…जब भीड़ ने नकारा लालकृष्ण आडवाणी का आग्रह

कारसेवक संस्मरण- 2

कार सेवा के संस्मरण साझा करते हुए कारसेवक अशोक सिंघल कहते हैं- मुझे याद है 1992 का वो दिन, जब मैं धौलपुर जिले से कार सेवा में गया था। हमें कारसेवा के लिए अयोध्या जाने की सूचना मिली थी। सूचना मिलते ही मैं और मेरे अन्य साथी ट्रेन से अयोध्या के लिए रवाना हुए। रास्ते में कई स्थानों पर हमारा स्वागत हुआ। हम सभी एक दिसंबर को प्रातः अयोध्या पहुंचे।
विश्व संवाद केंद्र से चर्चा में सिंघल ने कार सेवा के संस्मरण साझा किए। सिंघल वर्तमान में पाक्षिक समाचार—पत्र ‘तीक्ष्ण’ के संपादक है। उन्होंने बताया कि हम सभी लगभग पांच दिनों तक सरयूदास जी महाराज के आश्रम में रुके। हमारे रुकने की सभी व्यवस्थाएं वहां की गई थी। पूरे देश से हजारों लाखों की संख्या में कारसेवक वहां आए हुए थे। ढांचे के स्थान के पास ही एक मंच बनाया गया था, जो एक से डेढ़ मंजिल तक ऊंचा था।
इस मंच पर लालकृष्ण आडवाणी भाषण देने आने वाले थे। चारों ओर सुरक्षाबल तैनात थे। कुछ सुरक्षाबलों के सैनिकों से बातचीत भी हुई। जिनमें से एक के वक्तव्य मुझे स्मरण में है।
उन्होंने मुझसे पूछा कि आप कहां से आए हैं? तब मैंने उत्तर में धौलपुर का नाम बताया। उन्होंने कहा कि इस बार तो काम पूरा करके ही जाना। बाद में उनके साथ मित्रता का भाव जुड़ गया था।
अब मैं याद कर रहा हूं वो तारीख यानी 6 दिसंबर। जिसे भूल नहीं सकता। सुबह का समय था। लालकृष्ण आडवाणी का भाषण प्रारंभ हुआ। मंच पर उनके साथ अशोक सिंघल, उमा भारती, ऋतम्भरा आदि उपस्थित थीं।
भाषण के दौरान ही अचानक से भीड़ ढांचे की ओर बढ़ने लगी। ये सब देख कर आडवाणी ने मंच से कारसेवकों को रुकने और ढांचे से उतरने का आग्रह किया। परंतु इस समय कारसेवकों में एक जुनून था। उनके आग्रह की अनदेखी होते देख अशोक सिंघल ने माइक संभाला।
मैं अपने साथियों के साथ आगे बढ़ ही रहा था तभी अचानक से एक पत्थर ऊपर कहीं से मेरे सिर पर आकर लगा, जिससे मैं घायल हो गया। कुछ कारसेवकों ने मेरी सहायता की।
मैं वापस सरयू जी महाराज के आश्रम आ गया था। सुबह जब ढांचे के स्थान पर पहुंचा तो देखा हालात कुछ और ही थे। चारों ओर प्रभु श्री के नारे गूंज रहे थे। रामलला की मोहक छवि के दर्शन करने के पश्चात हम सभी अयोध्या से धौलपुर के लिए रवाना हो गए। सालों बाद राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होना एक सुखद क्षण है।

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