“सिक्ख दंगे – कांग्रेस का दोहरा चरित्र”

इटली के चिंतक, विचारक व राजनीति विज्ञानी मकियावेली ने जो कहा है, कांग्रेस उसके बहुत ही समीप है – “ज्ञानियों ने कहा है कि जिसका भविष्य देखना हो उसका भूतकाल देख लो”. इसके बाद कांग्रेस के सिक्ख दंगों से जुड़ाव को लेकर अमेरिकी कवि, चित्रकार व विचारक इमर्सन की कही एक बात भी स्मरण आती है – “उचित रूप से देखें तो इतिहास कुछ भी नहीं है, सब कुछ मात्र आत्मकथा है”. सिक्ख दंगों के समूचे संदर्भों में ये दो बातें कांग्रेस पर शत प्रतिशत चरितार्थ होती हैं.

1984 के सिक्ख दंगों पर राजीव गांधी के अभिन्न मित्र, कृपा पात्र, सलाहकार व राहुल गांधी के “गुरु” सैम पित्रौदा ने हाल ही में कहा कि – “जो हुआ सो हुआ” ये कुछ और नहीं कांग्रेस का स्थायी और इतिहास सिद्ध चरित्र है. सिक्ख दंगों के संदर्भ में इस आलेख में बहुत सारे तथ्यों में से कुछ ही तथ्य आपके सामने रखने जा रहा हूँ, उससे कांग्रेस का यह यह चरित्र सिद्ध नहीं होता कि – “जो हुआ सो हुआ”, बल्कि कांग्रेस यह कहती हुई सिद्ध होती है कि – “जो हुआ सो अच्छा ही हुआ”. तथ्यात्मक विश्लेषण से तो यही बात सामने आती है. यद्दपि “पद्म विभूषण” सैम कह रहे हैं कि उनकी हिंदी अच्छी नहीं है तथापि उनके फ़ाइल वीडियो, आडियो और लेखन, व्याख्यानों को तनिक सा भी देख लें तो उनकी हिंदी अच्छी खासी होने की बात प्रमाणित हो जाती है. सेना द्वारा बालाकोट पर की गई एयर स्ट्राइक के सबूत मांगते समय भी इनकी हिंदी बड़ी ही शानदार थी! भाषा के कंधे पर रख कर अश्लील बन्दूक चलाने से अच्छा होता कि आप अपनी गलती स्वीकार कर लेते.

कांग्रेस का “जो हुआ सो अच्छा ही हुआ” का आचरण सिद्ध होता है, इससे कि, 1985 में प्रधानमंत्री के रूप में जब राजीव गांधी ने संसद में भोपाल गैस त्रासदी व इंदिरा जी को श्रद्धांजलि दी व जांच कमेटी भी बनाई, तब इतने बड़े सिक्ख नरसंहार को लेकर उनके और समूची कांग्रेस पार्टी के किसी नेता के मुंह से सहानुभूति का एक शब्द तक नहीं फूटा था. संसद में मृत सिक्खों को श्रद्धांजलि देने में भी कांग्रेसियों को बरसों लग गए थे. वो तो भला हो सिक्ख समाज की उद्यमशीलता, धनाढ्यता का व विश्व भर में फैले संपर्कों का जिसके कारण सिक्खों ने स्वयं को भारतीय समाज में पुनर्स्थापित कर लिया. अन्यथा यदि कोई अन्य कमजोर समाज होता तो कांग्रेस द्वारा उसे भारत से समूचा ही नेस्तनाबूद ही कर दिया जाता. इतिहास गवाह है कि कांग्रेस द्वारा इस प्रकार के बने सामाजिक दबाव, भय, परिवार के प्राणों के मोह के कारण ही लाखों सिक्खों ने मजबूरन अपने केश कटवा कर मोना (बाल कटा) सिक्ख बन गए थे. उस पीढ़ी के हजारों ऐसे उदाहरण आज भी हमारे आस पास सहजता से मिल जाएंगे, जिन्होंने कांग्रेस प्रेरित इन दंगों से बचने के लिए अपनी केशधारी की पहचान ख़त्म कर ली थी. किंतु उसके बाद वे और उनकी संतानें पुनः केशधारी हो गई हैं.

सिक्ख दंगों के संदर्भ में “जो हुआ सो अच्छा ही हुआ” के आचरण का साक्ष्य यह भी है कि 1987 में जब अंतरराष्ट्रीय व स्थानीय दबाव के कारण सिक्ख कत्लेआम की जांच रिपोर्ट संसद में रखने की बात आई, तब राजीव गांधी बोले थे कि वे अनावश्यक एक “मृत मामले” को हवा नहीं देना चाहते. अपने बड़े संसदीय बहुमत के दंभ में एक प्रधानमंत्री द्वारा सिक्ख दंगों को लेकर गठित एक संवैधानिक आयोग की रिपोर्ट को लेकर ऐसा अलोकतांत्रिक आचरण बड़ा ही विचित्र किंतु दुःखद था. हजारों के कत्ल, बलात्कार, घर जलाने, संपत्ति लूटने की पाशविक घटनाओं को मृत मामला बताने वाले आचरण की कुत्सित रक्तरंजित घटना को “मृत मामला” बताना कांग्रेस और राजीव गांधी की भयंकरतम व अक्षम्य भूल थी. संसद ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई सिक्खों की हत्याओं की निंदा करते हुए कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं किया.

कांग्रेस के सिक्ख दंगों को लेकर जिस “जो हुआ सो अच्छा ही हुआ” के आचरण की बात का एक साक्ष्य यह भी है कि “सिक्ख दंगों के जांच आयोग के अगुआ जस्टिस रंगनाथ मिश्र बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने, फिर मानवाधिकार आयोग के पहले अध्यक्ष बने और फिर राज्यसभा में कांग्रेस के समर्थन से सांसद भी बने. कांग्रेस शासन में इन जांच रिपोर्टों की दुर्गति कर दी गई थी. बीच बीच में गैर कांग्रेसी सरकारों द्वारा इस संदर्भ में की गई कार्यवाही के कारण कुछ रिपोर्टों को कांग्रेस मज़बूरी में सामने लाई. यही कारण था कि अगस्त 2005 में मनमोहन सिंह सरकार ने इसी विषय पर एक दूसरे जांच आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश की, तब जाकर 21 साल पुरानी घटना पर संसद में चर्चा हो पाई थी. इस संदर्भ में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सिक्ख दंगों को लेकर गठित जस्टिस नानावटी आयोग की रिपोर्ट को भी दबाने, प्रभावित करने और परिवर्तित करने के कितने प्रयास किये गए. इस रिपोर्ट में एफ़आईआर दर्ज होने के बावजूद सज्जन कुमार को बाद में दोषी न ठहराने की बात का ज़िक्र था. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जिन जस्टिस रंगनाथ मिश्र ने सिक्ख दंगों के जांच आयोग की अध्यक्षता की थी, उन्हीं रंगनाथ मिश्र को 2002 के गुजरात दंगों की भी जांच सौंपी गई थी.

सिक्ख दंगों के दो प्रमुख दोषियों सज्जन कुमार व जगदीश टाइटलर को बचाने में कांग्रेसी प्रयासों की अपनी एक विस्तृत काली कहानी है. किंतु इस संदर्भ में एक अंतर्कथा यह भी है कि सोनिया गांधी ने सदैव सज्जन कुमार और अन्य सिक्ख दंगों के अपराधियों पर जगदीश टाइटलर को सदैव वरीयता दी और इसका एक मात्र कारण यह था कि जगदीश टाइटलर तथाकथित इसाई शिक्षाविद जेम्स डगलस टाइटलर के पुत्र थे.

कांग्रेस 1984 से लेकर 2009 तक सिक्ख दंगों के आरोपी जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार व धर्मदास शास्त्री को अपनी संसदीय राजनीति से प्रेम पूर्वक व प्रतिष्ठापूर्वक चिपकाए रही थी. नानावटी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि कांग्रेस के पूर्व सांसद धर्मदास शास्त्री के खिलाफ सबूत हैं कि उन्होंने अपने “दो व्यक्तियों” को उकसाकर सिक्खों पर हमले करवाए. सिक्ख दंगों के बाद कांग्रेस व सोनिया गांधी के कृपा पात्र रहे व कांग्रेस द्वारा केंद्रीय मंत्री के पद से नवाजे गए, जगदीश टाइटलर के सम्बन्ध में रिपोर्ट में कहा गया है कि “इस बात के पुख्ता साक्ष्य हैं कि संभवत: सिक्खों पर हमले कराने में उनका हाथ था”. इसी प्रकार कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार के बारे में आयोग की रिपोर्ट में सीधे कहा गया है कि जो मामले उनके खिलाफ़ दर्ज हैं, उनकी जांच की जानी चाहिए. कांग्रेस ने उस समय के उपराज्यपाल, दिल्ली पीजी गवई के विरुद्ध भी कभी कोई कार्यवाही नहीं की, जिनके विषय में न्यायमूर्ति जीटी नानावटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली में क़ानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी उनकी थी, इसलिए उन्हें विफलता की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता. इसी तरह तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एससी टंडन भी सिक्ख दंगों के बाद कांग्रेस के प्रिय और कृपापात्र बने रहे, जिनके बारे में रिपोर्ट में कहा गया है – कानून व्यवस्था की विफलता के लिए उन्हें भी दोषी ठहराया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त दंगों से प्रभावित क्षेत्रों में तैनात बहुत से पुलिस अधिकारियों और थाना प्रभारियों को भी दाषी ठहराया गया है जो बाद में कांग्रेस के स्नेहपात्र बने रहे. आयोग ने कहा कि पुलिस अधिकारियों और सिपाहियों ने दंगों को रोकने और दंगा पीड़ितों को बचाने के लिए त्वरित और पर्याप्त कार्रवाई नहीं की.

नानावटी कमीशन ने यह भी कहा है कि सेना को बुलाने में देर हुई. दंगा ग्रस्त क्षेत्रों में सेना को बुलाने की देरी करने के लिए उत्तरदायी अफसरों को चिन्हित व दंडित न किये जाने की अंतर्कथा भी बहुत से रहस्यों को व रसूखदारों की प्रतिष्ठा को अपने बगल में दबाए हुए है.

कांग्रेस सरकारों ने सिक्ख दंगों को लेकर गठित जांच रिपोर्टों का जो मनमाना अर्थ निकाला और दसियों टाइटलर जैसे दोषियों को अनदेखा किया तो किया, किंतु इससे भी आगे जाकर वह सिक्खों को दंगों का समुचित मुआवजा दिलवाने में भी बाधा बनी रही. मुआवज़े को लेकर सरकार का रवैया था कि केंद्र सरकार की ओर से पहले ही मुआवज़ा दिया जा चुका है.

कांग्रेस शासन में सदैव जैन-बनर्जी समिति की रिपोर्टों को दबा दिया गया, जिसका काम इस बात की जाँच करना था कि ऐसे कौन से मामले थे, जिनमें शिकायतकर्ता के सामने नहीं आने के कारण कार्रवाई नहीं हुई. 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों में आहूजा समिति की रिपोर्ट के विषय में भी समाचार कुछ अच्छे नहीं हैं.

प्रवीण गुगनानी

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