वे पन्द्रह दिन… / 08 अगस्त, 1947

शुक्रवार आठ अगस्त…. इस बार सावन का महीना ‘पुरषोत्तम (मल) मास’है. इसकी आज छठी तिथि है, षष्ठी. गांधीजी की ट्रेन पटना के पास पहुंच रही है. सुबह के पौने छः बजने वाले हैं. सूर्योदय बस अभी हुआ ही है. गांधी जी खिड़की के पास बैठे हैं. उस खिड़की से हलके बादलों से आच्छादित आसमान में पसरी हुई गुलाबी छटा बेहद रमणीय दिखाई दे रही है. ट्रेन की खिड़की से प्रसन्न करने वाली ठण्डी हवा आ रही है. हालांकि उस हवा के साथ ही इंजन से निकलने वाले कोयले के कण भी अंदर आ रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर वातावरण आल्हाददायक है, उत्साहपूर्ण है.

परन्तु पता नहीं क्यों, गांधी जी अंदर से उत्साहित नहीं हैं. हालांकि कभी ऐसा होता नहीं. उनके सामने चाहे कितनी भी प्रतिकूल घटना घट जाए, उनके मन का उत्साह कायम रहता है. गांधी जी को याद आया कि ‘आज से ठीक पांच वर्ष पहले उन्हें और जवाहरलाल नेहरू को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया था’. क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने का निश्चय किया था. इस संबंध में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी की बैठक मुम्बई में रखी गई थी. 08 अगस्त 1942 की शाम को उस बैठक में गांधी जी ने आह्वान किया था… “अंग्रेजो, भारत छोड़ो”. और यह बैठक समाप्त होते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. पांच वर्ष पहले का वह दिन और आज का दिन. ‘उस दिन देश की स्वतंत्रता किसी की दृष्टि में भी नहीं थी, लेकिन उत्साह बना हुआ था… और आज..? केवल एक सप्ताह बाद हमारा भारत स्वतन्त्र होने जा रहा है, फिर भी मन में उमंग-उत्साह क्यों नहीं है…!’

पिछले दो-तीन दिन ‘वाह’ के शरणार्थी शिविर और लाहौर में उन्होंने हिंदुओं की जो दुर्दशा देखी थी, उसके कारण वे बेचैन हो गए थे. उन्हें यह बात समझने में कठिनाई हो रही थी कि“हिन्दू अपने मकान-दुकान छोड़कर पलायन क्यों कर रहे हैं? मुसलमानों को पाकिस्तान चाहिए था, वह उन्हें मिल गया है. अब वे हिंदुओं का अहित क्यों करेंगे? हिंदुओं को वहां से भागने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैंने लाहौर में जैसा कहा है, मैं उसी प्रकार अपनी बात पर कायम रहूंगा. मैं अपना बचा हुआ जीवन, नए बने पाकिस्तान में ही व्यतीत करूंगा…”.

इन विचारों के उभरने के बाद गांधी जी के मन को थोड़ी शान्ति मिली. गाड़ी पटना स्टेशन में प्रवेश कर रही थी. बड़ी संख्या में लोग गांधी जी के स्वागत में एकत्रित हुए थे. भीड़ उनका जयजयकार भी कर रही थी. परन्तु फिर भी इस बार गांधी जी को इन नारों में उत्स्फूर्तता और उत्साह प्रतीत नहीं हो रहा था, बड़े औपचारिक किस्म की जयजयकार लगी उन्हें…!

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जिस समय गांधी जी की ट्रेन पटना स्टेशन में प्रवेश कर रही थी, उस समय निजामशाही के हैदराबाद में सुबह के छः बजे थे. यहां भी बारिश नहीं होने के कारण गर्मी और उमस का वातावरण है.

अम्बरपेठ स्थित इस विश्वविद्यालय के छात्रावासों में तनाव का माहौल है.

इस विश्वविद्यालय की स्थापना चालीस वर्ष पूर्व हुई थी. यदि एकदम सटीक कहा जाए तो सन् 1918 में मीर उस्मान अली नामक हैदराबाद के नवाब ने इसकी स्थापना की थी. इस कारण शुरुआत से ही इस विश्वविद्यालय में उर्दू और इस्लामिक संस्कृति का दबदबा था. पिछले कुछ दिनों से विश्वविद्यालय का वातावरण दूषित हो चला था. निज़ाम ने घोषित कर दिया था कि वह हैदराबाद रियासत को भारत्त में विलीन नहीं करेंगे. इसी बात से ‘प्रेरणा’ लेकर रजाकार और मुस्लिम गुण्डों ने विश्वविद्यालय के हिन्दू लड़कों को धमकाना शुरू कर दिया था. हिन्दू लड़कियां तो पहले से ही बहुत कम थीं. उन्होंने भी पिछले एक माह से विश्वविद्यालय आना बन्द कर दिया था. लेकिन छात्रावास में रहने वाले लड़कों की दिक्कत थी, कि वे कहां जाएं?

इसी बीच होस्टल के लड़कों को गुप्त सूचना मिली कि मुस्लिम लड़कों ने होस्टल में लाठियां, तमंचे, बन्दूक इत्यादि हथियार लाकर रखे हैं. हिन्दू लड़कों को विश्वविद्यालय से खदेड़ने के लिये इन अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग किया जाने वाला था. इसीलिए कल रात भर छात्रावास के हिन्दू लड़के ठीक से सो नहीं सके थे. उन्हें यह भय सता रहा था कि कहीं रात में ही उन पर हमला न हो जाए और रातोंरात अंधेरे में ही उन्हें विश्वविद्यालय परिसर छोड़कर भागना न पड़ जाए. खैर उनके सौभाग्य से कल की रात कुछ नहीं हुआ. परन्तु आज 08 अगस्त को हिन्दू लड़के उस्मानिया विश्वविद्यालय में रुकने की मनःस्थिति में बिलकुल नहीं हैं. इसीलिए सभी ने एकमत होकर यह निर्णय लिया कि आज सुबह छः बजे के आसपास सुनसान और शांत वातावरण में यहां से भाग निकलना ही उचित होगा. इसी योजना के अनुसार विश्वविद्यालय के छात्रावासों में रहने वाले लगभग तीन सौ हिन्दू लड़के छिपते-छुपाते परिसर से बाहर भाग रहे हैं.

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मुम्बई के दादर स्थित ‘सावरकर सदन’ में भी थोड़ी व्यस्तता चल रही है. तात्याराव यानी वीर सावरकर अगले कुछ दिनों के लिए दिल्ली जाने वाले हैं, और वह भी हवाई जहाज से. सावरकर जी की यह पहली ही विमान यात्रा है. लेकिन उन्हें इसकी कोई उत्सुकता नहीं है, उनका मन कुछ खिन्न अवस्था में है. ‘खंडित हिन्दुस्तान’ की कल्पना भी उन्हें सहन नहीं हो रही है. अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए उन्होंने अपने जीवन को होम कर दिया, अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, वह अखंड हिन्दुस्तान के लिए…! लेकिन काँग्रेस के दीन-हीन, कमज़ोर और लाचार नेतृत्व ने विभाजन स्वीकार कर लिया. इस बात का तात्याराव को बहुत कष्ट हो रहा है. इस सबके बीच पश्चिमी और पूर्वी भारत के क्षेत्रों से हिंदुओं और सिखों के नरसंहार के समाचार, लाखों की संख्या में हिंदुओं का विस्थापन, यह सब उनके लिए बहुत ही भयानक है.

इसीलिए इन सारी बातों पर चर्चा और विचार करने के लिए हिन्दू महासभा की एक आवश्यक राष्ट्रीय बैठक कल से दिल्ली में आयोजित है. देश के सभी प्रमुख हिन्दू नेता इस बैठक के लिए दिल्ली में एकत्रित होने जा रहे हैं. सावरकर जी को अपेक्षा है कि इस बैठक से निश्चित ही कुछ अच्छा निर्णय निकलकर आएगा. उनका हवाई जहाज सुबह ग्यारह बजे निकलने वाला है. दादर से जुहू कोई खास दूरी पर नहीं है, इसलिए उन्हें रवाना होने में अभी थोड़ा समय बाकी है.

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अकोला… निजामशाही की सीमा से लगा हुआ विदर्भ का बड़ा शहर. कपास के बड़े-बड़े गोदाम, और कपास के जबरदस्त उत्पादन से समृद्ध हुए जमींदारों का शहर. कल से ही अकोला शहर में अफरातफरी मची हुई है. भारत की स्वतंत्रता अब दहलीज पर आन खड़ी हुई है. एक सप्ताह के भीतर देश स्वतन्त्र हो जाएगा. परन्तु इस देश में मराठी भाषिकों का क्या और कैसा स्थान रहेगा…? मराठी भाषियों के प्रदेश अथवा प्रांत की रचना कैसी होगी, इस पर चर्चा करने एवं कोई ठोस निर्णय लेने के लिए पश्चिम महाराष्ट्र एवं विदर्भ के बड़े-बड़े नेता इकठ्ठा होने वाले हैं. मराठी भाषियों के इस झगड़े में धनंजयराव गाडगील द्वारा सुझाए गए फार्मूले पर कल से ही चर्चा जारी है.

पंजाबराव देशमुख, बृजलाल बियानी, शेषराव वानखेड़े, बापूजी अणे तो स्थानीय नेता हैं ही. इनके अलावा शंकरराव देव, पंढरीनाथ पाटिल, पूनमचंद रांका, श्रीमन्नारायण अग्रवाल, रामराव देशमुख, दा.वि. गोखले, धनंजय राव गाडगीळ, गोपालराव खेडकर, द.वा.पोतदार, प्रमिलाताई ओक, ग.त्र्यं. माडखोलकर, जी.आर. कुलकर्णी जैसे नेता भी इस बैठक में शामिल हुए हैं. इस प्रकार कुल सोलह नेता मराठी भाषियों का भविष्य तय करने के लिए अकोला में एकत्रित हुए हैं. कल काफी चर्चा हो चुकी है. विदर्भ के नेताओं को ‘पृथक विदर्भ राज्य’ चाहिए है, जबकि पश्चिम महाराष्ट्र के नेतागण एक संयुक्त महाराष्ट्र का सपना देख रहे हैं. इन विभिन्न विचारों के बीच से ही कोई सर्वमान्य हल निकालना है… और ऐसी संभावना है कि शाम तक कोई न कोई निर्णय ले ही लिया जाएगा.

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लखनऊ का ‘विधानसभा भवन’. दोपहर के बारह बज रहे हैं. संयुक्त प्रांत का विधानसभा अधिवेशन चल रहा है. विधिमंडल के प्रधान, पंडित गोविन्द वल्लभ पंत स्वयं एक बिल विधानसभा के पटल पर रख रहे हैं. पंडित जी बड़े ही आर्त और दुखद स्वरों में कह रहे हैं, कि “अंग्रेजों ने पिछले डेढ़ सौ वर्षों में हमारी संस्कृति को भ्रष्ट करने का प्रयास तो किया ही है, परन्तु हमारी नदियों और गांवों के नाम भी भ्रष्ट कर दिये. इसलिए हमारे देश की स्वतंत्रता के साथ ही हमें इन सभी भ्रष्ट नामों को उनके मूलनाम और मूल स्वरूप में वापस लाना होगा. उदाहरणार्थ, अंग्रेजों ने गंगा को गैंजेस, यमुना को जमना, मथुरा को मुत्तरा (Muttara) इत्यादि कर दिया”. पंडित पन्त के अनुसार अंग्रेजी शासन द्वारा जिन नदियों, गांवों, पर्वतों के नाम बदल दिए हैं, उन सभी की एक सूची प्रकाशित की गई है. अब से भविष्य में सारी शासकीय कार्यवाहियों में इनके मूल नाम का ही उपयोग किया जाएगा. विधानसभा के सभी सदस्यों ने मेजें थपथपाकर इस प्रस्ताव का स्वागत किया.

गुलामी के चिन्हों को मिटाने का प्रारम्भ संयुक्त प्रांत की विधानसभा ने कर दिया है….!

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इस सारी आपाधापी के बीच एक छोटी सी लेकिन महत्त्वपूर्ण घटना भी घट रही है. महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में स्थित रत्नागिरी जिले के संगमेश्वर में एक छोटे से गांव ‘तेरये’ में एक मराठी स्कूल शुरू हो रहा है. सुबह ठीक 11 बजे, माता सरस्वती की तस्वीर पर माल्यार्पण करके ग्रामवासियों ने इस मराठी शाला का आरम्भ किया.

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इधर, दिल्ली में दोपहर के बारह बज रहे हैं. सूर्य अपने पूरे शबाब पर आग उगल रहा है. अगस्त माह होने के बावजूद बारिश कुछ खास नहीं हुई है. वाइसरॉय हाउस के सामने स्थित एक विशाल पोर्च में जोधपुर स्टेट की काले रंग की आलीशान गाड़ी आकर रुकती है. मजबूत पगड़ियां बांधे हुए कद्दावर दरबान गाड़ी का दरवाजा धीरे से खोलते हैं. उस गाड़ी में से उतरते हैं, ‘कदंबी शेषाचारी वेंकटाचारी’. महाराजा जोधपुर रियासत के दीवान, अथवा यदि जोधपुर की दरबारी भाषा में कहें तो, जोधपुर के ‘प्रधानमंत्री’.

सी.एस. वेंकटाचार के नाम से पहचाने जाने वाले ये सज्जन बंगलौर के कन्नड़ भाषी हैं. इन्होंने इन्डियन सिविल सर्वेंट परीक्षा उत्तीर्ण की हुई है. अत्यंत बुद्धिमान हैं. आजकल जोधपुर रियासत के सभी प्रमुख निर्णय इनकी सलाह से ही लिए जाते हैं. इसीलिए वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने चार सौ एकड़ में फैले उस विराट राजप्रासाद परिसर में वेंकटाचार को भोजन के लिए आमंत्रित किया हुआ है. भोजन बड़े ही राजशाही शिष्टाचार के बीच जारी है. जोधपुर जैसा विशाल एवं संपन्न रजवाड़ा हमेशा से ब्रिटिशों का समर्थक और सहायक रहा है. इसीलिए उस रियासत के प्रतिनिधि के रूप में वेंकटाचार को यह सम्मान मिल रहा है. इन्हें भोजन हेतु आमंत्रित करने के पीछे माउंटबेटन का उद्देश्य स्पष्ट है. उन्हें जल्दी से जल्दी जोधपुर रियासत का भारत में विलीनीकरण चाहिए. भारत पर अपना नियंत्रण छोड़ने से पहले उन्हें यह छोटे-छोटे विवाद टालने हैं. भोजन के पश्चात कुछ राजनैतिक शिष्टाचार की बातें हुईं और इसी में वेंकटाचार ने यह स्पष्ट कर दिया कि जोधपुर रियासत भारत में विलीनीकरण के लिए तैयार है.

यह अंग्रेजों और भारत दोनों के लिए बहुत ही अच्छी खबर है. पिछले कुछ दिनों से जिन्ना लगातार जोधपुर रियासत को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए विभिन्न तरह के ललचाने वाले प्रस्ताव दे रहे थे. भोपाल का नवाब और उनका सलाहकार ज़फरुल्ला खान, यह दोनों ही जोधपुर, कच्छ, उदयपुर और बड़ौदा रियासतों के महाराजाओं से मिलकर उन्हें पाकिस्तान में शामिल होने के फायदों के बारे में बता रहे थे. जिन्ना ने भोपाल के नवाब के माध्यम से जोधपुर रियासत के महाराज से कहा कि ‘यदि वे 15 अगस्त से पहले अपनी केवल रियासत को ‘स्वतन्त्र’ भी घोषित कर दें, तब भी उन्हें निम्नलिखित सुविधाएं दी जाएंगी –

कराची बंदरगाह की सभी सुविधाओं पर जोधपुर रियासत का अधिकार होगा.

जोधपुर रियासत को पाकिस्तान से शस्त्रात्र की आपूर्ति की जाएगी.

जोधपुर-हैदराबाद (सिंध) रेलमार्ग पर केवल जोधपुर रियासत का अधिकार होगा.

जोधपुर रियासत में अकाल पड़ने की स्थिति में पाकिस्तान के द्वारा अन्न की आपूर्ति की जाएगी.

ज़ाहिर है कि जोधपुर रियासत के बुद्धिमान दीवान वेंकटाचार को इन सारे वादों का खोखलापन साफ़ दिखाई दे रहा था. इसीलिए उन्होंने स्वयं, भारत में विलीन होने हेतु जोधपुर महाराज का मन परिवर्तित किया और एक बेहद गंभीर मसला हल हो गया.

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दख्खन का हैदराबाद… निजामशाही की राजधानी हैदराबाद. आज सुबह से ही शहर का वातावरण जरा तनावग्रस्त है. सुबह-सुबह ही उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्रावासों से 300 हिन्दू लड़के अपने प्राण बचाकर भाग चुके हैं, इस बात से रजाकार बेहद क्रोधित हैं. इसका बदला लेने के लिए शहर में स्थित विभिन्न हिन्दू व्यापारियों पर उन्होंने हमले शुरू कर दिए. उधर वारंगल से आने वाली ख़बरें और भी चिंताजनक थीं. समूचे वारंगल जिले में हिन्दू नेताओं के मकानों पर मुस्लिम गुंडों द्वारा पथराव किया जा रहा है. हिंदुओं की दुकानें-मकान लूटे और जलाए जा रहे हैं. इसी को देखते हुए दोपहर में हैदराबाद के एक बड़े व्यापारी के घर शहर के कई हिन्दू व्यापारी एकत्रित हुए हैं. उन्होंने वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू को भेजने के लिए एक लंबा-चौड़ा टेलीग्राम तैयार किया… –

Formorethanamonth,Muslimgoondas,militaryandpolicereignofterror,loot, incendiarism there and murder are prevailing. There is no protection to non Muslims life, property and honour. Non Muslims are forcibly deprived of and penalised even for the most elementary self-defence preparations, whereas Muslims are openly allowed and even supplied with arms. The police act as spectators when and where Muslims are strong, but become active and shoot mercilessly when Hindus gather for self-defence.”

सन्दर्भ :- (Indian Daily Mail / Singapore / 9th August, 1947)

भारत देश के बीचोंबीच स्थित निजामशाही के इस हैदराबाद रियासत में हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं. ऐसा लगता मानो उनका कोई माई-बाप नहीं है.

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तात्याराव सावरकर की यह पहली विमान यात्रा है. उनके साथ हिन्दू महासभा के चार कार्यकर्ता भी हैं. उनका विमान दिल्ली के विलिंगटन हवाई अड्डे पर दोपहर ढाई बजे उतरा. हवाई अड्डे के बाहर हिन्दू महासभा के असंख्य कार्यकर्ता एकत्रित थे. ‘वीर सावरकर अमर रहें’, ‘वंदेमातरम’ के जोशीले नारों ने हवाई अड्डे के पूरे परिसर को गुंजायमान कर दिया. कार्यकर्ताओं से पुष्पहार स्वीकार करते-करते तात्याराव बाहर निकले. उनके लिए नियत कार में बैठे और अन्य कारों तथा मोटरसाइकिलों के काफिले के साथ वे मंदिर मार्ग स्थित ‘हिन्दू महासभा भवन’ की तरफ निकल पड़े.

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इधर, भारत में दोपहर के तीन बज रहे हैं और उधर लन्दन में सुबह के साढ़े दस बजे हैं. लन्दन के मध्यवर्ती इलाके में शेफर्ड बुश गुरूद्वारे में सिख नेता इकठ्ठे होने लगे हैं. इंग्लैण्ड में रहने वाला सिख समुदाय, भारत की हिंसक घटनाओं से बेहद चिंतित है. पश्चिम पंजाब में रहने वाले किसी रिश्तेदार की बहन को मुस्लिम गुंडों ने उठा लिया है. तो किसी रिश्तेदार को बीच सड़क पर दिनदहाड़े काट दिया गया है. इसके अलावा अभी भी विभाजन की रेखा स्पष्ट नहीं, कौन किस तरफ जाएगा पता नहीं. पंजाब के इस विभाजन का दुःख इंग्लैण्ड के सिखों के मनोमस्तिष्क पर छाया हुआ है.

इसके लिए सम्पूर्ण पंजाब को ही भारत में विलीन किया जाए, तथा सिख-मुस्लिम जनसंख्या की अदलाबदली करना ही एकमात्र उपाय है, यह उनकी समझ में आ रहा था. परन्तु गांधी जी और नेहरू ये दोनों ही जनसंख्या की अदलाबदली के सम्बन्ध में अपनी जिद पर अड़े हुए हैं. नेहरू ने तो सिख समुदाय से अपील की है कि वे ‘बॉर्डर कमीशन’ पर विश्वास रखें. इन दोनों की बातों पर इंग्लैण्ड के सिखों में अत्यधिक क्रोध है. इसीलिए आज सिखों के तमाम नेता लन्दन के इस गुरूद्वारे में एकत्रित होकर 10, डाउनिंग स्ट्रीट स्थित प्रधानमंत्री एटली को एक ज्ञापन प्रस्तुत करने जा रहे हैं कि ‘विभाजन किए बिना, समूचे पंजाब प्रांत का भारत में विलीनीकरण किया जाए.’

लन्दन में भी खासी गर्मी का मौसम चल रहा है. ठीक साढ़े ग्यारह बजे सिख नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री एटली से मिलने डाउनिंग स्ट्रीट की तरफ कूच कर गया है.

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पंजाब के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में अगस्त की दोपहर अपनी पूरी तीव्रता पर है. पुरषोत्तम मास का सावन महीना होने के बावाजूद बारिश के आसार नहीं दिखाई दे रहे. कुछ दिनों पहले ही हल्की बूंदाबांदी हुई थी, लेकिन बस उतनी ही.

फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर, भटिंडा, मोगा… इन क्षेत्रों की जमीन में दरारें पड़ चुकी हैं और कुओं का पानी सूख चुका है. पेड़-पौधे सूखने लगे हैं, पशु-पक्षी प्यास के कारण अपने प्राण त्याग रहे हैं. इस कष्ट को और बढ़ाने के लिए उत्तरी-पश्चिमी पंजाब से शरणार्थी के रूप में हिंदु-सिखों के जत्थे के जत्थे लगातार प्रतिदिन चले आ रहे हैं. अपना सब कुछ गंवाकर, अपने प्रियजनों को खोकर, अपनी इज्जत लुटवा कर आने वाले ढेरों लोग.

किसकी गलती से हो रहा है, यह सब….?

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वीरसावरकर के मुम्बई से दिल्ली निकले हुए हवाई जहाज के आसमान में विचरण करते समय… निजाम के हैदराबाद और वारंगल में रजाकारों का अत्याचार जारी रहने के दौरान….

दिल्ली के वाइसरॉय हाउस में जोधपुर के दीवान और लॉर्ड माउंटबेटेन के बीच चर्चा और भोजन समाप्त होते-होते…. इधर पटना यूनिवर्सिटी के सभागृह में गांधी जी का विद्यार्थियों से संवाद चल रहा है. विद्यार्थी आक्रामक मूड में हैं, बेहद चिढ़े हुए हैं. काँग्रेस के कुछ स्थानीय नेता विद्यार्थियों के बीच जाकर उन्हें शांत करने का प्रयास कर रहे हैं.

आज सुबह अपनी प्रार्थना में गांधी जी ने जो बात बताई थी, वही बात एक बार पुनः अपने धीमे स्वरों में वे विद्यार्थियों से कह रहे हैं, कि “15 अगस्त, यानी स्वतंत्रता दिवस के अवसर को उपवास रखकर मनाएं. उस दिन चरखे पर सूत कताई करें, कॉलेज के परिसर में स्वच्छता रखें… दक्षिण अफ्रीका के गोरे शासक उन्मत्त हो चुके हैं. वे वहां के भारतीयों के साथ घृणास्पद व्यवहार कर रहे हैं. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका विरोध किया जाना चाहिए..”

विद्यार्थी इस आशा के साथ एकत्रित हुए थे कि गांधी जी उन्हें भारत-पाकिस्तान विभाजन के सम्बन्ध में, अपने देश के बारे में कुछ प्रवचन देंगे. परन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

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कलकत्ता में भीषण दंगे शुरू हो चुके हैं. हालांकि इसे दंगा कहना भी एक गलती ही है, क्योंकि यह दंगा नहीं बल्कि नरंसहार है. क्योंकि हमले केवल एक ही पक्ष की तरफ से हो रहे हैं. उनका प्रतिकार करने वाले तो हैं ही नहीं. हिंदुओं की बस्तियों पर मुसलमान गुण्डे बड़ी ही आक्रामकता के साथ हमले कर रहे हैं. कलकत्ता के हिंदुओं को आज से लगभग एक वर्ष पहले, 14 अगस्त 1946 को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की काली यादें सता रही हैं, जिस दिन मुस्लिम लीग के गुंडों ने कलकत्ता के रास्तों पर सरेआम हिंदुओं का खून बहाया था.

अब एक वर्ष बाद फिर से वही परिस्थिति निर्माण होती दिखाई दे रही है. पुराने कलकत्ता के इलाकों में हिन्दू दुकानदारों को लूटने और मारने के लिए आए हुए मुस्लिम समुदाय को रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों ने एक रक्षात्मक दीवार बनाई है. लेकिन इन पुलिस अधिकारियों पर भी देसी बम फेंके जा रहे हैं. डिप्टी पुलिस कमिश्नर एस.एच. घोष, चौधरी और एफ.एम. जर्मन जैसे तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं, उनके प्राण बाल-बाल ही बचे हैं. पुराने कलकत्ता में दोपहर में ही छः हिन्दू मृत एवं साठ गंभीर रूप से घायल हुए हैं.

बंगाल के प्रमुख सुहरावर्दी के शासन में मुस्लिम दंगाईयों को गिरफ्तार करना तो दूर, उनका सम्मान किया जाएगा, ऐसे चिन्ह दिखाई दे रहे हैं. नवनियुक्त गवर्नर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी कलकत्ता की इस गंभीर परिस्थिति एवं हिंदुओं के नरसंहार की तरफ कुछ ध्यान देंगे या कार्यवाही कर पाएंगे, इसमें भी शंका ही है…!

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आठ अगस्त का दिन ढलने के करीब है. कलकत्ता अभी भी धधक रहा है. हैदराबाद, वारंगल और निजामशाही के अन्य गांवों में हिंदुओं के मकानों और दुकानों पर मुस्लिम गुंडों के हमले जारी हैं. उधर दिल्ली के हिन्दू महासभा भवन में देश भर के नेता स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ सलाह-मशविरा कर रहे हैं. अभी-अभी तात्याराव और पंडित मदनमोहन मालवीय की एक लंबी बैठक समाप्त हुई है.

उधर, सुदूर पूर्वी महाराष्ट्र के अकोला शहर में विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं में ‘अकोला संधि’ हो गई है. इस संधि के अनुसार संयुक्त महाराष्ट्र के दो उप-प्रांत रहेंगे, ‘पश्चिम महाराष्ट्र’ और ‘महाविदर्भ’. इन दोनों ही उप-प्रान्तों के लिए अलग स्वतन्त्र विधानसभा, मंत्रिमंडल और उच्च न्यायालय रहेंगे. परन्तु इस सम्पूर्ण प्रांत के लिए एक ही गवर्नर एवं एक ही लोकसेवा आयोग रहेगा, ऐसा तय किया गया है. इसी कारण जैसे-जैसे रात गहराती जा रही है, अकोला में मराठी नेतृत्व की मेजबानी अपने पूरे रंग में है.

उधर, कराची के अपने अस्थायी निवास में बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना आगामी 11 अगस्त को पाकिस्तान की संसद में दिए जाने वाले अपने भाषण की तैयारी करके उठे ही हैं… अब उनके सोने का वक्त हो चला है. गांधी जी कलकत्ता जाने वाली गाड़ी में बैठ चुके हैं. बाहर हल्की बारिश हो रही है. गांधी जी का डिब्बा एक-दो स्थानों से टपक रहा है. ट्रेन की खिड़की से आने वाली हवा ठण्डी लग रही है, इसलिए मनु ने खिड़की बन्द कर दी है.

दिल्ली के वाइसरॉय हाउस की लाइब्रेरी में अभी भी लाईट जल रही है. लॉर्ड माउंटबेटन महागोनी की अपनी विशाल टेबल पर आज दिन भर की रिपोर्ट, लन्दन में भारत के सचिव के लिए लिखकर रख रहे हैं. हमेशा तो वे डिक्टेशन देते हैं, परन्तु आज उनके पास इसके लिए समय ही नहीं. अब कल उनका सेक्रटरी इस रिपोर्ट को टाईप करके लन्दन भेजेगा.

आठ अगस्त शुक्रवार का दिन अब समाप्त होने को है. इस अखंड भारत की एक विशाल जनसंख्या अभी भी जाग ही रही है. सिंध, पेशावर का पर्वतीय इलाका, पंजाब, बंगाल, तथा निजामशाही के एक बड़े भूभाग में लाखों हिंदुओं की आंखों से नींद कोसों दूर है. ठीक अगले शुक्रवार को इस अखंड भारत के तीन टुकड़े होने जा रहे हैं और दो देश आकार ग्रहण करने वाले हैं….!

प्रशांत पोळ

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