स्वाभिमानी राष्ट्र तभी बन सकता है, जब समाज सरकार पर आश्रित न होकर आपसी सहयोग और सहकार के माध्यम से सक्षम बने – डॉ. मोहन भागवत

Mohan-Bhagwat-ji-300x169गुरुग्राम (विसंकें). राष्ट्रीय सहकारी अनुसंधान एवं विकास अकादमी को सहकार भारती के संस्थापक लक्ष्मण इनामदार जी का नाम गुरुग्राम स्थित एनसीडीसी के प्रांगण में उनके जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित सहकार सम्मलेन में दिया गया. सहकार भारती द्वारा आयोजित सम्मलेन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि सहकारिता की गतिविधि प्राचीन समय में भारत से ही चली है, लक्ष्मण राव इनामदार वर्तमान में सहकार भाव के प्रणेता थे. जो सहकारी संस्थाएं इससे पूर्व चल रही थीं, प्रायः देखा गया कि उनको चलाने वालों का ही उद्धार उनसे हो रहा था. जबकि जिनके लिए सहकारिता चलाई जा रही थी, उनका उद्धार नहीं हो रहा था. यह देखते हुए लक्ष्मण इनामदार जी ने 1978 में सहकार भारती की स्थापना की. सहकार भारती ने सहकारिता आंदोलन को भाव के साथ आगे बढ़ाने की दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया है. इसी भाव के साथ देश में अब सहकारिता के क्षेत्र में हम एक बड़ी छलांग लगाने जा रहे हैं. लक्ष्मण राव के भाव को आधार मानते हुए उत्तर भारत में अब सहकारिता के काम को आगे बढ़ाया जाएगा.

सरसंघचालक जी ने कहा कि एक स्वाभिमानी राष्ट्र तभी बन सकता है, जब समाज सरकार पर आश्रित न होकर आपसी सहयोग और सहकार के माध्यम से सक्षम बने. निष्क्रिय बैठे रहने और अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की राह देखते रहने वाला समाज हमको नहीं चाहिए. स्वावलंबी व स्वाभिमानी समाज ही राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जा सकता है. सहकारिता में स्पर्धा की बजाए सहयोग की भावना रहनी चाहिए. सहकारिता किसी पर उपकार नहीं, बल्कि किसी को स्वावलंबी बनाने का कार्य है. नई पीढ़ी स्वयं कुछ करने की सोच रखती है, उसे बस कहीं से साथ की आवश्यकता है, उनको पंख देने का काम सहकार भारती को करना है. परिश्रम करने के लिए युवा तैयार हैं.

उन्होंने कहा कि बिना संस्कार के सहकार नहीं हो सकता और बिना संवेदना के सहयोग नहीं होता, इसलिए हम संस्कारवान और संवेदनशील बनें. सहज आत्मीयता के कारण इनामदार जी लोगों के लिए समय निकाल लेते थे. उनका चारित्रिक शुद्धता का आलोक सबको आकर्षित करता था. सब अपने ही लोग हैं, इस भाव के साथ सहकारिता के काम को लक्ष्मण राव इनामदार करते गए, इस आत्मीय भाव को धारण करने की सभी को आवश्यकता है.

सहकारिता मे अंत्योदय का भाव होना अति आवश्यक है. सहकारिता के जरिए किसी भी प्रकार के भय का मुकाबला परस्पर सहयोग से किया जा सकता है. संस्कार भारती का मूलमंत्र बिना संस्कार, नहीं सहकार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सही है. ज्ञान, पूंजी और श्रम तीनों के सहयोग से सहकारिता का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है. समाज को समर्थ, स्वावलंबी बनाने का कार्य सहकारिता से ही संभव है. विभिन्न भाषा, पंथ, संप्रदाय होने के बावजूद हम सब भारत माता के पुत्र हैं. आपस में सहयोग रहा तो सब संकटों का समाधान है. समाज में आत्मीय भाव से आपसी सहयोग पूरी तरह गैर राजनीतिक होना चाहिए. कार्यक्रम के दौरान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की ओर से तैयार सहकार – 22 पुस्तिका का विमोचन भी किया.

केंद्रीय कृषि व सहकारिता मंत्री राधा मोहन जी ने कहा कि बिना संस्कारवान कार्यकर्ता के सहकार का काम नहीं हो सकता. लक्ष्मण राव इनामदार जिन्हें हम सब वकील साहब के नाम से जानते हैं, उन्होंने ऐसे ही नेतृत्व देने वाले कार्यकर्ता सहकार के क्षेत्र में तैयार किये.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जी ने कहा कि लक्ष्मण राव इनामदार सहकार भारती के पहले महासचिव थे, इससे पूर्व वह गुजरात के प्रान्त प्रचारक थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हीं के तैयार किये स्वयंसेवक हैं जो आज देश का मान बढ़ा रहे हैं. कहा कि शेष भारत की तुलना में उत्तर भारत में सहकारिता के क्षेत्र में कम काम हुआ है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है. यहां लोग सहकार भारती से अधिक सरकार भारती को जानते हैं, इसे सरकार से सहकार में बदलना होगा. लोगों की सरकार पर निर्भरता कम करनी होगी. सहकार के माध्यम से ही रोजगार बढ़ाए जा सकते हैं, उद्यम स्थापित कर स्वावलंबी समाज खड़ा कर सकते हैं.

इस अवसर पर उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त जी सहित सहकार भारती के कार्यकर्ता व अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

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