स्वामी श्रद्धानन्द बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे

स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस पर विश्व संवाद केंद्र में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें डॉ. कपिल अग्रवाल द्वारा लिखी पुस्तक भारत की महान् विभूतियां का भी विमोचन किया गया. मुख्य अतिथि बाल संरक्षण आयोग उ.प्र. के अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता ने कहा कि आज के समय में भारत के महापुरुषों की जानकारी देना बहुत ही आवश्यक है. डॉ. कपिल अग्रवाल ने जिस प्रकार से छोटे-छोटे लेखों में भारत की महान विभूतियों का व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय देकर बहुत ही सराहनीय कार्य किया है.

मुख्य वक्ता राष्ट्रदेव के सम्पादक अजय मित्तल ने स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि स्वामी जी का व्यक्तित्व बहुआयामी है. वे एक क्रांतिकारी, समाजसेवी, लेखक, पत्रकार एवं आर्यसमाजी सन्यासी रहे. स्वामी दयानन्द सरस्वती के सान्निध्य में आकर ये वैदिक धर्म के प्रचार के लिये आजीवन समर्पित रहे. उन्होंने बाल विवाह, पर्दा प्रथा, विदेशी शिक्षा, जाति प्रथा व छुआछूत आदि का कड़ा विरोध किया और सामाजिक समरसता के विशेष प्रयास किये. उन्होंने वैदिक तथा भारतीय शिक्षा के प्रचार के लिये हरिद्वार के कांगड़ी गांव में गुरूकुल विश्वविद्यालय की स्थापना की जो आज गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है. उन्होंने ‘सद्धर्म प्रचारक’ ‘अर्जुन’ व ‘तेज’ नाम से पत्रों का प्रकाशन किया. उन्होंने उर्दू और हिन्दी भाषाओं में धार्मिक और सामाजिक विषयों पर लेखन कार्य किया.

उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया और 16 माह तक जेल में भी बंद रहे. लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण और जातिगत भेदभाव देखकर कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया. उन्होंने आगरा में शुद्धिसभा की स्थापना की और आगरा के आसपास के क्षेत्रों में मुसलमान बने लाखों हिन्दुओं की घर वापसी कराई. उनके प्रभाव को देखते हुए एक उन्मादी मुस्लिम युवक ने 23 दिसम्बर, 1926 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. हिन्दुत्व की रक्षा के लिये निर्भिक सन्यासी ने अपना बलिदान कर दिया.

वरिष्ठ कार्यकर्ता डॉ. दर्शन लाल अरोड़ा, एवं अरूण भगत ने भी अपने विचार रखे. विश्व संवाद केन्द्र न्यास के अध्यक्ष आनन्द प्रकाश अग्रवाल ने सभी का आभार प्रकट किया.

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