करोड़ों हिन्दुओं की आस्थाएं श्रीराम मंदिर से जुड़ी हैं – विश्‍व हिन्दू परिषद

vhp-300x169विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन जी ने कहा कि “राममंदिर के लिये चल रहा संघर्ष तात्कालिक नहीं. सन् 1558 में बाबर ने राम मंदिर ध्वस्त किया, तब से यह संघर्ष चल रहा है. सोमनाथ, काशी विश्‍वनाथ मंदिर, मथुरा का कृष्ण जन्म स्थल इन सभी धर्मस्थलों के लिये, यहाँ की आस्था और राष्ट्राभिमान जागृत रखने के लिये हम यह संघर्ष करते आए हैं. सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया, उसी प्रकार अन्य मंदिरों का निर्माण करते तो विदेशी आक्रामकों को सीख मिलती. उनकी आक्रामक गतिविधियों पर रोक लगती और भारत में आतंकवाद का अस्तित्व नहीं होता. लेकिन समय पर उचित कार्रवाई नहीं की गई, जिस के गलत परिणाम हम आज भुगत रहे हैं.”

विश्‍व हिन्दू परिषद द्वारा मुंबई मराठी पत्रकार संघ में पत्रकारों के साथ वार्तालाप का आयोजन किया था. उन्होंने कहा कि “करोड़ों हिन्दुओं की आस्थाएँ श्रीराम मंदिर से जुड़ी हैं. मंदिर के लिये कई लोगों ने बलिदान दिया है. सोलह करोड़ भारतीयों ने मंदिर के लिये आंदोलन किया है. याकूब मेनन केस के लिये रात दो बजे और एक बड़े राजनेता की अंतिम विधि का स्थान निश्‍चित करने के लिये सुबह चार बजे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खुल चुका है. तथापि, राममंदिर मामले में समय निकला जा रहा है. हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए उच्चतम न्यायालय शीघ्र ही निर्णय ले और सरकार राम मंदिर के लिये कानून बनाए, ऐसी हमारी इच्छा है. आवश्यकता हो तो इसके लिये संघर्ष करने की भी हमारी तैयारी है.”

डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि सन् 1947 से आजतक कांग्रेस ने मुसलमानों के पक्ष में राजनीती की है. बाबर, गज़नी, औरंगजेब यही उनके आदर्श रहे हैं, न कि भारतीय आस्थाएं. जिनका आदर्श बाबर हो, वे कभी भारत से नहीं जुड़ सकते. वे हमेशा जिहाद के मार्ग पर ही चलते रहेंगे. वर्तमान सरकार राम मंदिर के बारे में जल्द ही निर्णय लेगी और भव्य मंदिर बनेगा, ऐसी आशा है.

शबरीमला अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के प्रश्न पर कहा कि जो महिला एक्टीविस्ट मंदिर प्रवेश के लिये आग्रही हैं, वास्तव में वे एक्टीविस्ट नहीं, बल्कि अनार्किस्ट (अराजकवादी) हैं. अयप्पा के प्रति उन्हें कोई आस्था नहीं,  बल्कि लोगों की आस्था का मजाक उड़ाने के लिये वहां जा रही हैं. हर एक धर्मस्थल की आस्था स्थानिक समाज द्वारा प्रस्थापित होती है. आस्था का विषय न्यायपालिका से नहीं, बल्कि लोगों की भावना से जुड़ा है.

केवल आक्रांताओं के नाम का ही परिवर्तन

उन्होंने कहा कि हमारा विरोध केवल विदेशी आक्रांताओं के नाम से है. नाम के परिवर्तन का प्रश्‍न धर्म से नहीं, बल्कि आस्था से जुड़ा है. जिन स्थानों को आक्रांताओं का नाम दिया है, उनका नाम परिवर्तन करने को लेकर हमारा आग्रह कायम रहेगा.

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