जयपुर (विसंकें). मध्यकालीन भारत में महाराणा प्रताप स्वाधीन चेतना के वैसे ही नायक हैं जैसे बीसवीं शताब्दी में भगत सिंह, आजाद, बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारी थे. महाराणा प्रताप हमारे वास्तविक नायक हैं, जिनका जीवन शौर्य, संप्रभुता, स्वतंत्रता, स्वाभिमान का प्रतिमान था. महाराणा प्रताप का नाम भारत के शिखर के अमर-सपूतों में दर्ज है. प्रताप भारत एवं भारतीयता के प्रतीक हैं.
प्रताप की 422 वीं पुण्यतिथि पर राजस्थान के मेवाड़ की तीसरी राजधानी चावंड में स्थित महाराणा प्रताप की समाधि स्थल सहित देशभर में 19 जनवरी को श्रद्धांजली अर्पित की गई। महाराणा प्रताप पीजी कॉलेज जंगल, धूसड़ में भारत-भारती पखवाड़ा के अन्तर्गत हिन्दुआ सूर्य महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बालमुकुन्द पाण्डेय ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप यश, शौर्य और राष्ट्र स्वाभिमान के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं. उनका सम्पूर्ण जीवन इतिहास उस अक्षयवट के समान है जो युवाओं को निरंतर प्रेरित करता रहेगा. भारतीय चेतना एवं अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए जीवन भर वन में भटकने का मार्ग महाराणा प्रातप ने वैसे ही चुना जैसे श्रीराम ने राष्ट्र रक्षा में आततायियों का वध करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास चुना था.
उन्होंने कहा कि साम्राज्यवादी एवं साम्यवादी मानसिकता के कारण भारतीय इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था. महाराणा प्रताप के जीवन की गौरव गाथा को जानबूझकर नजरअन्दाज एवं विकृत कर दिया गया.