दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश खाली करना होगा हेराल्ड हाउस

“हेराल्ड मामले में राहुल गांधी और सोनिया गांधी कोर्ट से जमानत पर चल रहे हैं”
दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल हेराल्ड अखबार के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने के आदेश दिए हैं। हेराल्ड हाउस को खाली करने के फैसले को नेशनल हेराल्ड की प्रकाशन कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने दिल्ली हाइकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी थी।
18 फरवरी को एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजनल बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने हालांकि अभी कोई समय-सीमा की बात नहीं कही है कि कब तक हेराल्ड हाउस को खाली करना होगा। दरअसल, हेराल्ड हाउस की लीज खत्म करते हुए शहरी विकास मंत्रालय ने अपने आदेश में उसे 15 नवंबर तक खाली करने को कहा था।
क्या है हेराल्ड मामला
एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को इसे 90 करोड़ का लोन दे दिया। इसके बाद 5 लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई। इस कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल की 38-38 फीसदी व 24 फीसदी हिस्सेदारी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास थी।
इसके बाद 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर ‘यंग इंडियन ‘ को दे दिए गए और इसके बदले यंग इंडियन को कांग्रेस का लोन चुकाना था। 9 करोड़ शेयर के साथ यंग इंडियन को इस कंपनी के 99 फीसदी शेयर हासिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस ने इस लोन को माफ कर दिया। इस हिसाब से यंग इंडिया को एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड का मालिकाना हक मिल गया। भाजपा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी 2012 में इस मामले को कोर्ट में ले गए। 26 जून 2014 को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी के अलावा मोतीलाल वोरा, सुमन दूबे और सैम पित्रोदा को समन जारी कर पेश होने को कहा। तब से यह मामला कोर्ट में चल रहा है
हेराल्ड के शुरू होने से बंद होने तक की कहानी
हेराल्ड हाऊस का आवंटन राजधानी दिल्ली के आईटीओ स्थित प्रेस एंक्लेव में जिस उद्देश्य के लिए किया गया था, उसके लिए उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। दरअसल, वहां समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिए इसका आवंटन किया गया था, लेकिन पिछले 10 सालों से ऐसा नहीं किया जा रहा है। इसमें आवंटन नियमों का उल्लंघन किया गया है।
1937-38 में जवाहरलाल नेहरू ने ‘नेशनल हेराल्ड’ नाम से एक अखबार निकालने का विचार किया और इसके लिए उन्होंने देश के कई शहरों में सरकार से रियायती दर पर जमीन ले ली। इनमें लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, भोपाल, इन्दौर, पटना, पंचकुला जैसे शहर शामिल हैं। इस अखबार का पहला संस्करण 9 सितम्बर, 1938 को लखनऊ से प्रकाशित हुआ था और इसके प्रथम सम्पादक थे जवाहरलाल नेहरू। इसके कुछ वर्ष बाद दिल्ली संस्करण भी निकला। मजे की बात है कि लखनऊ और दिल्ली संस्करणों के अलावा और कहीं से भी नेशनल हेराल्ड का संस्करण नहीं निकला। लेकिन जहां भी सरकार से जमीन ली गई वहां आलीशान भवन जरूर बनाए गए। आज ये सारे भवन किराए पर चढ़े हुए हैं और इन सबका लाभ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ‘परिवार’ को मिल रहा है। 1942 से 1945 तक नेशनल हेराल्ड बन्द रहा। जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद नेशनल हेराल्ड के सम्पादक रामाराव बनाए गए। नेशनल हेराल्ड को हिन्दी में ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘कौमी आवाज’ के नाम से निकाला जाता था। इन तीनों अखबारों को आप विशुद्ध रूप से कांग्रेसी अखबार कह सकते हैं। 1977 के लोकसभा चुनाव में जब इन्दिरा गांधी हार गईं तो नेशनल हेराल्ड को 2 वर्ष के लिए बन्द कर दिया गया। इन्दिरा गांधी के बाद राजीव गांधी ने इस अखबार को संभालने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत कुछ बदल गया था। अखबार निकालने वाली कम्पनी लगातार घाटे पर जा रही थी। इस कारण 1988 में लखनऊ संस्करण को बन्द कर देना पड़ा। केवल दिल्ली संस्करण लगभग 10 वर्ष तक निकलता रहा, लेकिन 1 अप्रैल, 2008 को अचानक दिल्ली संस्करण को भी बन्द करने की घोषणा की गई। वरिष्ठ भाजपा नेता एवं राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी का आरोप है कि नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति को कब्जाने के लिए ही यंग इंडिया कंपनी का गठन किया गया था।
-साभार
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