सेवागाथा.
कृष्णा को पढ़ाई कभी रास नहीं आती थी. अंग्रेजी व गणित के अलावा बाकी विषय उसे कम ही समझ आते थे. कभी – कभी तो एक ही कक्षा में दो साल भी निकल जाते थे. आज वही कृष्णकुमार मध्यप्रदेश के बालाघाट नगर में एमपीईबी में असिस्टेंट इंजीनियर है.
अब मिलते हैं, भोपाल के जिला रजिस्ट्रार गोवर्धन प्रसाद से, झारखण्ड के पिछड़े गांव बिशुनपुर के निर्धन परिवार मे जन्मे गोवर्धन पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे. इनकी कहानी का स्वर्णिम अध्याय लिखा गया, श्रीमती निर्मला सगदेव वनवासी छात्रावास भोपाल में. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक व सेवाभारती के जनक स्वर्गीय विष्णुकुमार जी की प्रेरणा से सन् 1996 में शुरू हुए इस छात्रावास ने कोरकू, भील, गोंड, जैसी विलुप्त हो रही जनजातियों के गरीब परिवारों के सैकड़ों बच्चों को एक सफल व स्वावलंबी जीवन दिया है. यहां से पढ़कर निकले विद्यार्थियों में से 19 इंजीनियर, 05 शिक्षक, एक डॉक्टर सहित अधिकतर ने सफलता की राह पर अपने कदम बढ़ा दिए हैं.
कृष्णा जब यहां आया था, तो आठवीं कक्षा में था व गोवर्धन सातवीं में. यहां के स्नेहमय वातावरण, अनुशासित दिनचर्या, नियमित पढ़ाई के प्रभाव से दोनों ने12वीं मेरिट में पास की. प्रात: 5.00 बजे जगते ही प्रात:स्मरण, योग, समय पर भोजन के साथ नियमित कोचिंग, व खेल के साथ बच्चे अपने काम खुद ही करते हैं. इतना ही नहीं ये महीने में दो बार मोहल्ले के सफाई अभियान में भी सहयोग करते हैं. जन्माष्टमी, दीपावली, गुरूपूर्णिमा जैसे पर्व ये सभी सेवाभारती परिवार के साथ मनाते हैं, तो छात्रावास के वार्षिक उत्सव में उनकी प्रतिभा का लोहा सारा भोपाल मानता है.
गत् 10 बरसों से अधीक्षक की जिम्मेदारी संभाल रहे अनुजकांत उदैनिया कभी बड़े भाई बनकर तो कभी कठोर प्रशासक बनकर यहां पढ़ रहे 52 बच्चों को संभाल रहे हैं. वे बताते हैं कि सेवाभारती की समिति छात्रावास की सारी चिंता करती हैं. आयाम प्रमुख वर्षा जी हों या फिर
अनिता जी, प्रतिभा जी, आशा जी, ये सभी अपने बच्चों की तरह इन विद्यार्थियों की हर जरूरत का ध्यान रखती हैं. वर्तमान में छात्रावास के अध्यक्ष बी.एस. खंडेलवाल एवं विवेक मुंजे का भी मार्गदर्शन छात्रों को मिल रहा है. कुछ लोग यहां अनवरत अपनी सेवाएं दे रहे हैं, इनमें से एक अरूण जी व सपना शेट्टी, ये पति-पत्नी 8 साल से यहां के बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रहे हैं. होस्टल साफ रहे, भोजन की गुणवत्ता बढ़िया हो व छात्रों को कम्पयूटर से लेकर हर तरह की पढ़ाई की सुविधा मिले, इसकी पूरी चिंता समिति करती है. सेवा भारती के कार्यों से प्रभावित होकर शासकीय सर्विस में रहे स्वर्गीय जे.जी सगदेव ने अपना दो मंजिला मकान अपनी पत्नी निर्मला सगदेव की याद में इस छात्रावास को दान में दिया था.
यहां आने वाले सभी बच्चे उन जनजातियों से हैं, जिन तक विकास की किरणें अभी भी नहीं पहुंची. घोर गरीबी, अशिक्षा, नशे की लत के कारण वे लोग दिन ब दिन पिछड़ते ही जा रहे थे. अब ये बच्चे अपने -अपने गांव में परिवर्तन के वाहक बन रहे हैं. प्रांतीय समिति के 15 साल सचिव रहे, वर्तमान में संघ के प्रांत व्यवस्था प्रमुख सोमकांत उमालकर जी का कहना है कि यहाँ से पढ़कर जाने वाले बच्चे अपने परिवार के साथ- साथ पूरे गांव को नशामुक्त करने में भी काफी हद तक सफल रहे हैं.