फिल्म समीक्षा – सोनू के टीटू की स्वीटी

विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध, शराब, सम्बन्धों और रिश्तों को अपनी समझ व सुविधा से परिभाषित करना। फूहड़ता और नैतिकता के गिरते मापदण्ड। इस फिल्म के सम्बन्ध में और क्या बात कही जाये? आज की संस्कार विहीन पीढ़ी की मानसिकता का सटीक चित्रण।
 सोनू और टीटू बचपन से साथ पले-बढ़े दो खास मित्र हैं, जो सुख-दुःख में सदा साथ रहे। बरसों की अजमायी हुई, आपसी विश्वसनीयता है। टीटू लोगों पर आसानी से विश्वास करने वाला, और बहुत जल्दी ही भावुक होकर लड़कियों के प्रेम में पड़ जाता है और सोनू सोचता है कि गलत किस्म की लड़की से उसे बचाना उसकी जिम्मेदारी है। वह एक संरक्षक की तरह बर्ताव करता है।
फिल्म में दिखाया गया यह घर परिवार समझ के बाहर है। हीरोइन स्वीटी, शादी तय होने से, शादी के दिन तक, टीटू के घर में ही नजर आती है। फिल्म के हर दूसरे दृश्य में पात्र शराब पीते दिखते हैं। शराब का सीधा सम्बन्ध नैतिक पतन से है। पूरी फिल्म विदेशी लोकेशन और शराब का विज्ञापन जान पड़ती है।
महिला विरोधी होने के बावजूद फिल्म हास्य से भरपूर और मनोरंजक बन पड़ी है। दो लडकों, सोनू (कार्तिक आर्यन), टीटू (सन्नी सिंह) की जीवन भर की मित्रता के बीच एक अविश्वसनीय रूप से अच्छी लड़की (नुशरत भरूचा) आ जाती है। टीटू के दोस्त सोनू और स्वीटी के बीच हास्य से भरे दाव-पेंच चलते रहते है। प्रेम त्रिकोण को बिलकुल भिन्न कहानी के साथ प्रस्तुत किया गया है।
 फूहड़ संवाद, फूहड़ नाच, को जैसे सामाजिक मान्यता मिलती जा रही है। 2001 में आयी हाॅलीवुड की फिल्म ‘‘सेविंग सिल्वरमैन’’ की नकल जान पड़ती है। भारत की फिल्मों में भारत के दर्शन नहीं होते है, विदेशी लोकेशन पर छायांकन, विदेशी सहयोगी कलाकार, फिर भी दर्शक भारतीय!! इसीलिये पश्चिम की अजमाई हुई सफल फिल्म की कहानी में थोड़ा फेर बदल कर हिन्दी में फिल्म बना दी । नकल तो केवल नकल ही होती है, जिसे ना तो सम्मान मिलता है ना ही पुरस्कार। किन्तु दर्शक तो मिल रहे हैं।
 इस देश के भीतर, यहाँ की कहानियों पर शोध नहीं किया जाता है। वर्तमान शिक्षा पाठ्यक्रम ने हमें हमारेी संस्कृति और जीवन मूल्यों से वंचित कर दिया है। पश्चिम की गैर जिम्मेदार स्वच्छन्द जीवन शैली में अपनी वासनाओं की पूर्ति होते देखते हैं। नीचे गिरने का गुरूत्वाकर्षण अधिक और बिना प्रयास के होता है, जबकि ऊपर उठने के लिए तो परिश्रम करना पड़ता है।
महिलाओं को भोग्या की तरह प्रस्तुत किया गया है। बिना किसी दर्द और अहसास के उन्हें इस्तेमाल और आहत किया गया है। एक लड़की जो परम्परागत तरीके से विवाह करके अपना पारिवारिक जीवन आरम्भ करना चाहती है, उसे हरा कर, पुरुष अंहकार की जीत को जायज ठहराया गया है। इस प्रकार सोनू अपने मित्र टीटू के विवाह होने में बाधाएं डालता रहता है, और सोचता है कि अपने मित्र को बचाने का अच्छा काम कर रहा है। फिल्म में जीवन और पारिवारिक सम्बन्धों का बहुत ही हल्का चित्रण किया गया है। नायिका नुशरत भरूचा अपने भाव प्रवण चेहरे के कारण अच्छा अभिनय कर पायी है। युवाओं को उनकी मानसिकता के अनुकूल हास्य से भरपूर मनोरंजन मिल गया है। किन्तु फिल्म कोई सन्देश नहीं दे पाती है।
 फिल्म का निर्माण, निर्देशन और पटकथा लेखन लव रन्जन ने किया है। नशे की लत का इलाज करवाकर लौटे हनी सिंह का गीत-संगीत है। जो पार्टी स्टाइल, देसी हिप-हाॅप, और पंजाबी रैप के लिये जाने जाते हैं। संवादों में अपशब्दों को म्यूट कर दिया गया है और यह मनोरंजकता को बढाते है।
इन्ही दिनों कुछ और फिल्में भी प्रदर्शित हुई है, जैसे वेलकम टू न्यूयार्क। इनमें से भारत की कहानी तो कोई भी नहीं है। हीनता की ग्रन्थि से ग्रसित भारतीय युवा पश्चिम की जीवन शैली से प्रभावित इसलिये है, कि उसे पूरब के ज्ञान की समृद्धि से वंचित कर दिया गया है। आज का आधुनिक शिक्षित युवा अपनी ही सभ्यता सांस्कृति से ही सर्वाधिक अपरिचित जान पड़ता है।
कम बजट की फिल्म प्रदर्शन के पांच दिनों में लगभग 40 करोड़ का कारोबार कर चुकी। सप्ताह के अंत तक के कलेक्शन को ही सफलता की परिभाषा मान लिया जाए तो यह फिल्म सफल है।
-मनु त्रिपाठी

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × 2 =