योग के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा भारत का गौरव

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा के बाद योग को अपनाने वालों की संख्या समूचे विश्व में बढ़ी है। यदि हम उस संख्या को भारत-भाव से जोड़कर रखने में सफल रहे तो विश्व में परिवारभाव का प्रसार होगा और भारत एक बार पुन: विश्व गुरु बन जाएगा

ब्रिटेन में योग करते योग साधक

हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्षों से योग साधना, योग तपस्या और योगपर शोध करके जो योगासन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान तथा ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए समाधि के विज्ञान को समस्त जगत के सामने प्रस्तुत किया है, वह बड़ा ही अद्भुत कार्य है। इसके लिए हम सारी मानव जाति को उनका धन्यवाद करना चाहिए। योग के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गौरव बढ़ा है और विश्व की अनेक चिकित्सा पद्धतियां योग चिकित्सा पद्धति की सराहना कर रही हैं। भारत को अपनी योग की क्षमता, योग्यता और ज्ञान को पहचान कर संपूर्ण विश्व का नेतृत्व करने के लिए अग्रसर होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से आज योग का व्यवसायीकरण हो रहा है, जो विश्व में लाखों लोगों को रोजगार दे रहा है और केवल जीवन-यापन ही नहीं, बल्कि अच्छे से अच्छा वेतन और योग स्टूडियो खोलकर अच्छा धन कमाया जा रहा है। विश्व में योग के अनेक प्रकार विकसित हो चुके हैं, जो प्रभावशाली लोगों को भी बहुत आकर्षित कर रहे हैं। जैसे पावर योग, यिन येन योग, एरियल योग, हॉट योग इत्यादि। योग करना अंतरराष्ट्रीय नागरिकों की निशानी बन चुका है।

योग की उत्पत्ति भारत में हुई है। इसका सीधा अर्थ है कि भारत में रहने वाले लोग मनुष्य के भीतर विद्यमान उच्च चेतना को जागृत कर प्रकृति, आत्मा तथा परमात्मा के बीच की कड़ी को योग के माध्यम से जोड़ना जानते थे। योग वह विज्ञान है जो मनुष्य की शक्तियों को जागृत कर उसे दिव्य बनाता है। भारतीय शासन व्यवस्था को यौगिक सिद्धांत का लाभ उठाकर प्रत्येक नागरिक को अत्यंत उच्च श्रेणी का दिव्य मनुष्य बनाने का यत्न करना चाहिए। यह सौभाग्य केवल भारत के पास ही है जिसका लाभ योजनाबद्ध तरीके से लिया जा सकता है। भारत विश्व गुरु था, उसने योग सिद्धांतों को छोड़ दिया तो विश्व का सेवक बन गया। पुन: विश्व गुरु बनना है तो योग को केवल अपनाना ही नहीं होगा, बल्कि योग के विशुद्ध ज्ञान को विश्व में फैलाना भी होगा।
भारत के पास वह आध्यात्मिक विद्या है, जो विश्व के किसी अन्य देश के पास नहीं है। योग विद्या के कारण भारत समूचे विश्व पर प्रभाव छोड़ सकता है। इसके लिए भारत सरकार को कुछ विशेष कदम उठाने चाहिए। जैसे जो भी भारतीय योग शिक्षक या योग गुरु भारत में या भारत के बाहर विश्व के किसी भी देश में योग, प्राणायाम, ध्यान तथा योग से संबंधित कोई भी कर्म करने जाता है तब उसे विशेष प्रशिक्षण देने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि वह योग शिक्षक तथा योग गुरु भारत का नेतृत्व करने जा रहा होता है। उसका चरित्र, आचरण तथा व्यवहार तभी योग छात्रों पर अपना प्रभाव छोड़ेगा। वह भारत का ‘योग एंबेसडर’ होता है इसलिए उसका चरित्र अच्छा होना चाहिए। उसका कोई भी कर्म योग सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत नहीं होना चाहिए, क्योंकि योग विश्व को मानवता, सुख, शांति, आनंद और स्वास्थ्य का संदेश देता है।
योग विश्व की अनेक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। जैसे वैश्विक पर्यावरण समस्या का समाधान योग के सिद्धांतों में उपलब्ध है-अपरिग्रह, अहिंसा, शौच, सात्विक तथा प्राकृतिक भोजन आदि। मांसाहार और वैश्विक पर्यावरण की समस्या का आपस में गहरा संबंध है। मांस उत्पादन से पानी की बर्बादी अधिक होती है। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव, जानवरों विशेष रूप से गाय और सूअर द्वारा सीधे उत्सर्जित मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 23 गुना हानिकारक है। ग्रीन हाउस गैसों का सालाना 50 अरब टन कुल कार्बन उत्सर्जन के 18 फीसदी के लिए मांस उत्पादन जिम्मेदार है। 2009 में इस समस्या को लेकर 192 देशों के लगभग 20,000 प्रतिनिधियों ने कोपेनहेगन सम्मेलन में भाग भी लिया था।
प्राचीन सुभाषित है अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासम्बोध:। (साधनपाद 39,योग दर्शन) जब मनुष्य हानिकारक और अनावश्यक वस्तुओं तथा विचारों को त्याग देता है अर्थात् ‘वर्तमान जन्म में मैं क्या कर रहा हूं? शरीर क्या है? इंद्रियां क्या हैं? मैं क्या हूं?’ आदि विषयों के बारे में जब जिज्ञासा एवं ज्ञान प्राप्त होता है तब भूत तथा भविष्य संबंधी जिज्ञासा तथा सामान्य अनुमान आदि ज्ञान हो जाता है। इस सिद्धांत को अपनाने से भौतिक विषयों के प्रति मोहभंग हो जाता है जिस कारण मानव प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम करता है।
आज योग चिकित्सा पद्धति के रूप में भी विश्व के कई देशों में प्रचलित हो रहा है। शरीर से संबंधित अनेक प्रकार के रोग जैसे स्लिप डिस्क, सर्वाइकल, शरीर के जोड़ों का दर्द, शरीर की अकड़न-जकड़न, हृदय से संबंधित रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, अस्थमा, तनाव, अवसाद आदि अनेक प्रकार के शारीरिक-मानसिक रोगों में योग चिकित्सा अत्यंत लाभकारी है। विश्व के अनेक देशों में मनोचिकित्सकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है जिसका सीधा और स्पष्ट संकेत है कि मनोरोगियों की संख्या देश और विदेशों में लगातार बढ़ रही है। जबकि योग शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने में 100 प्रतिशत कारगर है।
आध्यात्मिक स्तर पर योग जैन, बौद्ध और हिंदू धर्म में उच्च स्थान रखता है। एशिया में बौद्ध बहुल राष्ट्रों की अधिकता है। मध्य एशिया में भी जो कभी बौद्ध राष्ट्र हुआ करते थे वहां आज इस्लाम के होने के बाद भी बौद्ध मत के प्रति नरम धारा है। योग भारत की ओर से संपूर्ण विश्व को एक अमूल्य देन है भारत सरकार को जिसका लाभ आज उठाकर अपना स्थान एशिया में मजबूत बनाना चाहिए। केवल योग दिवस के रूप में साल में एक दिन बड़ा राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम करने से बात नहीं बनेगी। योग द्वारा अन्य देशों से जुड़कर भारत को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपना स्थान मानवतावादी, प्रकृति-प्रेमी और अन्य विचारधाराओं का सम्मान करने वाला बनाना चाहिए।
आज लगभग 200 देशों में योग प्रचलित है, लेकिन सभी देशों में इसका स्तर एक जैसा न होने के कई कारण हैं। हमें किस देश में योग को क्या समझ कर स्वीकार किया गया है, यह समझना होगा। योग के तीन स्तर हैं-शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। यूरोप ने योग को शारीरिक स्तर पर अपनाया, तो अमेरिका ने योग को शारीरिक स्तर के साथ-साथ मानसिक स्तर को छुआ, तो कहीं-कहीं वह आध्यात्मिकता को भी छूने का प्रयास कर रहा है। यही स्थिति जापान भी है, अन्यथा विश्व के सभी देशों ने योग को शरीर अर्थात् आसन के स्तर तक ही लिया है। विश्व में चीन योग को अत्यधिक तीव्र गति से अपनाने वाला देश है। चीन के लगभग सभी जिम तथा स्वास्थ्य केंद्र बिना योग के अधूरे समझे जाते हैं। भारत के कई हजार योग शिक्षक आज चीन में नियमित रूप से योग सिखाते हैं। चीन विश्व का सबसे अधिक आवादी वाला देश है जहां के लोग योगासन करते हैं। भारत सरकार को इसका लाभ उठाना चाहिए ।
भारत को योग के शारीरिक आधार आसन के स्तर से ऊपर उठकर मानसिक तथा आध्यात्मिक अर्थात् प्राणायाम, धारणा और ध्यान को अत्यधिक महत्व देकर विश्व को अपनी और आकर्षित करना चाहिए। भारत सरकार ने कुछ कदम उठाकर योग की प्रामाणिकता को बढ़ाया है। सरकार ने क्यूसीआई (क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया) के जरिए योग शिक्षकों की गुणवत्ता के स्तर को सुधारने का प्रयास किया है। इससे पहले होता यह था कि एक महीने का कोर्स कर कोई भी योग शिक्षक बन जाता था जो कि योग व योग शिक्षक के स्तर को गिराने का ही काम करता था, लेकिन आज स्थिति बदली है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की शासकीय टोली के सदस्य के रूप में मुझे लगभग 200 योग शिक्षकों का साक्षात्कार लेने का अवसर मिला। उनमें से लगभग 100 शिक्षकों का पेट ही निकला हुआ था और 50 से 60 ऐसे योग शिक्षक ऐसे थे, जो हल्के-फुल्के आसन ही कर सकते थे। केवल 25 ही ऐसे लगे, जो पश्चिमोत्तानासन अच्छी तरह से करने में समर्थ जान पड़े और 5 ही शिक्षक ऐसे थे, जो कठिन आसन के साथ-साथ अच्छे प्रकार से योग की कक्षा ले सकते थे। ये वे शिक्षक थे जो विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखते थे। योग शिक्षकोें का योग के प्रति विषय का उच्च स्तरीय शिक्षण, धाराप्रवाह अंग्रेजी, शाकाहारी भोजन और भारतीय परिधान के साथ-साथ अत्यंत विनम्र स्वभाव बनाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। भारतीय योग शिक्षक को देखकर और वार्तालाप करके लगना चाहिए कि वह मर्यादित शिक्षक है।
भारत योग का अपनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार का व्याप बढ़ाने में कर सकता है। जरूरत है योग शिक्षकों के और प्रखर होने की। विदेशों में योग के कारण भारत का सम्मान है और आज भी आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत विश्व गुरु माना जाता जाता है।
– डॉ. वरुण वीर 
साभार
पात्र्चजन्य

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