साल 1964 में अनुच्छेद 370 हटाने को देश के दर्जनों सांसदों ने लोकसभा में एकमत से उठायी थी आवाज़

भाग – 1

जयपुर (विसंकें)। भारतीय राजनीति में साल 1964 को दो महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए याद किया जा सकता है. पहला, इसी एक साल में देश ने तीन प्रधानमंत्री देखे. जवाहरलाल नेहरू के निधन (27 मई) के बाद गुलजारी लाल नंदा (कार्यकारी) और फिर लाल बहादुर शास्त्री ने देश का नेतृत्व संभाला. दूसरा, लोकसभा में अनुच्छेद 370 को संविधान से समाप्त करने के लिए एकसाथ कई प्रस्ताव आने शुरू हुए. इससे पहले अनुच्छेद 370 का प्रमुखता से जिक्र 07 अगस्त, 1952 को लोकसभा में आया था. इसके बाद सामान्यतः ऐसा कोई अवसर नहीं आया.

नेहरू के 17 साल के प्रधानमंत्री काल के अंतिम क्षणों में यह एक ऐतिहासिक साल था. इसकी शुरुआत लोकसभा में सवाल से हुई, जिसमें पूछा गया, “जम्मू और कश्मीर राज्य के भारतीय संघ के साथ घनिष्ठ एकीकरण (close integration) के लिए आगामी कदम किस प्रकार लिए गए है अथवा लिए जा रहे है?” (Lok Sabha Debates, 12 February, 1964, p. 252) इस सवाल को पूछने वालों में हरि विष्णु कामथ (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी), बिशनचन्द्र सेठ (हिन्दू महासभा), भीष्म प्रसाद यादव (कांग्रेस), बी.के. धाओं (कांग्रेस), यशपाल सिंह (कांग्रेस आई.), दीवान चंद शर्मा (कांग्रेस), सिद्देश्वर प्रसाद (कांग्रेस), प्रफुल्ल चन्द्र बरुआ (कांग्रेस) और प्रकाशवीर शास्त्री (निर्दलीय) शामिल थे.

इसी क्रम में यशपाल सिंह ने अनुच्छेद 370 को इस दिशा में अड़चन बताया और सवाल किया कि इसे हटाने में अभी और कितना समय लगेगा? (Ibid., p. 256) अब कांग्रेस में अनुच्छेद 370 को हटाने की हलचल दिखाई देने लगी थी. जल्दी ही कामथ, यशपाल और बरुआ ने फिर से भारत सरकार (गृह मंत्री) से सदन में प्रश्न किया, “क्या उन्हें इसकी जानकारी है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने स्वयं इस पक्ष में वक्तव्य दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त अथवा समाप्त करके भारतीय संघ के साथ राज्य का पूर्ण अधिमिलन होना चाहिए.” (Lok Sabha Debates, 25 March, 1964, p. 7341)

संसद में यह गतिविधियाँ संकेत दे रही थी कि अनुच्छेद 370 पर कोई ठोस निर्णय लिया जा सकेगा. यह सभी सदस्य बेहद मुखर थे और लगातार इस विषय के केंद्र में भी बने हुए थे. कांग्रेस के सदस्य एम.सी. छागला ने सुरक्षा परिषद से संबंधित लोकसभा की चर्चा में कहा, “मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही अनुच्छेद 370 संविधान से विलुप्त हो जाएगा. (Lok Sabha Debates, Vol. XXVI, 24 February, 1964, p. 2155) छागला का भाषण भारत सरकार का आधिकारिक बयान था. क्योंकि वे भारत सरकार में शिक्षा मंत्री के साथ सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर मामले पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

यह सिलसिला अब गति पकड़ चुका था. प्रकाशवीर शास्त्री पश्चिम उत्तर प्रदेश के बिजनौर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उन्होंने 11 सितम्बर को अनुच्छेद 370 पर संविधान संशोधन बिल (omission of Article 370) पेश किया. उनके भाषण के पहले शब्द थे, “जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति से संबधित भारतीय संविधान की धारा 370 हटा दी जाए.” (Lok Sabha Debates, Vol. XXXIII, 11 September, 1964, p. 1278) प्रकाशवीर सहित कुल 12 सदस्यों ने बहस में हिस्सा लिया, जिसमें जम्मू-कश्मीर से भी 3 सदस्य शामिल थे.

इस तीसरी लोकसभा में जम्मू-कश्मीर के 6 सदस्य थे. इनमें श्याम लाल सर्राफ (कांग्रेस), अब्दुर रशीद बक्शी (कांग्रेस), इन्द्रजीत मल्होत्रा (कांग्रेस), गोपाल दत्त मैंगी (कांग्रेस), अब्दुल गनी गोनी (एन.सी. कांग्रेस) और सैयद नज़ीर हुसैन समनानी (कांग्रेस) से थे. यह सभी सदस्य अनुच्छेद 370 को संविधान से हटाने के पक्ष में थे. प्रकाशवीर के समर्थन में इन्द्रजीत मल्होत्रा ने कहा, “मैं श्रीमान शास्त्री से पूर्ण सहमत हूँ कि संविधान से अनुच्छेद 370 को हटा देना चाहिए.” (Ibid., pp. 1300-01)

श्यामलाल सर्राफ ने दोहराते हुए सरकार से आग्रह किया कि वह इस पर एक विधेयक लेकर आए. उनका मानना था कि इस प्रकार जम्मू-कश्मीर को पूरे देश में सम्मानजनक स्थान दिया जा सकता है. (Ibid., p. 1312) गोपाल दत्त मैंगी के अनुसार 370 दफा जम्मू-कश्मीर के लिए हमेशा से लानत रही है. उन्होंने सदन को बताया कि पिछले चौदह बरसों में इस दफा की वजह से जम्मू-कश्मीर बाकी राज्यों से बहुत पिछड़ गया है.” (Ibid., p. 1332-33) हालाँकि इस दिन की चर्चा समाप्त होने तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला. फिर 25 सितम्बर को यह मुद्दा सदन के समक्ष उठाया गया. दुर्भाग्यवश इस प्रस्ताव को सदन में मतदान द्वारा स्थगित कर दिया गया.

प्रकाशवीर ने 28 सितम्बर को एकबार फिर संसदीय कार्य मंत्री से अनुरोध किया कि इस सप्ताह में जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर फिर से विचार किया जाना चाहिए. (Lok Sabha Debates, Vol. XXXIV, 28 September, 1964, p. 4031) सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब न मिलने पर दो दिन बाद ही एक प्रस्ताव लाया गया. इस बार कामथ, प्रकाशवीर, यशपाल सहित जगदेव सिंह सिद्दांथी (हरियाणा लोक समिति), सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी), मनीराम बागड़ी (जनता एस.), हुकम चंद कच्वाय (जनता पार्टी), दलजीत सिंह सरदार (कांग्रेस) और राजेन्द्रनाथ बरुआ (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी) ने गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा से लोकसभा में सवाल किया, “05 जून, 1964 से अभी तक भारतीय संघ के साथ जम्मू-कश्मीर के सम्पूर्ण अभिमिलन (total integration) और संविधान से अनुच्छेद 370 के निराकरण के लिए क्या कदम उठाए गए है अथवा लिए जा रहे है. (Lok Sabha Debates, Vol. XXXIV, 30 September, 1964, p. 4492-93)

भारत सरकार ने जवाब में इसे राज्य सरकार पर टालते हुए कहा कि वहां से ऐसा कोई सुझाव नहीं आया है. (Ibid., p. 4493) प्रकाशवीर 20 नवम्बर को दोबारा प्रस्ताव ले आए, “संविधान में संशोधन करने वाले अर्थात् संविधान की धारा 370 को संविधान से हटाकर जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत का अभिन्न अंग बनाने वाले विधेयक पर जो चर्चा 11 सितम्बर, 1964 को स्थगित की गयी, उसको फिर से आरम्भ किया जाए.” (Lok Sabha Debates, Vol. XXXV, 20 November, 1964, p. 771) सदन में सभापति के माध्यम से सरकार ने चर्चा के लिए स्वीकृति दे दी.

इस दिन सबसे पहले अब्दुल गनी गोनी ने भाषण देते हुए प्रकाशवीर को शुभकामनाएँ दी. गोनी पहले भी नेशनल कांफ्रेंस की कार्यसमिति में इस अनुच्छेद को हटाने का प्रस्ताव ला चुके थे. ऐसा उन्होंने गुलाम मोहम्मद सादिक के कहने पर किया था. हालाँकि तब सादिक वहां के मुख्यमंत्री नहीं थे. लोकसभा में गोनी ने लोकतंत्र का हलवा देते हुए केंद्र सरकार को कहा कि वह इस पर एक उचित विधेयक लेकर आए. उसे राज्य सरकार को भेजे और उन्हें सात दिन का समय दे. क्योंकि सादिक अब वहां मुख्यमंत्री है और वे अनुच्छेद हो हटाने के लिए पहले से ही प्रतिबद्ध हैं. (Ibid., p. 778)

सैयद नज़ीर हुसैन समनानी ने प्रकाशवीर के समर्थन में कहा, “जैसे महाराष्ट्र है, वैसे ही जम्मू है. हमारे इन फैसलों के बावजूद सवाल यह है कि आजतक क्यों है दफा 370? किसलिए है दफा 370?……हमने कभी नहीं चाहा कि हम दफा 370 को कायम रखना चाहते है. (Ibid., pp. 792-94)

दिन के खत्म होने तक बहस लम्बी चली. बिना किसी निर्णय के लोकसभा को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया गया. इसके बाद 04 दिसंबर को एक और कोशिश की गयी, लेकिन सरकार ने नामंजूर कर दी. इस बीच सरकार ने अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 357 को वहां लागू कर दिया. तर्क दिया गया कि इससे अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी हो जाएगा. प्रकाशवीर इससे संतुष्ट नहीं थे, वे इन उपायों के स्थान पर अनुच्छेद 370 को संविधान से पूर्ण रूप से समाप्त करवाना चाहते थे. उन्होंने सदन के समक्ष आखिरी बार यह मुद्दा उठाया, लेकिन सभापति ने इसकी मंजूरी नहीं दी. (Lok Sabha Debates, Vol. XXXVII, 23 December, 1964, p. 6346)

क्रमशः

देवेश खंडेलवाल

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