गढ़मुक्तेश्वर में हुआ था महाभारत में मारे गए योद्धाओं का पिंडदान

GARHMUKTESHARगढ़मुक्तेश्वर का प्राचीन इतिहास और नामकरण
प्रसिद्ध इतिहासकार व अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति के क्षेत्र संगठन मंत्री डाॅ. विघ्नेश त्यागी ने बताया कि गंगा नदी किनारे बसा गढ़मुक्तेश्वर हिन्दुओं का अति प्राचीन व प्रमुख तीर्थस्थान है। वर्तमान में हापुड़ जनपद के अंतर्गत आने वाला गढ़मुक्तेश्वर में ही भगवान राम के पूर्वज महाराज शिवि ने वानप्रस्थ आश्रम यही पर व्यतीत किया था। उस समय के खांडवी वन में भगवान परशुराम ने शिव मंदिर की स्थापना कराई। शिव मंदिर की स्थापना व बल्लभ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र होने के कारण इसका नाम शिवबल्लभपुर भी पड़ा। इसका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है। भगवान विष्णु के गण जय और विजय को भी शिवबल्लभपुर में आकर भगवान शिव की स्तुति करने पर ही शांति मिला और शिव ने उनका उद्धार किया। भगवान विष्णु के इन गणों की मुक्ति होने के कारण ही यह स्थान गणमुक्तेश्वर कहा जाने लगा। कालांतर में अपभ्रंश गढ़मुक्तेश्वर हो गया। महाभारत काल में भी यह जलमार्ग से व्यापार का प्रमुख केंद्र था। हस्तिनापुर की राजधानी का एक भाग गढ़मुक्तेश्वर भी था। हस्तिनापुर जाने-जाने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से 15 किलोमीटर लंबा एक गुप्त मार्ग भी था, जिसके अवशेष आज भी मौजूद है।
महाभारत काल से लगता है कार्तिक पूर्णिमा मेला डाॅ. विघ्नेश त्यागी का कहना है कि पतित पावनी गंगा के किनारे कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले गंगा मेले का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। विध्वंसकारी महाभारत युद्ध के बाद सम्राट युविधिष्ठर के मन में युद्ध विभीषिका और भयंकर नरसंहार से ग्लानि उत्पन्न हुई। युद्ध में मारे गए असंख्य परिजनों और लोगों की आत्मा की शांति के उपाय खोजे जाने लगे। तब योगेश्वर श्रीकृष्ण की अगुवाई में निर्णय लिया गया कि भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिवबल्लभपुर (गढ़मुक्तेश्वर) में मुक्तेश्वर महादेव की पूजा, यज्ञ और गंगा में स्नान करके पिंडदान करने से मृतकों की आत्मा को शांति मिलेगी। इसके बाद शुभ मुहूर्त निकालकर कार्तिक शुक्ला अष्टमी को गऊ पूजन करके गंगा तट पर एकादशी को गंगा मैदान में सभी देवतुल्य पूर्वजों के उत्थान हेतु धार्मिक संस्कार करके पिंडदान किया गया। यही एकादशी देवोत्थान एकादशी कहलाई। एकादशी से चतुदर्शी तक युद्ध में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ किया गया। इसके अगले दिन पूर्णिमा पर गंगा स्नान करके कथा का आयोजन किया। इसके बाद से ही कार्तिक पूर्णिमा पर गढ़मुक्तेश्वर में गंगा नदी पर मेले का आयोजन होता आ रहा है।

गंगा मेले के दौरान गंगा किनारे बस जाता है तंबुओं का नगर
बस जाता है तंबुओं का विशाल नगर
पांडवों द्वारा अपने पूर्वजों व मृतकों के तर्पण के बाद से ही यहां पर कार्तिक पूर्णिमा पर विशाल मेला आयोजित होता जा रहा है। इसमें आने वाले लोगों की संख्या को देखते हुए इसे लक्खी मेला भी कहा जाता है। गढ़मुक्तेश्वर में प्रत्येक वर्ष जिला पंचायत द्वारा मेले का आयोजन कियाजाता है। इस वर्ष मेले में 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। जिसमें सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए जाते हैं। गंगा खादर के विशाल मैदान पर तंबुओं का विशेष नगर बाया जाता है। हापुड़ के साथ-साथ मेरठ, बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, दिल्ली से बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा मेले में भाग लेने आते हैं। हरियाणा के सोनीपत, रोहतक आदि शहरों से भी श्रद्धालु गढ़मुक्तेश्वर पहुंचते हैं। इसमें भैंसा-बुग्गी से कई दिन पहले ही लोग अपने घरों से गंगा मेले के लिए प्रस्थान करते हैं। आधुनिक होते समाज में भी भैंसा-बुग्गी से गंगा स्नान के लिए जाने की परंपरा लोगों में कौतूहल पैदा करती है। सुरक्षा के लिए बैरीकेटिंग के अलावा सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं। गंगा नदी में बोट, गोताखोर तैनात किए जाते हैं। पुलिस और पीएसी की भी तैनाती होती है।

तिगरी में भी लगता है विशाल गंगा मेला
गढ़मुक्तेश्वर के सामने गंगा नदी के दूसरे तट पर अमरोहा जनपद के तिगरी में भी विशाल गंगा मेले का आयोजन किया जाता है। इस गंगा मेले में भी अमरोहा के साथ-साथ संभल, मुरादाबाद, रामपुर, बदायूं, बिजनौर क्षेत्र के लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने पहुंचते हैं।
रंग नहीं ला रही पर्यटकों को लाने की घोषणा
प्रदेश सरकार कई बार गढ़मुक्तेश्वर और गंगा नदी के तट पर स्थित ब्रजघाट को पर्यटक स्थल बनाने की घोषणाएं कर चुकी हैं, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। सरकार ने गढ़मुक्तेश्वर को दूसरा हरिद्वार बनाने की घोषण भी की, लेकिन गढ़मुक्तेश्वर की प्राचीन धरा आज भी सरकारी उपेक्षा के कारण आंसू बहा रही है। पर्यटन विभाग कई बार सर्र्वे कर चुका है, लेकिन धरातल पर आज तक कुछ नहीं हुआ। गंगा स्नान करने आने वाले लोगों को यहां पर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। इस कारण देश-विदेश से पर्यटकों को लाने की योजना रंग नहीं ला पा रही। पूर्व में गाजियाबाद जनपद का भाग रहे गढ़मुक्तेश्वर के लिए पहले गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने भी योजनाएं बनाई थी, लेकिन वह पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ पाई। स्वाधीनता का भी गढ़ रहा है गढ़मुक्तेश्वर गढ़मुक्तेश्वर की जानकारी रखने वाले सुधीर वशिष्ठ बताते हैं कि भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर में महादेव मंदिर की स्थापना की थी। जिसका आज भी बहुत महत्व है। मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के सामने स्थित विशाल बाग शुक्लों के बाग के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस बाग की स्थापना उदयपुर की रानी मीराबाई ने कराई थी। इसे मीराबाई की रेती भी कहा जाता है। मीराबाई द्वारा स्थापित मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट करा दिया। यहां कार्तिक मेले का भारी चढ़ावा आता है। इसलिए औरंगजेब ने उसे अमरोहा के मुस्लिम फीकरों को जागीर के रूप में दे दिया। आज भी मीरा के नाम से यहां भारी चढ़ावा आता है, लेकिन उस पर मुस्लिम फकीरों का ही कब्जा है। अब यहां पर एक बनावटी कब्र बनाकर मकबरे का रूप दे दिया गया है। गढ़मुक्तेश्वर स्वाधीनता संग्राम का भी गढ़ रहा है। 1857 की क्रांति से लेकर आजादी मिलने तक यहां का इतिहास गर्वीला रहा है। यहां के चैधरी प्राणनाथ ने अपने देश की आन के लिए परिजनों समेत बलिदान दे दिया, जो इतिहास में अमिट शब्दों में लिखा है। बाद में हुए स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों में गंगा मेले का अहम रोल रहा। इसी कारण गंगा मेले पर अंग्रेज पूरी नजर रखते थे और क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए जासूस छोड़ते थे। इसके बाद भी गढ़मुक्तेश्वर के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने आंदोलन को पूरी सफलता के साथ चलाया। उनका योगदान 1947 तक देश को स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहा। उपेक्षा के शिकार एतिहासिक स्थल गढ़मुक्तेश्वर में कई ऐतिहासिक और तीर्थस्थल मौजूद है, लेकिन वह पूरी तरह से उपेक्षा के शिकार है। भगवान परशुराम द्वारा स्थापित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर गंगा माता को समर्पित है। इसमें चार मुख्य मूर्तियां है। यहां एक ऐतिहासिक कूप स्थित है, जिसे नक्का कुआं या नहुष का कुआं कहा जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र कूप का जल मानव को पापों से मुक्ति दिलाकर निर्मल कर देता है। गढ़ के पास ही अहार में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष निकले हैं। यहां स्थित गंगा मंदिर भी उपेक्षित है। यह क्षेत्र पूरी तरह से सरकारी उपेक्षा का शिकार है। 22 नवम्बर को गंगा मेला आएंगे मुख्यमंत्री व रामदेव गढ़मुक्तेश्वर के गंगा मेले में 22 नवम्बर को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंचेंगे। वह हेलीकाॅप्टर से गढ़ गंगा मेले और तिगरी के मेले का निरीक्षण करके पुष्पवर्षा करेंगे। भाजपा के क्षेत्रीय मीडिया प्रभारी गजेंद्र शर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री गंगा मेला स्थल पर ही जनसभा का संबोधित करेंगे। इसके लिए सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। मुख्यमंत्री के साथ ही योगगुरु बाबा रामदेव भी गंगा मेले में आएंगे। गंगा में स्नान और पूजा अर्चना के बाद रामदेव मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा करेंगे। 1929 से मखदूमपुर में लगता है गंगा मेला मेरठ में गंगा नदी किनारे मखदूमपुर में विशाल गंगा मेले का आयोजन किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार नरेश उपाध्याय बताते हैं कि जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगा किनारे स्थित मखदूमपुर में 1929 से गंगा मेला आयोजित हो रहा है। पहले यह मेला ग्रामीण खुद ही लगाते थे, बाद में जिल पंचायत ने गंगा मेले का आयोजन अपने हाथों में ले लिया। कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला गंगा मेला पांच दिन तक चलता है। यह आस्था और भक्ति का समागम है। दीपावली के बाद कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला यह मेला आज एक विशाल स्वरूप ले चुका है। बदलते समय के साथ ही लोगों की श्रद्धा बढ़ती जा रही है। पांच दिनों तक यहां पर तंबुओं के नगर में लोग रहते हैं। सुबह-शाम नित्य गंगा पूजन के साथ बच्चों का मुंडन संस्कार भी होता है।
SABHAAR PANCHJANYA

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