भारत का अध्यात्म एवं दर्शन ही भारत का परिचय है – डॉ. मनमोहन वैद्य जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि भारत की मूल धारा अध्यात्म है, इसलिए हिन्दू समाज में सबके प्रति स्वीकार्यता है. ये प्राचीन भारतीय दर्शन का सार है. धर्म एक विशुद्ध भारतीय शब्द है, जिसका अर्थ पूजा पद्धति नहीं है. धर्म का अर्थ है – जीवन के संतुलन को बनाए रखना. और ये संतुलन जब बिगड़ता है, तब धर्म की हानि होती है. सह सरकार्यवाह जी संघ के स्वयंसेवकों के राष्ट्रीय योगदान पर आधारित पुस्तक माला कृतिरूप संघ दर्शन के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मप्र उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हौसला प्रसाद सिंह जी थे.

सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि इन पुस्तकों में स्वयंसेवकों के कार्यों का प्रत्यक्ष संकलन किया गया है. भारत का अध्यात्म एवं दर्शन ही भारत का परिचय है, आज बाहर के लोग भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं. भारत की मान्यता है कि सत्य एक है, इसका मुख्य कारण है आध्यात्मिकता. स्वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो में 11 सितंबर को दिए भाषण की 125वीं वर्षगांठ आ रही है, इसमें उन्होंने कहा था – हमारा धर्म भी महान है, सभी धर्मों की मान्यता है, यह भारत का विचार भी है. अन्य धर्मों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के कारण हत्याएं होती हैं. विवेकानन्द जी ने कहा था – सभी धर्मों को अनुसरण करना भारत का दर्शन है.

मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि ‘ऑल इन वन’ न कि ‘ऑल आर वन’, ‘इंडिया इज़ द कंट्री ऑफ डाइवर्स कल्चर एंड वी सेलिब्रेट डाइवर्स कल्चर’. विविधता में एकता हमारे भारतवर्ष की विशेषता है, भारत में कभी अनाज नहीं बेचा जाता था, वस्तु विनिमय के माध्यम से व्यापार किया जाता था. भारत की जीवन दृष्टि में अर्थ और काम के आगे मोक्ष की प्राप्ति ही भारतीय दर्शन है. मैं से बढ़कर हमका दायरा है. अपनेपन के मान से आगे बढ़ना है और यह जोड़ने वाला तत्व धर्म है. धर्म की व्याख्या पूर्व में बिल्कुल स्पष्ट थी, ‘धर्मो रक्षति धर्म:’  धर्म का चक्र हमेशा घूमता रहे. धर्म से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. जगत के हित में ही मेरा मोक्ष है. ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की बात स्वामी जी ने कही थी. धर्म आचरण का अभिन्न अंग है. पर, आज धर्मनिरपेक्ष बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि संघ वैचारिक आंदोलन है. शाखा समाज के लिए 1 घंटे का समय देने का स्थान है. संघ शाखा में – हम सब एक हैं, समाज हमारा एक है, हमें निस्वार्थ भाव से समाज को देना है, यही बताया जाता है. संघ संस्कारों की पाठशाला है, जो अच्छे व्यक्तियों को गढ़कर उन्हें देश के लिए कार्य करने का प्रशिक्षण देता है. संघ स्वयंसेवकों द्वारा 1,70,000 सेवा कार्य प्रत्यक्ष रूप से चलाए जा रहे हैं. भारतीय दर्शन स्वयं के प्रति ईमानदार होना है. भारतीय दर्शन को समाज में उतारना ही हमारा लक्ष्य है. समाज में धर्म चक्र प्रवर्तन लगातार होता रहता है. हमें  प्रत्येक छोटे-छोटे कार्य को करते रहना चाहिए, तभी समाज में संतुलन बना रहेगा.

इस अवसर पर पूर्व न्यायाधीश हौसला प्रसाद सिंह जी ने कहा कि संघ आज सब ओर प्रसिद्ध हो गया है, परंतु संघ के बारे में वास्तविक जानकारी का समाज में अभाव है. कार्यक्रम के आयोजक डॉ. हेडगेवार स्मृति मंडल के अध्यक्ष आशुतोष सहस्त्रबुद्धे जी ने पुस्तक का परिचय करवाते हुए इसके छह खंडों पर प्रकाश डाला.

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