महापुरूषों के जीवन संदेश में अहम् नहीं वरन् वयं की संकल्पना थी – सुरेश भय्या जी जोशी

baithak-samapan-chitrakoot-1नई दिल्ली/चित्रकूट. वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को लेकर कार्य प्रस्तुत करने वाले दीनदयाल शोध संस्थान की ‘प्रबन्ध समिति एवं साधारण सभा’ बैठक के दूसरे दिन प्रथम सत्र की शुरूआत देवार्चन, दीप प्रज्ज्वलन, पुष्पार्चन के साथ हुई. दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन जी ने प्रथम दिन के बैठक के कुछ प्रमुख बिन्दु सबके सम्मुख रखे.

दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन जी ने कहा कि मैं राष्ट्र ऋषि नाना जी के यज्ञ रूपी इस पुण्य कार्य में 2001 से जुड़ा. जिस समय, मैं इस समाज कार्यरूपी यज्ञ में जुड़ा, समाज से आर्थिक सहयोग लेने सम्बन्धी कुछ विशेष अनुभव नहीं था. उस समय संघ के वरिष्ठ मदनदास जी ने कहा कि आप समाज से एक-एक रूपया मांगना शुरू करो. लोगों के मन मस्तिष्क में समाज राष्ट्र के लिए मांगने वालों के प्रति क्या चलता है, यह प्रत्यक्ष अनुभव मिलेगा. आज प्रभु कृपा व ऋषि नानाजी की अदृश्य शक्ति के कारण इस दिशा में काम कर पा रहे हैं. दीनदयाल शोध संस्थान के महाप्रबन्धक अमिताभ वशिष्ठ जी ने ‘सेवा एप’ के बारे में जानकारी दी.

दो द्विवसीय बैठक के समापन सत्र में अपना आर्शीवचन देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की दृष्टि को राष्ट्र ऋषि नानाजी ने व्यवहारिक धरातल पर उतारा. ऋषि के मन में अपने राष्ट्र एवं समाज के प्रति एक पीड़ा एवं संवेदना का भाव था, इसीलिए अपने अभिन्न सखा पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों को उन्हीं के नाम से दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना कर उनकी अकाल मृत्यु के बाद संस्थान के विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से व्यवहारिक धरातल पर उतारने का कार्य किया. हमारे देश में जितने भी महापुरूष हुए हैं, उनके जीवन संदेश में कहीं भी अहम् नहीं वरन् वयं आया है. वयं की व्याख्या भी विस्तृत है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति का नहीं विचारों का काम होता है. मैं साधन मात्र हूँ, यह ध्यान में रखना पड़ता है. दायित्व के साथ कर्तव्य भी जुड़ता है. काम करते समय समाज के प्रति अपनत्व का भाव भी कर्तव्य है. अपनत्व के साथ दूसरा बिन्दु आता है संवेदना. राष्ट्र ऋषि नानाजी संवेदना के कारण ही राजनीति छोड़कर समाज कार्य के क्षेत्र में आए. कार्य करते समय हम सबको अपनी कुल परम्पराओं का भी विशेष ध्यान रखना चाहिये. कुल परम्पराओं के अन्तर्गत बाल्यकाल से ही संस्कार मिलते हैं जो समाज को जोड़ने का काम करते हैं. हमारे कारण व्यक्ति के जीवन में क्या परिवर्तन आया, इस संबंध में भी हम सबको कुछ संकलन करने की व्यवस्था रखनी चाहिये. जिस प्रकार मन्दिर के अन्दर जाने पर एक पवित्र भाव हम सबके अन्दर रहता है, वही भाव मन्दिर के बाहर भी बना रहे तो यह समाज कितनी उन्नति कर जाएगा.

उन्होंने कहा कि समाज कार्य करने वालों को इस दिशा में विशेष ध्यान रखना चाहिये. कार्य करते समय नवीन सहयोगी, परस्पर पूरकता के आधार पर बनते जाएं, इस दिशा में विशेष प्रयास सतत् चलते रहना चाहिये. प्रकृति से एक विशेष सीख लेते हुए पंच महाभूतों के ऊपर श्रद्धा का भाव सतत् रहना चाहिये. संस्कारों का प्रभाव आज अभाव ग्रस्त परिवारों में अधिक देखने को मिलता है, अतः हमें समाज में सतत् ऐसे लोगों की खोज कर अपने काम में जोड़ना चाहिये.

बैठक में संस्थान के अतिरिक्त अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं से आए कुछ विशिष्ट विद्वत्जनों ने भी अपने विचार रखे.

डॉ. प्रदीप त्रिपाठी (भोपाल) आयुर्वेदिक क्षेत्र में दीनदयाल शोध संस्थान किस प्रकार समाज में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर संस्थान की सेवाओं का लाभ देने के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से संस्थान को समर्थ बना सकता है, इस दिशा में दिशा निर्देशन देने के साथ-साथ पूर्ण सहयोग देने की भी सहमति दी. प्रगति मैदान दिल्ली में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय मेले में आयुर्वेदिक स्टाल को मिली ख्याति के बारे में भी सबको जानकारी दी.

राहुल माहेश्वरी जी ने आयुर्वेदिक औषधियों की मार्केटिंग के बारे में जानकारी दी. पंजीकरण कराने के बाद यदि हम किसी ऐसी संस्था से एमओयू कर ले, जिसका बाजार में अच्छा स्थान हो तो हमारे आयुर्वेदिक उत्पादों से संस्थान को अच्छी आर्थिक आय हो सकती है.

जय ताम्रकार जी ने सोलर ऊर्जा के बारे में संस्थान द्वारा इस दिशा में कार्य करने पर अपना पूर्ण सहयोग करने की सहमति व्यक्त की.

डॉ. अनुपम मिश्रा जी कृषि तकनीकी अनुप्रेषण शोध संस्थान (अटारी) ने कहा कि चित्रकूट में वन औषधियां प्रचुर मात्रा में हैं. हमें इस दिशा में भी कुछ व्यवहारिक कार्य करने चाहिये. इस संबंध में हमारा जो भी सहयोग अपेक्षित होगा, हम हमेशा सहयोग हेतु तत्पर रहेंगे.

वीरेन्द्र जायसवाल जी ने गौ आधारित उत्पादों पर कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान गौ आधारित उत्पादों के निर्माण आदि में जब भी किसी भी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा करेगा, पूर्ण सहयोग देने के लिए तत्पर रहेंगे.

बैठक के समापन सत्र में दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन जी ने देश-विदेश से आए कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया.

कल्याण मंत्र…… सर्वे भवन्तु सुखिनः ………. के साथ बैठक सम्पन्न हुई.

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