जयपुर (विसंकें). रॉ के पूर्व अधिकारी एवं सुरक्षा मामलों के जानकार रवि शेखर नारायण सिंह ने कहा कि देश को आज आंतरिक व बाहरी दोनों तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है. जिहादी, माओवादी और चर्च नए संदर्भ में देश के राजनीतिक पटल पर घुस गए हैं. आज देश छद्म युद्ध के दौर से गुजर रहा है. बाहरी ताकतें हमारे अपने ही लोगों की वजह से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बनी हुई हैं. छत्तीसगढ में माओवादी गतिविधियां समाप्त नहीं हुई हैं, बल्कि माओवाद का केंद्र बिंदु के रूप में उभरना राष्ट्र के लिए ज्यादा घातक है. केरल और जेएनयू कैम्पस में राष्ट्र विरोधी गतिविधियां चिंताजनक हैं. देश में एक नई तरह की खूनी विचारधारा का जन्म होना राष्ट्रीय विचारधारा पर सीधा प्रहार है. वे स्व. दत्ताजी उनगॉंवकर स्मृति सेवा न्यास धार द्वारा राजाभोज स्मृति व्याख्यानमाला के दूसरे दिन मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि आसन्न छद्म युद्ध जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें भी तैयार रहना होगा. शबरीमाला विवाद भी बाहरी ताकतों के षड्यंत्र का ही नतीजा है. शबरीमाला में हजारों वर्षों की पुरातन परंपरा को खंडित करने का प्रयास किया गया. उन लोगों की भगवान अय्यप्पा में न श्रद्धा थी, न विश्वास था और न वे धर्म को मानने वाले थे. यह एक तरह से माओवादी, चर्च और जिहादी षड्यंत्र है जो संपूर्ण समाज के लिए चिंता और चिंतन का विषय है. इसें सरकार और न्यायपालिका को गंभीरता से लेना चाहिए, अन्यथा यह आक्रोश कभी भी विस्फोट का रूप ले सकता है. 26/11 की घटना को लेकर हिन्दू आतंकवाद शब्द को गढ़ने वालों को सत्ता की चाबी सौंपना शर्मनाक है.
उन्होंने कहा कि माओवाद की पहुंच पहले से ज्यादा व्यापक और गहरी है. भारत बीते 20-25 वर्षों से छद्म वार झेल रहा है. देश विरोधी गतिविधियां अब राजनीति का हिस्सा बनती जा रही हैं. जाति के नाम पर समाज को बांटने और विकृतियां पैदा करने का घिनौना प्रयास इन दिनों देश के हर हिस्से में चल रहा है. इतिहास और धार्मिक ग्रंथों का जिक्र करते हुए कहा कि अधिकांश ऋषि दलित और निम्न जाति के रहे हैं. फिर जाति के नाम पर बंटवारा क्यों? उन्होंने राष्ट्र की ताकत एकता को बताते हुए कहा कि देश की जड़ों में भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषायी एकता है. यही एकता भारत को समर्थ बनाती है.