विशाल हृदय, महान आत्मा ठाकुर गुरुजन सिंह जी

गुरुजन सिंह जी

गुरुजन सिंह जी

महान आत्मा ठाकुर गुरुजन सिंह – 20 नवम्बर जन्म-दिवस

विश्व हिन्दू परिषद में कार्यरत वरिष्ठतम प्रचारक ठाकुर गुरजन सिंह का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण 13 (20 नवम्बर, 1918) को ग्राम खुरहुंजा (जिला चंदौली, उ.प्र.) में श्री शिवमूरत सिंह के घर में हुआ था। उनका मूल नाम दुर्जन सिंह था; पर सरसंघचालक श्री गुरुजी ने उसे गुरजन सिंह कर दिया।

बनारस के जयनारायण इंटर काॅलिज में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई; पर उनकी पढ़ने में कुछ विशेष रुचि नहीं थी। उनके कुछ परिजन ‘शीला रंग कंपनी’ नामक उद्योग चलाते थे। अतः वे भी वहीं काम करने लगे। इसी दौरान वे वहां पास के एक अहाते में लगने वाली शाखा में जाने लगे। जब भाऊराव देवरस ने अपना केन्द्र काशी बनाया, तो दोनों अच्छे मित्र बन गये। दोनों एक ही साइकिल पर दिन भर शाखा विस्तार के लिए घूमते रहते थे। जब पूरा दिन इसमें लगने लगा, तो उन्होंने नौकरी छोड़नी चाही; पर उद्योग के मालिक उनके व्यवहार से इतने प्रभावित थे कि कई वर्ष तक उन्हें बिना काम के ही वेतन देते रहे।

1948 के प्रतिबंध के समय पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल में उनके साथ भाऊराव देवरस, अशोक सिंहल, दत्तराज कालिया आदि भी थे। प्रतिबंध समाप्ति के बाद गुरुजन जी अपना पूरा समय संघ के काम में ही लगाने लगे। वे 1955-56 में काशी के नगर कार्यवाह थे। इसके कुछ वर्ष बाद वे जिला प्रचारक तथा 1964 में काशी में ही विभाग प्रचारक बनाये गयेे।

गुरुजन सिंह जी का विवाह बालपन में ही हो गया था; पर संघ कार्य के बीच वे घर की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते थे। जब उनके एकमात्र पुत्र का विवाह हुआ, तो सब व्यवस्था अन्य लोगों ने ही की। जब बारात चलने वाली थी, तब ही वे पहुंच सके। क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से उनके बहुत अच्छे संबंध थे। शचीन्द्र जी की बीमारी में गुरुजन जी ने उनकी बहुत सेवा की। सुभाष चंद्र बोस के काशी प्रवास में कोई कांग्रेसी उन्हें अपने घर ठहराने को तैयार नहीं था। ऐसे में गुरुजन सिंह जी के प्रयास से पहले रामकृष्ण आश्रम और फिर कांग्रेस के ही एक कार्यकर्ता शिवप्रसाद जी ने उन्हें अपने घर ठहराया।

गुरुजन सिंह जी ने ‘भारतीय किसान संघ’ की स्थापना से पूर्व 1971 से 78 तक स्वयंप्रेरणा से किसानों में काम किया। आपातकाल में वे साधुवेश में लगातार घूमते रहे। 1979 में प्रयागराज में हुए ‘द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन’ की व्यवस्थाओं के वे आधार स्तम्भ थे। इसके बाद तो फिर वे वि.हि.प. के काम में ही लगे रहे। संगम स्नान और गोसेवा के प्रति उनकी भक्ति अटूट थी।

गुरुजन जी सरलता की प्रतिमूर्ति थे। खादी का मोटा कुर्ता और धोती उनकी स्थायी वेशभूषा थी। वे किसी से पैर नहीं छुआते थे। कार्यालय पर आये अतिथि को वे स्वयं खाना बनाकर खिलाते थे। आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा के उनके अनुभवसिद्ध ज्ञान का बहुतों ने लाभ उठाया। श्री गुरुजी का उन पर बहुत प्रेम था। वे अपना कमंडलु किसी को नहीं देते थे। जब वह कुछ खराब हुआ, तो उसकी मरम्मत के लिए उन्होंने वह गुरुजन जी को ही सौंपा।

गुरुजन सिंह जी का हृदय बहुत विशाल था। काशी में संघ कार्यालय के सामने बैठने वाले एक गरीब व अशक्त मुसलमान को वे प्रतिदिन भोजन कराते थे। इसी कारण श्री गुरुजी उन्हें ‘महात्मा’ कहते थे। गुरुजन सिंह जी की मेज पर सदा उनके आध्यात्मिक गुरु श्री सीताराम आश्रम तथा दादा गुरु दिगम्बरी संत श्री भास्करानंद जी महाराज के चित्र तथा अपने गुरुजी से प्राप्त ‘श्रीरामचरितमानस’ रहती थी। वे प्रतिदिन मानस का पारायण कर ही सोते थे।

वर्ष 2001 से उनका निवास प्रयाग में ‘महावीर भवन’ ही था। वे प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा से सदा दूर रहते थे। 20 नवम्बर, 2013 को 95 वर्ष पूरे होने पर उनकी अनिच्छा के बावजूद कार्यकर्ताओं ने यज्ञ एवं पूजा आदि की; पर उसके एक सप्ताह बाद 28 नवम्बर को ही उनका देहावसान हो गया।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fourteen − five =