हम समाज को न भूलें, यही धर्म के व्यवहार का प्रयोजन – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “हम समाज को न भूलें, यह ही धर्म के व्यवहार का प्रयोजन है. संपूर्ण विश्व से बंधुभाव का व्यवहार रखना और उसके लिये  मेहनत करना महत्वपूर्ण है. हम जो कार्य कर रहे हैं, वह समाज को आगे ले जाने के लिये है. यह भाव उस कार्य के पीछे रहना आवश्यक है.” सरसंघचालक जी संघ के ज्येष्ठ कार्यकर्ता स्व. नानाजी पालकर की जन्मशताब्दी और नाना पालकर स्मृति समिति के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित समारोह में संबोधित कर रहे थे. मुंबई के यशवंत नाट्य मंदिर में शुक्रवार, 24 अगस्त को समारोह का आयोजन किया गया था. समारोह में टाटा सन्स के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा  जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे.

सरसंघचालक जी ने कहा कि “समाजकार्य की केवल चर्चा ही की जाती है. परंतु जो कोई यह कार्य करने की दिशा में कदम बढ़ाता है, उनके लिये नानाजी स्वयं एक प्रेरणा हैं. आज हमारे पास कई साधन उपलब्ध हैं. परंतु जिस काल में साधनों का अभाव था, उस काल में बिना किसी की राह देखे, हम से यह कार्य होगा या नहीं इसकी चिंता किये बिना समाज के कुछ घटकों को अपनी आवश्यकता है, यह ध्यान में रखकर वे अपना कार्य करते रहे. हम भी अपनी योग्यता अनुसार समाजकार्य कर सकते है. सिर्फ इच्छा और शुद्ध हेतू की आवश्यकता है. यहां उपस्थित हर व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार नानाजी की तरह समाज कार्य करने का संकल्प करेगा, तो आज का यह समारोह सार्थक होगा.”

नाना जी ने उनके पश्चात् उनका गौरव हो, इस अपेक्षा से कोई समाज कार्य नहीं किया. वह कार्य समाज कल्याण के हेतु किया. उनका स्मरण करना, यह उनका नहीं, हमारा ही सम्मान है. स्व. नानाजी पालकर यह साहित्यिक, चिन्तक, संघटक थे. अपने यह गुण उन्होंने समाज को अर्पित किये. ऐसे समर्पण की आज समाज को आवश्यकता है.

नाना पालकर स्मृति समिति यह संस्था पिछले 50 सालों से रुग्ण सेवा कर रही रहे. मोहन भागवत जी ने कहा कि “जिसे समाज कार्य की इच्छा होती है, ऐसे लोग स्वयं को उस कार्य में जुटा देते है. ऐसे लोग जब एक साथ मिलकर काम करते हैं, तब नाना पालकर स्मृति समिति जैसा कार्य खड़ा होता है. यह केवल चर्चा करने वाली समिति नहीं है. बल्कि यहाँ लोग आत्मीयता से काम करते है. ह्रदय में तड़प हो तभी ऐसा कार्य यशस्वी होता है. हमें भी इस कार्य में हाथ बंटाना चाहिए”.

 समारोह में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रतन टाटा अपना मनोगत व्यक्त करेंगे, ऐसी उपस्थित जनों की अपेक्षा थी. सरसंघचालक जी ने कहा कि रतन टाटा जी को सुनने के लिए उपस्थित जनों की तरह मैं भी उत्सुक था. इस बारे में मैंने जब उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें बोलने में संकोच होता है. दरअसल जो कार्य करते हैं, उन्हें बोलने में संकोच होता है. पर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें सिर्फ बोलने की ही जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जिन्हें बोलना ही पड़ता है. जिन में से मैं भी एक हूँ.” उनके इस कथन से सभागृह में हंसी के ठहाके लगे.

समारोह में स्व. नानाजी पालकर और नाना पालकर स्मृति समिति पर वृत्तचित्र दिखाया गया. तत्पश्चात शेषाद्रीचारी जी द्वारा लिखित ‘SAGA OF ISRAEL’ पुस्तक का विमोचन सरसंघचालक जी और रतन टाटा जी के हाथों संपन्न हुआ. यह पुस्तक स्व. नानाजी लिखित ‘इज़राइल – छळाकडून बळाकडे’ प्रसिद्ध पुस्तक से प्रेरित है. अत्यंत प्रतिकूल अवस्था से उभरकर इज़राइल ने विश्व में अपना स्थान तैयार किया. प्रगति के इस आलेख पर यह पुस्तक आधारित है. समारोह में नानाजी के तैल चित्र का भी अनावरण किया गया.

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