सरकार व मुख्य न्यायाधीश से अपील, शीघ्र प्रारम्भ हो राम मंदिर का निर्माण

केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की हरिद्वार बैठक में संतों ने पारित किया प्रस्ताव

हरिद्वार. विश्व हिन्दू परिषद् के केंद्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक के दूसरे व अंतिम दिन श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण का मामला प्रमुख रहा. आध्यात्मिक नगरी हरिद्वार पधारे पूज्य संतों का कहना था कि मंदिर को भव्यता देने का कार्य शीघ्रातिशीघ्र प्रारंभ हो. इस सम्बन्ध में आयोजित प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए पूज्य जगद्गुरु द्वाराचार्य श्री श्यामदेवाचार्य जी महाराज, नृसिंह पीठ, जबलपुर ने कहा कि हिन्दू समाज का सन् 1528 ई. से ही इस सम्बन्ध में दृढ़ संकल्प रहा है तथा पूज्य संतों के मार्गदर्शन में 1984 से विश्व हिन्दू परिषद् सम्पूर्ण हिन्दू समाज के साथ इसके लिए संघर्षरत है. अब इस पुनीत राष्ट्रीय कार्य में किसी भी प्रकार का विलम्ब उचित नहीं है.

विहिप कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार तथा उपाध्यक्ष चम्पत राय के साथ आयोजित प्रेसवार्ता में उन्होंने याद दिलाया कि भारतीय जनता पार्टी ने 1989 में अपनी पालमपुर की बैठक में प्रस्ताव पारित किया, आडवाणी जी ने रथ यात्रा निकाली तथा 1990 की कारसेवा में अटल जी ने गिरफ्तारी भी दी थी. 2019 के संकल्प पत्र में इस विषय को सम्मिलित करके प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस संकल्प को दोहराने से जनता में सरकार से अपेक्षाएं बढ़ी हैं. सम्पूर्ण विश्व ने यह देखा है कि सभी राम विरोधियों ने मिलकर किस प्रकार न्यायिक प्रक्रिया को भी बाधित करने का कुचक्र रचा.

युगपुरुष पूज्य परमानंद जी महाराज की अध्यक्षता में पूज्य आचार्य अविचल दास जी महाराज द्वारा आज के सत्र में पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है कि “देश का संत समाज सरकार से आह्वान करता है कि भव्य श्रीराममंदिर निर्माण में आने वाली समस्त बाधाओं को अतिशीघ्र दूर करे, जिससे करोड़ों राम भक्तों की आशाओं के अनुरूप श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर का निर्माण हो और ‘श्रीराम जन्मभूमि न्यास’ ही मन्दिर का निर्माण करेगा.

प्रस्ताव पढ़े जाने से पूर्व विहिप उपाध्यक्ष चम्पत राय ने बैठक में उपस्थित पूज्य संतों को इस मामले के विधिक, सामाजिक व अन्य पहलुओं तथा अब तक की स्थिति से उन्हें अवगत कराया.

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि “न्यायपालिका का भी अपनी जिम्मेवारी से मुँह मोड़ना ठीक नहीं रहेगा”. 1950 में पहला मुकदमा दर्ज करने के 60 वर्ष पश्चात 2010 में एक निर्णय मिला था; परन्तु इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच की न्यायिक विसंगति के कारण हिन्दू समाज को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाया. राष्ट्रीय महत्व का यह विषय 2011 से सर्वोच्च न्यायालय में न सिर्फ लंबित है, बल्कि दुर्भाग्य से अभी भी उसकी प्राथमिकता में नहीं है तथा राम विरोधी न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने में जी जान से लगे हैं. अविश्वास का यह वातावरण किसी भी तरह उचित नहीं है.

मार्गदर्शक मण्डल प्रस्ताव के माध्यम से भारत के मुख्य न्यायाधीश का भी आह्वान करते हुए कहा कि “वे इस मामले में शीघ्रातिशीघ्र सुनवाई पूरी करें, जिससे श्रीरामजन्मभूमि के इस मामले का अतिशीघ्र निर्णय हो सके”.

बैठक के सत्र में पूज्य युगपुरुष स्वामी परमानन्द जी महाराज, पू. जगद्गुरु शंकराचार्य ज्ञानानन्द तीर्थ जी महाराज, पू. द्वाराचार्य श्याम देवाचार्य जी महाराज, पू. स्वामी अविचलदास जी महाराज, पू. म.म. हरिहरानन्द जी महाराज, पू. सतपाल जी महाराज, पू. स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज (महामंत्री-सन्त समिति), पू. श्रीमहंत सुरेशदास जी महाराज (दिगम्बर अखाड़ा), पू. श्रीमहंत रविन्द्रपुरी जी महाराज (महानिर्वाणी), पू. श्रीमहंत देवानन्द सरस्वती जी महाराज (जूना अखाड़ा), पू. श्रीमहंत रामजीदास महाराज (निर्मोही अनी अखाड़ा), पू. श्री प्रेमदास जी महाराज (उदासीन जूना अखाड़ा), पू. श्रीमहंत फूलडोल बिहारीदास जी महाराज (चार सम्प्रदाय), पू. साध्वी ऋतम्भरा जी, पू. स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज, पू. म.म. ज्योतिर्मयानन्द जी महाराज, पू. म.म. विज्ञानानन्द जी महाराज, पू. स्वामी रविन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज आदि के अलावा विहिप अध्यक्ष श्री वी.एस. कोकजे उपस्थित थे.

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