01 मई / जन्मदिवस – निष्ठावान स्वयंसेवक बंसीलाल सोनी

संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री बंसीलाल सोनी का जन्म एक मई, 1930 को वर्तमान झारखंड राज्य के सिंहभूम जिले में चाईबासा नामक स्थान पर अपने नाना जी के घर में हुआ था. इनके पिता श्री नारायण सोनी तथा माता श्रीमती मोहिनी देवी थीं. इनके पुरखे मूलतः राजस्थान के थे, जो व्यापार करने के लिये इधर आये और फिर यहीं बस गये. बाल्यावस्था में ही उन्होंने अपने बड़े भाई श्री अनंतलाल सोनी के साथ शाखा जाना प्रारम्भ किया. आगे चलकर दोनों भाई प्रचारक बने और आजीवन संघ कार्य करते रहे.

बंसीलाल जी बालपन से ही स्वयंसेवक थे; पर कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में पढ़ते समय उनका घनिष्ठ सम्पर्क पूर्वोत्तर के क्षेत्र प्रचारक श्री एकनाथ रानाडे से हुआ. धीरे-धीरे उनका अधिकांश समय संघ कार्यालय पर बीतने लगा. 1949 में बी.कॉम की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे प्रचारक बन गये. सर्वप्रथम उन्हें हुगली जिले के श्रीरामपुर नगर में भेजा गया.

एकनाथ जी के साथ उन्होंने हर परिस्थिति में संघ कार्य सफलतापूर्वक करने के गुर सीखे. कोलकाता लम्बे समय तक भारत की राजधानी रहा है. अतः यहां अनेक भाषाओं के बोलने वाले लोग रहते हैं. बंसीलाल जी हिन्दी के साथ ही बंगला, अंग्रेजी, नेपाली, मारवाड़ी आदि अनेक भाषा-बोलियों के जानकार थे. अतः वे सब लोगों में शीघ्र ही घुल-मिल जाते थे. श्रीरामपुर नगर के बाद उन्हें क्रमशः माल्दा और फिर उत्तर बंग का विभाग प्रचारक बनाया गया.

पूर्वोत्तर भारत में नदियों की प्रचुरता है. ये नदियां जहां उस क्षेत्र के लिये जीवनदायिनी हैं, वहां वर्षा के दिनों में इनके कारण संकट भी बहुत आते हैं. 1968 में जलपाईगुड़ी में भीषण बाढ़ आई. इससे सारा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया. जो जहां था, वहीं फंस कर रह गया. हजारों नर-नारी और पशु मारे गये. ऐसी स्थिति में स्वयंसेवकों ने ‘उत्तर बंग सेवा समिति’ बनाकर बंसीलाल जी की देखरेख में जनसेवा के अनेक कार्य किये.

1971 में बंगलादेश मुक्ति संग्राम  के समय लाखों शरणार्थी भारत में आ गये. उनमें से अधिकांश हिन्दू ही थे. स्वयंसेवकों ने उनके भोजन, आवास और वस्त्रों का समुचित प्रबन्ध किया. पूरे देश से उनके लिये सहायता राशि व सामग्री भेजी गयी, जिसका केन्द्र कोलकाता ही था. यह सब कार्य भी बंसीलाल जी की देखरेख में ही सम्पन्न हुआ. इतना ही नहीं, वे बड़ी संख्या में टैंट और अन्य सहायता सामग्री लेकर बंगलादेश की राजधानी ढाका तक गये.

1975 में आपातकाल के समय वे कोलकाता में ही प्रचारक थे. संघ के आह्वान पर स्वयंसेवकों के साथ उन्होंने भी सत्याग्रह कर कारावास स्वीकार किया. आपातकाल और संघ से प्रतिबन्ध की समाप्ति के बाद संघ ने अनेक सेवा कार्य प्रारम्भ किये. इनमें प्रौढ़ शिक्षा का कार्य भी था. बंसीलाल जी के नेतृत्व में 1978 में बंगाल में अनेक प्रौढ़ साक्षरता केन्द्र चलाये गये.

1980 में भारतीय जनता पार्टी बनने पर उसके केन्द्रीय कार्यालय के संचालन के लिए एक अनुभवी और निष्ठावान कार्यकर्ता की आवश्यकता थी. यह जिम्मेदारी लेकर बंसीलाल जी दिल्ली आ गये. इसके साथ ही उन्होंने असम, बंगाल और उड़ीसा में भाजपा का संगठन तंत्र भी खड़ा किया.
2003 में उन्हें फिर से वापस बंगाल बुलाकर पूर्वी क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख और फिर सम्पर्क प्रमुख बनाया गया. शारीरिक शिथिलता के कारण जब प्रवास में उन्हें कठिनाई होने लगी, तो वे दक्षिण बंग की प्रान्त कार्यकारिणी के सदस्य के नाते अपने अनुभव से नयी पीढ़ी को लाभान्वित करते रहे.

20 अगस्त 2010 को 80 वर्ष की दीर्घायु में निष्ठावान स्वयंसेवक श्री बंसीलाल सोनी का कोलकाता के विशुद्धानंद अस्पताल में देहांत हुआ.

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