जनजातीय समाज के अधिकारों के लिए वनवासी कल्याण आश्रम का मोर्चा

महाराष्ट्र के जनजातीय बंधुओं की लंबित मांगों के लिए तथा आदिवासी के रूप में बोगस पंजीकरण कराने वालों पर कार्रवाई किए जाने की मांग को लेकर वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से गुरुवार, 15 नवंबर को मोर्चा निकाला गया. वनवासी कल्याण आश्रम हितरक्षा प्रकल्प के माध्यम से जनजातीय समाज की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास कर रहा है. इसी प्रयास के तहत समाज की समस्याओं पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए मोर्चे का आयोजन किया गया. वनवासी बंधुओं की मांगों के लिए वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया गया. जनजातीय अस्मिता का हुंकार `वणवा’ नाम से निकाले गए मोर्चें में मुंबई के आसपास के जिलों से करीब 15 हजार वनवासी बंधु शामिल हुए.

भायखला से आरंभ हुए इस मोर्चे का समापन आजाद मैदान में हुआ. इस अवसर पर सभा में राज्य के आदिवासी विकास मंत्री विष्णु सावरा उपस्थित थे. वनवासियों की मांगों को मानकर उस पर अमल करने की बात सावरा ने मुख्यमंत्री की ओर से स्पष्ट की. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 06 जुलाई 2017 को दिए फैसले को लागू करने में तकनीकी कठिनाइयां आ रही हैं और उन्हें दिसंबर 2019 तक निपटा लिए जाने की बात भी कही. उन्होंने स्पष्ट किया कि जाति पड़ताल समिति आयुक्त व.सु. पाटील के बोगस जाति प्रमाणपत्र मामले की जांच जारी है और इससे संबंधित लोगों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी.

राज्य में आदिवासी के रूप में बोगस पंजीकरण करने वालों की जांच करना, वन अधिकार कानून के अनुसार सामूहिक वन अधिकार बहाल करने की प्रक्रिया को गतिमान करना, आदिम जनजातियों की विभिन्न समस्याओं का निराकरण तुरंत करने के लिए कदम उठाना, पेसा कानून को लागू करना, जनजातीय समाज की लोक कलाओं का संरक्षण करने के लिए जनजातीय अध्ययन एवं संशोधन केंद्र स्थापित करना, जनजातीय क्रांतिकारियों के स्मारकों का निर्माण करना, जनजातियों का विस्थापन रोकना, आदिवासियों की योजनाओं को लागू करने में टालमटोल करने वालों पर कार्रवाई करना, जनजातीय विद्यार्थियों के भत्ते, छात्रवृत्ति, शुल्क से संबंधित समस्याओं का तत्काल हल निकालने जैसी मांगे वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से की गई हैं.

आदिवासियों का बोगस पंजीकरण वनवासी क्षेत्र में एक बडी समस्या बन चुकी है. जनजातीय समाज की जातियों के नाम में समानता का लाभ लेकर गलत दस्तावेजों के आधार पर जाति प्रमाणपत्र हासिल करके सरकारी नौकरी और शैक्षिक रियायतों का लाभ लिया जा रहा है. इसके चलते आरक्षण के बावजूद उसका लाभ नहीं मिल पाने से जनजातीय बंधु आज भी मौलिक आवश्यकताओं से वंचित हैं. भाषावार प्रांत रचना के बाद मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और आंध्र-तेलंगाना की सीमा से सटे राज्यों में रहने वाली अनुसूचित जातियों के नाम महाराष्ट्र की सूची में शामिल किए गए हैं. इस सूची से उन जातियों के नाम हटाए जाएं जो महाराष्ट्र में नहीं हैं. साथ ही, सामूहिक वन अधिकार के लिए दायर किए गए दावों में से बचे हुए का तत्काल निर्णय किया जाए, महाराष्ट्र की कातकरी, माडिया गोंड और कोलाम – इन तीन जनजातियों के सर्वांगीण विकास के लिए कालबद्ध कार्यक्रम को लागू करने की मांग मोर्चे के माध्यम से की गई है.

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