जयपुर (विसंकें)। भारत में सब समस्याओं की जड़ सही व उचित शिक्षा का न होना है। वर्तमान में शिक्षा केवल और केवल स्वयं एवं परिवार की भलाई के बारे में ही सोचने तक केंद्रित है। जीविकोपार्जन के लिए सरकारी नौकरी की होड़ ने विद्यार्थियों को पासबुक, गेस पेपर वन वीक सीरीज एवं परीक्षा से पूर्व पेपर प्राप्त करने तक ही सीमित कर दिया है जिसके परिणाम स्वरुप पाठ्यक्रम को रटने तथा परीक्षाएं उत्तीर्ण करना ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य रह गया है। ये विचार विद्या भारती राजस्थान के क्षेत्र मंत्री श्री परमेंद्र दशोरा ने जयदेव पाठक जनसेवा प्रन्यास द्वारा आयोजित 11वीं स्वर्गीय जयदेव जी पाठक स्मृति व्याख्यानमाला में रखे।
श्री दुर्गा प्रसाद धानुका उच्च माध्यमिक आदर्श विद्या मंदिर रतनगढ़ चूरू में आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता दशोरा ने “शिक्षा की वर्तमान चुनौतियां एवं हमारा कार्य ” विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में व्यक्ति भौतिक सुविधाएं जुटाने की होड़ में शामिल होकर रह गया है। आज की शिक्षा व्यक्तित्व विकास, वैचारिक स्वतंत्रता, मौलिक चिंतन, नवाचार, चारित्रिक विकास, राष्ट्रीयता की भावना, पर्यावरणीय चिंतन, सर्वपंथ समभाव, सामाजिक समरसता एवं सामाजिक न्याय जैसे किसी भी पक्ष को सिखाने में नाकाम साबित हो रही है। इस स्थिति में विद्या भारती जैसे राष्ट्रव्यापी संगठन ने पूरे भारत में एक नए आयाम की स्थापना कर भारतीयता के संस्कारों से ओतप्रोत राष्ट्र के जागरूक नागरिक के रूप में विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी ली है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्च अध्ययन शिक्षण संस्थान, गांधी विद्या मंदिर सरदारशहर के कुलसचिव श्री दिनेश कुमार थे। उन्होंने कहा कि आजादी से पूर्व दी जाने वाली शिक्षा को व्यक्ति का मार्गदर्शन करने वाली शिक्षा कहा जा सकता है परंतु वर्तमान शिक्षा व्यक्ति के क्षमताओं के प्रकटीकरण में असफल रही है। शिक्षा के बड़े एवम नामचीन केंद्रों पर राष्ट्र विघातक विचारों का प्रदर्शन हमारे लिए बड़ी चुनौती है। जिसको केवल राष्ट्रहित सर्वोपरि शिक्षा के रुप में स्थापित कर ही दूर किया जा सकता है।
कार्यक्रम में विद्या भारती राजस्थान के क्षेत्र उपाध्यक्ष श्री कुंजबिहारी शर्मा, विद्या भारती राजस्थान क्षेत्र संगठन मंत्री श्री शिव प्रसाद समेत पूरे राजस्थान क्षेत्र के संगठन पदाधिकारी उपस्थित थे।
इस कार्यक्रम में श्रेष्ठ प्रधानाचार्य एवं श्रेष्ठ आचार्यों को नकद राशि, शाल, श्रीफल एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।