‘भारत माता की जय‘ कहना है अथवा नहीं, इसको लेकर ओवैसी द्वारा दिखाया गया
जनुकीय उलझाव और देश के मानचिन्ह सम्मान के लिए नहीं अपितु मखौल उड़ाने
के लिए है, इस तरह का ज्ञान पिलानेवाली ‘जनेयू‘ की वंशावली, इन दोनों ने
पिछले कुछ दिनों से समाचारों के बाक्स ऑफिस पर कब्जा किया है।
राष्ट्रवादी टोली और डेढ़ सयाने गैंग एक दूसरे के सामने खड़ी है। वे किस
क्षण एक-दूसरे का गला घोटेंगी, कुछ कहा नहीं जा सकता।
ऐसे माहौल में पुणे में हिंदी भाषा के एक कार्यक्रम की अध्यक्षता एक
जापानी प्राध्यापक करता है। सभी वक्ताओं के भाषण होने के बाद वह उठता है
और सीधा-सादा लेकिन दिल को छूनेवाला भाषण करता है। भाषण के अंत में वह
सुनाता है, ‘मैं भारत माता की जय‘ कहता आया हूं और कहता रहूंगा,‘ और सारे
सेकुलरों को शर्मसार करता है। यह दृश्य “देशभक्ती का ठेका लेनेवाले” रा.
स्व. संघ अथवा तत्सम ‘तिलकधारियों‘ के नहीं बल्कि महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा
सभा के कार्यक्रम का था जो एक काँग्रेस नेता उल्हास पवार के अधीन है।
हुआ यूं, कि ‘हिंदी का वैश्विकरण और संभावनाएं‘ विषय पर राष्ट्रसभा
समिती की ओर से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के तीसरे
सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे प्रो. हिदेआकी इशिदा जो दाईतो बुनका
विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय संबंध के व्याख्याता है। राहुल गांधी
से कहीं अधिक अच्छी हिंदी में और वह भी अपने मन से किए हुए भाषण में
प्रो. इशिदा ने जापानी लोगों में हिंदी, संस्कृत एवं कुल मिलाकर भारत के
बारे में व्याप्त प्यार का वर्णन किया। हास्य-व्यंग्य भरे उनके कथन के
सभी उपस्थित लोगों ने दाद दी।
“कई शतकों पूर्व बाहर से आनेवाले आक्रामकों ने आप पर आक्रमण किया और
यहां की खडीबोली को तोड़-मरोड़ कर रख दिया। उस समय के देशभक्तों को यह
बात जंची नहीं होगी। आक्रामकों द्वारा किए गए इस मिलावट पर उन्होंने भी
आपत्ति उठाई होगी। लेकिन बाद में उर्दू नामक अलग भाषा बनाकर इसका समाधान
निकाला गया। उसके बाद महात्मा गांधी ने हिंदुस्तानी भाषा को संपर्कभाषा
के तौर पर मंडित किया। आज हम जिसे हिंदी कहते है, वह यह भाषा है। इसलिए
अंग्रेजी शब्दों की मिलावट से आप क्यों कतराते है, मुझे समझ में नहीं
आता। यही कल की प्रमाणभाषा है,” यह कहते हुए उन्होंने विदेशी व्यक्ति
भारतीय भाषाओं की चर्चा की तरफ कैसे देखता है, इसका एक उदाहरण पेश किया।
उन्होंने यह भी बताया, कि जापान में विदेशी भाषाओं की लोकप्रियता में
हिंदी तीसरे स्थान पर है ।
अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा, ‘एक बात मुझे कहनी है। मैं भारतीय
संस्कृति की ओर सम्मान से देखता है और इसलिए मुझे ‘भारत माता की जय‘ कहने
में कोई शर्म नहीं है। मैं यह कहता रहूंगा“। उनकी इस समयोचित टिप्पणी को
सभी दर्शकों से वाह-वाह न मिलती तो ही आश्चर्य होता। वहीं तब तक हिंदी की
आड़ से मोदी पर तानाकसी करनेवालों के चेहरे भी देखने जैसे हो गए थे!
इस घटना ने दिखा दिया, कि ‘भारत माता की जय‘ संवैधानिक प्रावधानों का
विषय नहीं बल्कि संस्कार और सम्मान का विषय है। काश, कि अपनी अक्ल का
प्रदर्शन करने की होड़ में इस सच्चाई को दुर्लक्षित करनेवाले भी यह
समझते।
देविदास देशपांडे
पुणे