श्री गुरूजी जन्मदिन विशेष

4 R30 जनवरी 1948 को दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या हुई। उस घटना की तीव्र और क्रोधित प्रतिक्रियाएं सारे देश में उठने लगी। शीर्षस्थ नेताओं से लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं तक सभी आरएसएस के विरोध में उत्तेजनापूर्ण शब्दों में आग उगलने लगे। महाराष्ट्र में और विशेषकर नागपुर में इन प्रतिक्रियाओं ने उपद्रव और हिंसा का रूप धारण किया। गांधीजी की हत्या हुई, उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन श्री गुरूजी चेन्नई में थे। वहाँ से ही श्री गुरूजी ने इस घटना का निषेध कर सांत्वना प्रकट करने वाले तार पंडित नेहरू, सरदार पटेल तथा देवदास गांधी को भेजे और वे नागपुर के लिए चेन्नई से निकल पड़े। नागपुर आते ही उन्होंने पंडित नेहरू तथा पटेल इन दोनों को विस्तृत पत्र भेजे।

दिनाक 1 फ़रवरी को नागपुर की परिस्थिति स्फोटक बनी।  प्रक्षोभ बढ़ता गया।  आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी की समाधी के शिखरों को तथा तुलसी वृंदावन को उन्मत्त भीड़ ने तोड़ डाला।  दोपहर में श्री गुरूजी के घर के अगल बगल भीड़ ने पथराव किया।  उसी दिन शाम को चिटनीस पार्क में आमसभा हुई, जिसमें वक्ताओं ने उत्तेजनापूर्ण भाषणों से लोगों को उकसाया, भड़काया।  कार्यकर्त्ता तथा अधिकारी श्री गुरूजी की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध थे।  भीड़ को आते देख संघ के अधिकारीयों ने श्री गुरूजी की अन्यत्र व्यवस्था करने की योजना करके उनको वहाँ चलने की प्रार्थना की। कार्यकर्तागण भीड़ का प्रतिकार करने सिद्ध हो गये। परिस्थिति में तनाव हर क्षण बढ़ता जा रहा था। किसी क्षण कुछ भी हो सकता था। पर श्री गुरूजी शांत थे। उनका धैर्य बना हुआ था।

श्री गुरूजी ने कहा – लगता है आप लोग बाहर की परिस्थितियों और आपत्तियों के कारण उत्तेजित हो उठे हो। आप लोग अब यहाँ से जायें और मुझे शांतिपूर्वक रहने दें। मेरी चिंता आप बिलकुल न करें। आप कहते हैं कि मैं अन्यत्र चलूँ, लेकिन क्यों? आज तक मैं जिस समाज के लिये कार्य करता आया हूँ, वह समाज यदि मुझे नहीं चाहता तो मैं कहाँ जाऊँ? और न मेरी रक्षा में आप उपद्रवियों पर प्रत्याघात करें। जिस हिन्दू समाज के लिये मेरा सम्पूर्ण जीवन समर्पित है, उस समाज के बंधू ही मेरे द्वार पर परस्पर संघर्ष करें, और अपने ही बंधुओं का रक्त मेरे घर के सामने गिरे, यह कदापि ठीक नहीं। जो भी होना है, हो जाने दीजिये। अब मेरे संध्यावंदन का समय हो गया है।  आप सभी लोग यहाँ से जाइये।

इतना कहकर श्री गुरूजी संध्यावंदन के लिये चले गये। संयोग से सभा समाप्त होने के कुछ ही मिनट पूर्व श्री गुरूजी के घर की जाने वाले रास्ते बंद कर दिये थे तथा उनके घर पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया।

इस संकटपूर्ण, तनावपूर्ण और प्रक्षुब्ध परिस्थिति में श्री गुरूजी के अतीव धैर्य का ही नहीं अपितु उनकी अनोखी दृष्टि का जो परिचय हुआ, वह इतिहास का एक बोधपृष्ठ सिद्धा हुआ।
(श्री गुरूजी समग्र दर्शन खंड, 2 प्रतिबंध पर्व, पृ. 7 -8 )

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