वजारोहण से हुई. इसके पश्चात दीनदयाल शोध संस्थान के महासचिव अतुल जैन ने नवसृजित भवन तथा दीनदयाल शोध संस्थान के ऐतिहासिक प्रतीकों के बारे में अवगत कराया.

इस अवसर पर भय्याजी जोशी ने कहा कि 15 अगस्त का संदेश हम सबसे लिए यही है, जो खोया है उसका हमें स्मरण रहे. सन् 1947 में देश फिर एक बार अपने पैरों पर चलने के लिए खड़ा हो गया, पर क्या सही दिशा में देश चल रहा है? हमारे मनीषियों ने जिस प्रकार का भारत सोचा था, उस दिशा में हम लोग क्या चल पड़े हैं? 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता मिली, भारत के लोगों की सरकार बनी. किन्तु अपने तंत्र से चलाने के लिए जो ऊर्जा शक्ति चाहिए होती है, उसमें कुछ कमी रह गई. सुराज्य की दिशा में तो हम शायद थोड़ा चल पड़े हैं. जितने भी विकास के नाम पर आज जो एजेंडे हम देखते हैं, आवागमन, विज्ञान, सूचना तकनीक आदि मामलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी तुलना कर सकते हैं. बहुत सारी चीजों में अवश्य तरक्की हुई है, परन्तु क्या इसके लिए ही स्वतंत्रता का संघर्ष किया था. देश के लिए शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय ऋषि परंपरा से जुड़े संतों ने देश के लिए जिस प्रकार की कल्पना की थी, उस ‘स्वराज्य’ की दिशा पर हम चल पाए क्या, जबकि भारत में विद्वता और प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, सामर्थ्य की भी कोई कमी नहीं है, पुरुषार्थ की भी कोई कमी नहीं. परन्तु इन सारी शक्तियों को सही दिशा में ले जाने के लिए जो करना चाहिए था वह हुआ क्या, यह सोचने का प्रश्न है.

दीनदयाल शोध संस्थान का यह भवन जिस व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ है, उस दीनदयाल उपाध्याय ने यह देश स्वराज्य की सही दिशा में चले इसके लिए एकात्म मानवदर्शन द्वारा मार्गदर्शन किया है. उस दिशा में चलने की प्रेरणा दीनदयाल शोध संस्थान के इस भवन में आकर प्राप्त होती है. अतः यह निर्जीव वस्तुओं से बना स्मारक नहीं है, यहां पर जीता जागता कुछ अस्तित्व है जो सामान्य व्यक्ति को भी भारतीय ऋषि परम्परा के सिद्धान्तों पर चलने को प्रेरित करता है.

उन्होंने कहा कि कभी-कभी लोगों को लगता है सिद्धान्त कागजों, पुस्तकों, ग्रंथों में ठीक हैं, व्यवहार में लाने की बात नहीं. लेकिन दीनदयाल जी ने जो दर्शन दिया, नाना जी देशमुख उसे व्यवहार में लाए. दीनदयाल जी ने अपनी ख्याति के लिए एकात्ममानव दर्शन नहीं बनाया, उस दर्शन की भावना को समझ कर उस दिशा में कौन चलेगा यह सोचकर बनाया. नानाजी देशमुख का योगदान इस दिशा में महत्वपूर्ण है कि सिद्धान्तों का क्रियान्वयन होना चाहिए. जिसे उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से चित्रकूट, गोंडा में व्यवहार में लाकर दिखाया. यह जमीन पर उतारा जा सकता है व व्यवहार में भी लाया जा सकता है. इसी में देश का उत्थान है. दीनदयाल शोध संस्थान इस दिशा में कार्य करने वाले नानाजी देशमुख जैसे कर्मयोगियों को आपस में जोड़ रहा है.

सरकार्यवाह जी ने कहा कि जीवन का उत्थान केवल भौतिक साधनों से नहीं हो सकता. यह सही है कि ‘भूखे पेट भजन न होत गोपाला’ यह हमारी मान्यता भी है. परन्तु पेट भरने की व्यवस्था में ही हम सिमट कर रह गए और गोपाल को भूल गए. भौतिकता के उत्थान में जीवन का उत्थान भी स्मरण रखकर चलना पड़ेगा. आज स्वतंत्रता दिवस भी है, इस दिन हम देशभक्ति के गीत गाते हैं और देश भावना प्रकट करते हैं. लेकिन अगले दिन यह सब भूल जाते हैं. हमारे सभी पर्व त्यौहार हमें राष्ट्रीयता से जोड़ते हैं, आज आवश्यकता है इन राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पर्वों से मिले संदेश को एक दिन तक सीमित न रखते हुए आगे भी ले जाएं.

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा, पूर्व सह सरकार्यवाह मदनदास देवी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, भाजपा महासचिव रामलाल, दिल्ली भाजपा अध्यक्ष एवं सांसद मनोज तिवारी, के.एन. गोविंदाचार्य व बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nineteen − 6 =