शिक्षा शोषण मुक्त व समरस समाज की सृष्टि करने वाली हो –सरसंघचालक जी

IMG_5370आगरा। रा.स्वयंसेवक संघ ब्रज प्रांत का महाविद्यालीय एवं विश्वविद्यालीय शिक्षक सम्मेलन सम्पन्न हुआ। सम्मेलन के दौरान एक सत्र में प.पू.सरसंघचालक डॉ.मोहनराव भागवत जी का भी रहना हुआ। इस सत्र में ब्रज प्रांत के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, तकनीकी व प्रौद्यौगिकी और प्रबंधकीय शिक्षण संस्थाओं के करीब एक हजार से अधिक शिक्षकगण, कुलपति, कुलसचिवों ने मुक्त चर्चा में भाग लेते हुए मंच के समक्ष अपने विचारों व प्रश्नों को रखा।
अपने संबोधन में डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि वर्तमान शिक्षण पद्धति की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए, तब काम ठीक होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार भात पकाने के लिए पानी और भाप की आवश्यकता होती है, केवल धूप से काम नहीं चलता उसी प्रकार व्यवस्था बनानी है या बदलनी है तो पहले स्वयं को बदलना पडे़गा और उसका माध्यम बनेगी, हमारी मजबूत इच्छाशक्ति। मनुष्य यह मानता है कि मैं जो कहता हूं या करता हूं, वह उत्तम है और मैं कभी गलती नहीं करूंगा। मनुष्य का यह मानना ही पहले अपने दुःख और बाद में समाज के दुःख का कारण बन जाता है।
उन्होंने कहा कि आज देश की शिक्षा व्यवस्था सौ प्रतिशत ठीक, ऐसा हम भी नहीं मानते और जो शिक्षा नीति बनाते हैं, वह भी इस बात से सहमत हैं कि व्यवस्था का पुनर्निरीक्षण होना चाहिए। समाजवाद, पूंजीवादी व्यवस्था को हमने देखा लेकिन, देश में कोई परिवर्तन नहीं आया। व्यवस्था से कुछ नहीं बदला, क्यों ना व्यक्ति से शुरू करें। संघ ने प्रयोग किया व्यक्ति और व्यक्तित्व को बदलने का। संघ के इस प्रयोग से परिवर्तन दिखाई दिया कि लोग जात-पात के भेद को भुलाकर एक सूत्र में बंधे और धीरे-धीरे समाज जागृति की ओर अग्रसर हुआ।
सरसंघचालक जी ने कहा कि गलती अंग्रेजों व मुगलों की नहीं, बल्कि हमारी स्वयं की नादानी है इसलिए समाज को बदलो व्यवस्था अपने आप बदल जाएगी। व्यवस्था अपने आप नहीं चलती, उसे मनुष्य चलाते हैं, महत्व इस बात का है कि चलाने वाला व्यक्ति कैसा है। शिक्षा के द्वारा शिक्षकों को इस प्रकार का प्रयत्न करना चाहिए कि हमारा राष्ट्र शोषण मुक्त व समरस समाज की सृष्टि करने वाला बने। इजराइल पर पांच बार विदेशी विद्रोहियों ने आक्रमण किया. लेकिन, मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लिए वहां के निवासियों ने ना केवल विद्रोहियों को परास्त किया, बल्कि पांचों युद्व में विजय के साथ अपनी सीमा का विस्तार भी किया। उन्होंने कहा कि इजराइल निवासियों की दृढ़ इच्छाशक्ति ने रेगिस्तान वाले देश को आनंदवन बना दिया।

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