अज्ञानता को दूर करके अपने स्वरूप का ज्ञान करवाने वाला ही सच्चा गुरू होता है’

शैक्षिक मंथन संस्थान द्वारा ‘गुरू रूठे नहीं ठौर’ विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान

                                          शैक्षिक मंथन संस्थान द्वारा ‘गुरू रूठे नहीं ठौर’ विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान

2 Aविसंके जयपुर। शैक्षिक मंथन संस्थान द्वारा ‘गुरू रूठे नहीं ठौर’ विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान के अवसर पर जयपुर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रो. दयानन्द भार्गव ने कहा कि ‘‘अज्ञानता को दूर करके अपने स्वरूप का ज्ञान करवाने वाला ही सच्चा गुरू होता है।’’

उन्होंने सच्चे गुरू को पाने की बात कही एवं हमारे जीवन की स्वप्न की प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वप्न हमारे अवचेतन मन से आते है। गुरू इस अवचेतन मन को जगाकर ज्ञान का बोध करा देते हैं। अंधकार या नींद को दूर करके ज्ञान का प्रकाश हमारे जीवन में गुरू जलाते है। अपने और पराये के भेद को तोड कर आत्मा के धरातल पर अनुभव करा दें, वह सच्चे गुरू होते है। गुरू हमे ंअस्तित्व से संघर्ष करना, सामंजस्य करना सिखाते है एवं अपूर्णता में पूर्णता का बोध कराते है। बाहरी दुनिया देश समय के अनुसार बदलती रहती है लेकिन अन्दर की दुनिया नहीं बदलती है। गुरू के प्रति समर्पण की भावना अत्यावश्यक है।

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के महामंत्री जे.पी. सिंघल से संगठन की कार्य प्रणाली पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा संगठन शिक्षको हेतु कर्त्तव्य बोध दिवस, समाज उत्थान हेतु शाश्वत जीवन मुल्यों पर कार्यशाला, दूरदराज के क्षेत्रो में रहकर शिक्षण हेतु अनूठा कार्य करने वाले शिक्षकों का सम्मान करता है। इसी तरह से संगठन अनेक तरह के कार्यक्रम आयोजित करता रहा है।

शैक्षिक मंथन पत्रिका के संपादक संतोष पाण्डेय ने गुरू की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरू की महिमा हमेशा से रही है।

गुरू गोविंद दोउ खडे, का के लागु पाये। बलिहारी गुरू आपणे, गोविंद दियो बताये।

गुगल के इस युग में जानकारी तो एकत्रित की जा सकती है लेकिन गुरू के बिना ज्ञान संभव नहीं है।

इस अवसर पर शैक्षिक मंथन पत्रिका के विशेषांक गुरू रूठे नहीं ठौर का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। संस्थान के अध्यक्ष डॉ. विमल प्रसाद अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में गुरू की अत्यंत आवश्यकता है, बिना गुरू के आत्मज्ञान संभव नहीं है। हमारे जीवन में गुरू का प्रभाव परिलक्षित होता है।

पानी पियो छान के, गुरू बनाओ जान के।

इस अवसर पर संस्थान के सचिव महेन्द्र कपूर, मदस के पूर्व कुलपति प्रो. पी.एल. चतुर्वेदी, डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, कन्हैयालाल चतुर्वेदी एवं कई गणमान्य लोग उपस्थित रहें।

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