संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में पारित तीन प्रस्ताव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा

11—13 मार्च 2016, नागौर, राजस्थान

प्रस्ताव एक
देश में सभी नागरिक आजीवन, स्वस्थ व निरोग रहें इस हेतु स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली का अनुसरण एवं सर्व साधारण के लिये चिकित्सा की सुलभता परम आवश्यक है। आज देश में जहां अस्वास्थ्यकर जीवन शैली से उत्पन्न होनेवाले रोग तेजी से बढ़ रहे हैं वहीं चिकित्सा सेवाएं महंगी होने से ये सामान्य नागरिकों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। परिणामस्वरूप, अनगिनत परिवार ऋणग्रस्त हो रहे हैं अथवा परिवार के कार्यशील सदस्यों का रोगोपचार नहीं हो पाने की दशा में बड़ी संख्या में परिवारों का जीवन यापन भी कठिन हो रहा है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करती है।
उत्तम स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक आहार—विहार व जीवनचर्या, सात्विकता, आध्यात्मिक वृत्ति, योग, दैनिक व्यायाम व स्वच्छता को महत्व दिया जाना आवश्यक है। शिशुओं का समयोचित टीकाकरण होना चाहिए। समाज सभी प्रकार के नशे से मुक्त हो यह भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मानना है कि स्वयंसेवकों सहित देश के सभी जागरूक नागरिकों को इस दिशा में जनजागरण के व्यापक प्रयास करने चाहिए।
चिकित्सा सेवाओं के बड़े नगरों में केन्द्रित होने से देशभर में दूरस्थ व ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं का भारी अभाव है। सभी स्तरों पर इन सुविधाओं व चिकित्साकर्मियों की भारी कमी और भर्ती, जांच व उपचार के लिए लम्बी प्रतीक्षा सूचियों के कारण बड़ी संख्या में लोग चिकित्सा सुविधा से वंचित रह जाते हैं। चिकित्सा शिक्षा की बढ़ती लागतें भी देश में चिकित्सा सेवाओं के मंहगा होने एवं उनकी गुणवत्ता व विश्वसनीयता में गिरावट का एक प्रमुख कारण है। देश में महिलाओं व शिशुओं सहित सभी नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाली सब प्रकार की चिकित्सा सेवाएं उनके द्वारा वहन करने योग्य लागत पर सुलभ होनी चाहिये। इस हेतु देशभर में विशेषकर ग्रामीण व जनजातीय क्षेत्रों तक सभी प्रणालियों की सब प्रकार की चिकित्सा सेवाओं का सुचारू विस्तार आवश्यक है। चिकित्सा में निरन्तरता व विशेषज्ञ परामर्श हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का भी प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए।
देश में अनेक स्थानों पर विविध सामाजिक, धार्मिक व सामुदायिक संगठनों द्वारा दानशीलता व परोपकार के भाव से संचालित चिकित्सालयों में सामान्य समाज का उपचार अत्यन्त प्रभावी व न्यायसंगत रीति से किया जा रहा है। समाज के ऐसे अनुकरणीय प्रयासों में भी शासकीय सहयोग का विस्तार आवश्यक है। प्रतिनिधि सभा ऐसे सभी प्रयासों की सराहना करते हुए देश के उद्यम समूहों, स्वैच्छिक व सामाजिक संगठनों व दानशील न्यासों आदि का आवाहन करती है कि उन्हें इस दिशा में और आगे आना चाहिए। इस दृष्टि से सार्वजनिक व सामुदायिक सहभागिता एवं सहकारी संस्थानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में प्रारम्भ की गई नि:शुल्क औषधि वितरण योजनाएं एवं केन्द्र सरकार द्वारा हाल के बजट में 3000 जेनेरिक औषधि केन्द्रों का प्रस्ताव स्वागत योग्य है। दवाईयों के मूल्य को आम व्यक्ति की पहुंच में लाने हेतु जेनेरिक औषधियों को प्रोत्साहन, औषधि के मूल्यों पर प्रभावी नियन्त्रण एवं पेटेण्ट व्यवस्था को मानवोचित बनाया जाना आवश्यक है। औषधियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु उनके सभी प्रकार के नियमित प्रयोगशाला परीक्षण भी होने चाहिए। आयुर्वेदिक, यूनानी व अन्य पद्धतियों की औषधियों का प्रमाणीकरण व उनके परीक्षण की विधियों का विकास भी महत्वपूर्ण है।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों, स्वैच्छिक संगठनों व सरकार का आहवान करती है कि सभी नागरिकों के जीवन को निरामय बनाने हेतु स्वास्थ्यप्रद जीवनचर्या,शिशु व जननी स्वास्थ्य रक्षा और कुपोषण व नशा विमुक्ति हेतु समाज जागरण के प्रयास करें। केन्द्र व राज्य सरकारों से आग्रह है कि सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं की सर्वसाधारण के लिए सुलभता हेतु पर्याप्त संसाधन आवंटन करते हुए इन सेवाओं में अपेक्षित ढांचागत, नीतिगत व प्रक्रियागत सुधार करने चाहिए। इसके लिए देश में सभी प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों के समन्वित विस्तार, नियमन, शिक्षण व अनुसन्धान को समुचित प्रोत्साहन देवें तथा नियामक व्यवस्था व वैधानिक प्रावधानों को पारदर्शिता पूर्वक लागू करें।

प्रस्ताव दो—गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती शिक्षा सबको सुलभ हो
किसी भी राष्ट्र व समाज के सर्वांगीण विकास में शिक्षा एक अनिवार्य साधन है जिसके संपोषण, संवर्द्धन व संरक्षण का दायित्व समाज व सरकार दोनों का है। शिक्षा छात्र के अन्दर बीज रूप में स्थित गुणों व संभावनाओं को उभारते हुए उसके व्यक्तित्व के समग्र विकास का साधन है। एक लोक कल्याणकारी राज्य में शासन का यह मूलभूत दायित्व है कि वह प्रत्येक नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार के साथ—साथ शिक्षा व चिकित्सा की उपलब्धता सुनिश्चित करे।
भारत सर्वाधिक युवाओं का देश है। इस युवा की अभिरूचिए योग्यता व क्षमता के अनुसार उसे उचित शिक्षा के निर्बाध अवसर उपलब्ध कराकर देश के वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक व सामाजिक विकास में सहभागी बनाना समाज एवं सरकार का दायित्व है। आज सभी अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। जहां शिक्षा प्राप्त करनेवाले छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है वहां उन सबके लिए सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाना दुर्लभ हो गया है। विगत वर्षों में सरकार द्वारा शिक्षा में अपर्याप्त आवंटन और नीतियों में शिक्षा को प्राथमिकता के अभाव के कारण लाभ के उद्देश्य से काम करने वाली संस्थाओं को खुला क्षेत्र मिल गया है। आज गरीब छात्र समुचित व गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं परिणामस्वरूप समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता समूचे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है।
वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य में सरकार को पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता तथा उचित नीतियों के निर्धारण के अपने दायित्व के लिए आगे आना चाहिए। शिक्षा के बढ़ते व्यापारीकरण पर रोक लगनी चाहिए ताकि छात्रों को महंगी शिक्षा प्राप्त करने को बाध्य न होना पड़े।
सरकार द्वारा शिक्षा संस्थानों के स्तरए ढांचागत संरचना, सेवाशर्ते, शुल्क व मानदण्ड़ आदि निर्धारण करने की स्वायत्त एवं स्व.नियमनकारी व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए ताकि नीतियों का पारदर्शितापूर्वक क्रियान्वयन हो सके।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह मानना है कि प्रत्येक बालक.बालिका को मूल्यपरक, राष्ट्र भाव से युक्त, रोजगारोन्मुख तथा कौशल आधारित शिक्षा समान अवसर के परिवेश में प्राप्त होनी चाहिए। राजकीय व निजी विद्यालयों के शिक्षकों का स्तर सुधारने हेतु शिक्षकों को यथोचित प्रशिक्षणए समुचित वेतन तथा उनकी कर्त्तव्य परायणता दृढ़ करना भी अतिआवश्यक है।
परम्परा से अपने देश में सामान्य व्यक्ति को सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में समाज ने महती भूमिका निभाई है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी सभी धार्मिक.सामाजिक संगठनोंए उद्योग समूहों, शिक्षाविदों व प्रमुख व्यक्तियों को अपना दायित्व समझकर इस दिशा में आगे आना चाहिए।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा केन्द्र, राज्य सरकारों व स्थानीय निकायों से आग्रह करती है कि सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सबको उपलब्ध कराने के लिए समुचित संसाधनों की व्यवस्था तथा उपयुक्त वैधानिक प्रावधान सुनिश्चित करें। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित समस्त देशवासियों का भी आवाहन करती है कि शिक्षा प्रदान करने के पावन कार्य हेतु विशेषकर ग्रामीणए जनजातीय एवं अविकसित क्षेत्र में वे आगे आवें ताकि एक योग्य, क्षमतावान व ज्ञानाधारित समाज का निर्माण हो सके जो इस राष्ट्र के उत्थान व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

प्रस्ताव तीन .दैनन्दिन जीवन में समरसतापूर्ण व्यवहार करें

भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और इसकी चिन्तन परम्परा भी अति प्राचीन है। हमारी अनुभूत मान्यता है कि चराचर सृष्टि का निर्माण एक ही तत्व से हुआ है और प्राणिमात्र में उसी तत्व का वास है। सभी मनुष्य समान हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में वही ईश्वरीय तत्व समान रूप से व्याप्त है। इस सत्य को ऋषियों, मुनियों, गुरुओं, संतगणों तथा समाज सुधारकों ने अपने अनुभव एवं आचरण के आधार पर पुष्ट किया है।
जब—जब इस श्रेष्ठ चिन्तन के आधार पर हमारी सामाजिक व्यवस्थाएँ तथा दैनन्दिन आचरण बना रहा तब—तब भारत एकात्मए समृद्ध और अजेय राष्ट्र रहा। जब इस श्रेष्ठ जीवन दर्शन का हमारे व्यवहार में क्षरण हुआए तब समाज का पतन हुआए जाति के आधार पर ऊँच.नीच की भावना बढ़ी तथा अस्पृश्यता जैसी अमानवीय कुप्रथा का निर्माण हुआ।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने दैनन्दिन जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक स्तर पर अपने इस सनातन और शाश्वत जीवन दर्शन के अनुरूप समरसतापूर्ण आचरण करना चाहिए। ऐसे आचरण से ही समाज से जाति भेदए अस्पृश्यता तथा परस्पर अविश्वास का वातावरण समाप्त होगा एवं तभी हम सब शोषणमुक्त, एकात्म और समरस जीवन का अनुभव कर सकेंगे।
राष्ट्र की शक्ति समाज में और समाज की शक्ति एकात्मताए समरसता का भाव व आचरण और बंधुत्व में ही निहित है। इसका निर्माण करने का सामथ्र्य अपने सनातन दर्शन में है। ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’—सभी प्राणियों को अपने समान मानना ”अद्वेष्टा सर्वभूतानां”—सभी प्राणियों के साथ द्वेषरहित रहना तथा ‘एक नूर ते सब जग उपज्या, कौण भले, कौ मन्दे’—एक तेज से पूरे जग का निर्माण हुआ तो कौन बड़ा और कौन छोटा के अनुसार सबके साथ आत्मीयता, सम्मान एवं समता का व्यवहार होना चाहिए। समाज जीवन सें भेदभाव पूर्ण व्यवहार तथा अस्पृश्यता जैसी कुप्रथा जड़ मूल से समाप्त होनी चाहिए। समाज जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए समाज की सभी धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं को इसी दिशा में कार्यरत होना चाहिएए यह महती आवश्यकता है।
सनातन काल से समाज जीवन की आदर्श स्थिति का समग्र विचार राष्ट्र के सामने रखते समय अनेक महापुरूषों एवं समाज सुधारको ने समतायुक्त व शोषणमुक्त समाज निर्मिति के लिए व्यक्तिगत तथा सामूहिक आचरण में देशए कालए परिस्थिति सुसंगत परिवर्तन लाने पर बल दिया है। उनका जीवनए जीवनदर्शन और कार्य समाज के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहा है।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सभी पूज्य संतों, प्रवचनकारों, विद्वज्जनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से विनम्र अनुरोध करती है कि इस हेतु समाज प्रबोधन में वे भी अपना सक्रिय योगदान दें। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी नागरिकों से समरसता के अनुरूप व्यवहार करने का तथा सभी धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों से समरसता का भाव सुदृढ़ करने के हर संभव प्रयास करने का आग्रह करती है।

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