राष्ट्र रक्षा के प्रतीक थे राणा प्रताप – मोहन सिंह

7a6c1019-f67d-4afa-b9d1-bcb3960c24de मुग़ल सल्तनत का परचम जब संपूर्ण भारत में लहरा रहा था और मुगल शासक अकबर के चरणों में जब संपूर्ण देश के राजा महाराजा नतमस्तक हो रहे थे, राजस्थान की धरती पर मेवाड़ में महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की स्वतंत्रता व सम्मान की रक्षा के लिए अकबर की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया। प्रताप मानो संपूर्ण हिंदू धर्म व हिंदू समाज के सम्मान के प्रतीक बन गए, तभी तो उन्हें “हिंदुआ सूरज ” कहा गया। यह विचार श्री मोहन सिंह जयपुर प्रांत धर्म जागरण प्रमुख ने महाराणा प्रताप की 478 वी जयंती पर आयोजित सरदार शहर के महाराणा प्रताप स्कूल में रखे । उन्होंने बताया कि प्रताप के सामने दो मार्ग थे, पहला मार्ग था वैभव का सुखों का, पर उन्होंने वह मार्ग नहीं चुना , क्योंकि तब उन्हें गुलामी स्वीकार करनी पड़ती। उन्होंने दूसरा मार्ग चुना ‘कष्टों का संकटों का तथा संघर्षों का’। ऐशो आराम का मार्ग न चुनकर उन्होंने मेवाड़ की तथा अपने पुरखों की उज्जवल एवं गौरवशाली परंपरा का अनुसरण किया, “विदेशी आक्रमणकारियों से देश एवं संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वस्व त्याग एवं बलिदान की परंपरा का।” प्रताप अकबर की अधीनता स्वीकार कर प्रताप अपने पुरखों के गौरव को कलंकित कैसे कर सकते थे।

कार्यक्रम के विशिष्ठ 1112b52e-02a9-4f95-b47e-5693166f06e1अतिथि श्री शिवचंद साहू (वरिष्ठ अधिवक्ता) ने भी प्रताप के महान होने के लिए अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि अपने समय के विश्व के सर्व शक्तिशाली शासक से इतना लंबा मुकाबला किया और हार नहीं मानी तभी राणा प्रताप अकबर से महान हुए। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि श्री विक्रम सिंह राठौड़ थे ।

डॉ बनवारी लाल शर्मा ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया एवम कार्यक्रम की प्रस्तावना श्री जितेंद्र सिंह शेखावत ने रखी। साथ ही इसी वर्ष गाड़िया लुहारों एवम वंचित वर्ग के बालक बालिकाओं के लिये महाराणा प्रताप स्कूल में बाल संस्कार केंद्र खोलने की घोषणा की जिसमे बालकों को वाहन से केंद्र तक लाने ले जाने की व्यवस्था भी होगी ।

संचालन सुभाष सोनगरा ने किया ।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two − two =